।। जैनों की मूल मान्यता ।।
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10. अनुमति त्याग प्रतिमा: जो आरम्भ, परिग्रह अथवा विवाह आदि इस लोक सम्बन्धी कार्यों में अनुमोदना नहीं करता जो समता युद्धि वाला है वह अनुमति त्याग प्रतिमा धारी है

11. उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा: जो घर त्याग गुरू के समीप व्रतों को ग्रहण कर तप करता है, भिक्षा वृति से भोजन करता है, खण्ड वस्त्र को धारण करता है। वह उदृष्ट प्रतिमा धारी है। इस प्रतिमा को ऐल्लक व क्षुल्लक धारते हैं।

जैन धर्म में नवधा भक्ति

भगवान आदिनाथ को छः महीने तक आहार नहीं मिला। क्योंकि लोगों को पड़गाहने की विधि नहीं मालूम थी। जब राजा श्रेयास को पूर्वजन्म में मुनिराज को दिए हुए आहारदान का स्मरण हुआ तो उन्हें पडगाहने की विधि मालूम हुई। इस तरह राजा श्रेसांस ने भगवान ऋषभदेव की इक्षुरस का आहार देकर आहार दान की परंपरा शुरू की।

पड़गाहन

जिन घर में आहार व्यवस्था है उस घर के बाहर खडिया से चैक पूरे। यहां पर महाराज जी के आहार की व्यवस्था है यह इस बात का संकेत है।

मुनि दर्शन

यदि आपके पुण्योदय से मुनिराज के दर्शन हो तो उनको हमें द्रव्य चढ़ाकर नमस्कार करना चाहिए। मुनिराजों के दर्शन करते समय सम्यक् दर्शन ज्ञान चारित्रेभ्यों नमः बोलते हुए रत्नत्रय के प्रतीक स्थानों पर चावल आदि द्रव्य चढ़ाकर मुनिराज को नमोस्तु एवं आर्थिका जी को वंदामि कहते हुए नमस्कार करना चाहिए, ऐल्लक क्षुल्लक व क्षुल्लिका जी की इन्छामि कहते हुए नमस्कार करना चाहिए। त्यागी वृतियों को हाथ जोड़कर वंदना करना चाहिए।

नवधा भक्ति

साधुओं को आहार दान देने से पहले श्रावक-श्राविका जो नौ प्रकार से विनय प्रस्तुत करते हैं, उसे नवधा भक्ति कहते हैं।

1. पड़गाहन: अतिथि के आने के पूर्व पूर्ण शुद्धि व विवेक के साथ हाथों में कलश, श्रीफल, फल इत्यादि योग्य सामग्री सजाकर रखें। पड़गाहन के समय दाता शुद्ध वस्त्र पहन कर आचार्य आदि मुनि साधु को आता देख कर स्पष्ट कहें ‘‘हे। स्वामिन नमोैस्तु नमोैस्तु नमोैस्तु......कई बार आर्थिकाओं के लिये कहंे ‘‘हे। माताजी वंदामि वंदामि वंदामि.....कई बार ऐलक, क्षुल्लक क्षुल्लिकाओं के लिए कहें ‘‘हे। स्वामिन इच्छामि इच्छामि इच्छामि कई बार अत्र अत्र अत्र- यहां, तिष्ठ तिष्ठ तिष्ठ-ठहरों मन शुद्धि, वचन शुद्धि, काय शुद्धि, आहार जल शुद्ध है। बोलना चाहिए।

मुनियों को पड़गाहन के बाद अपना दायां हाथ मुनि की तरफ करते हुए परिक्रमा करना चाहिए इसके बाद साधु से ग्रह प्रवेश करने का आग्रह करे।

2. उच्चासन: अतिथि से चैके में लगाये गये उच्चासन को ग्रहण करने की प्रार्थना करें।

3. पाद प्रक्षालन: मुनिराज के चरणों की एक थाली में रखकर प्रक्षालन करें तथा उस पवित्र जल को श्रावक श्राविका विनय पूर्वक अपने मस्तिष्क पर लगावें।

4. पूजन: पाद प्रक्षालन के पश्चात अष्ट द्रव्य से अतिथि की पूजन करें।

5. नमस्कार: चैके में उपस्थित सभी श्रावक श्राविका, कहें: मुनिराज से नमोैस्तु महाराज जी कहें। आर्यिका आदि को शुद्धि बोल कर यथायोग्य वंदामि इत्यादि कहें।

6. मन शुद्धि

7. वचन शुद्धि

8. काय शुद्धि

9. आहार जल शुद्ध है।

मुद्रिका छोड अंजलि बांध आहार ग्रहण कीजिए, ऐसा बोलना चाहिए।

जैन धर्म में पर्व पूजायें

जैन धर्म निवृतिप्रधान हैं अतः उसके पर्वो में भोग की प्रधानता नहीं है अपितु त्याग की प्रधानता हैं, इसलिए अन्य समुदायों की अपेक्षा जैन समुदाय में जो पर्व माने जाते हैं उनमें संयम एवं तप की प्रमुखता रहती हैं। और इसी कारण जैनों के पर्व जैनेस्त्तरों के पर्वो से स्वरूपतः भिन्न होते हुए तिथियों की दृष्टि से भी भिन्न है। जैन लोग दशलक्षण महापर्व, अष्टाह्किा महापर्व आदि वर्ष में तीन बार आने वाले त्याग प्रधान पर्वो को मनाते हुए। महीने की प्रत्येक अष्टमी एवं चर्तुदशी को व्रत उपवास आदि करते हैं। यह त्याग प्रधान वृति जैन पर्वों की निवृति प्रधान संस्कृति की द्योतक है। तथा उसी अनुरूप् पूजा करते है।

कार्तिक द्वि0 ज्येष्ठ ;अक्तूबर - नवंबरद्ध ;मई-जूनद्ध पोष आषाढ़ ;दिसंबर - जनवरीद्ध ;जून-जुलाईद्ध माघ श्रावण ;जनवरी द्ध ;जुलाई-अगस्तद्ध फाल्गुन भाद्रपद ;फरवरी-मार्चद्ध ;अगस्त-सितंबरद्ध चैत्र अश्विन ;मार्चद्ध ;सितंबर-अक्टूबरद्ध बैशाख ;अप्रैलद्ध प्र0 ज्येष्ठ ;मईद्ध

प्रमुख जैन पर्व

1. प्रत्येक अष्टमी और चतुर्दशी

2. अष्टाहिका व्रत कार्तिक शुक्ला 8 से 15 तक
फाल्गुन शुक्ला 8 से 15 तक
आषाढ़ शुक्ला 8 से 15 तक

3. षोडश कारण माघ कृष्णा 1 से फाल्गुन कृष्णा 1 तक चैत्र कृष्णा 1 से वैशाख कृष्णा 1 तक
भाद्रपद कृष्णा 1 से आसीजकृष्णा 1 तक ।

4. दशलक्षण माघ शुक्ला 5 से 14 तक चैत्रशुक्ला 5 से 14 तक
भाद्रपद शुक्ला 5 से 14 तक

5. रतनत्रय माघशुक्ला 13 से 14 तक चैत्रशुक्ला 13 से 14 तक
भाद्रपद शुक्ला 13 से 14 तक

6. रोटतीज भाद्रपद शुक्ला 3

7. शील सप्तमी भाद्रपद शुक्ला 7

8. सुगंघदशमी भाद्रपद शुक्ला 10

9. अनंत चतुर्दशी भाद्रपद शुक्ला 14

10. क्षमावाणी आसोज कृष्णा 1

11. ऋषभनिर्वाणोत्सव माघ कृष्णा 14

12. महावीर जयंती चैत्र शुक्ला 13

13. अक्षयतृतीया वैशाख शुक्ला 3

14. श्रुतपंचमी ज्येष्ठ शुक्ला 5

15. वीरशासन जयंती श्रावण कृष्णा 1

16. मोक्ष सप्तमी श्रावण शुक्ला 7

17. रक्षा बंधन श्रावण शुक्ला 15

18 श्री महावीर निर्वाणोत्सव दीपावलीः कार्तिक कृष्णा अमावस्या।

19 हर महा बदी ;कृष्णा पक्षद्ध, सुदी ;शुक्ल पक्षद्ध

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