इष्ट-साधक और अनिष्ट निवारक णमोकार मन्त्र
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प्राचीन और आधुनिक अनेक उदाहरण इस प्रकार के विद्यामन है, जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि णमोकार मन्त्र की आरधनासे सभीप्रकार के अरिष्ट दूर हो जाते हैं और सीभी भिलाषाएँ पूर्ण होती हैं। इस मन्त्र के जाप से पुत्रार्थी पुत्र, धनार्थी धन अैर कीर्तिअर्थी कीर्ति प्राप्त करते हैं। यह समस्त प्रकार की ग्रह-बाधाओं को तथा भूत-पिशाचादि व्यन्तरों की पीड़ाओं को दूर करने वाला है। ‘मन्त्रशास्त्र और णमोकार मन्त्र’ शीर्षक में पहले कहा जा चुका है कि इसी महासमुद्र से समस्त मन्त्रों की उत्पत्ति हुई है तथा उन मन्त्रों के जाप द्वारा किन-किन अभीष्ट कार्यों को सिद्ध किया जा सकता है। जब इस महामन्त्र के ध्यान से आत्मा निर्वाणपद प्राप्त कर सकता है, तब तुच्छ सांसारिक कार्यों की क्या गणना? ये तो आनषंगिक रूप से अपने-आप सिद्ध हो जाते हैं। ‘तिलोयपण्णत्ति’ केप्रथम अधिकार मं पंचपरमेष्ठी के नमस्कार को समस्त विघ्न-बाधाओं को दूर करनेवाल, ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म, राग-द्वेषादि भावकर्म एवं शरीरादि नौ कर्मों को नाश करने वाला बताया हैं समस्त पाप का नाशक होने के कारण यह इष्टसाधक अैर अनिष्टविनाशक है। क्योंकि तीव्र पापोदय सेही कार्य में विघ्न उत्पन्न होते हैं तथा कार्य सिद्ध नहीं होता है। अतः पापविनाशक मंगलवाक्य होने से ही यह इष्टसाधक है। बताया गया है:

अब्भंतरदव्वमलं जीवपदेसे णिबद्धमिदि देहो।
भावमलं णादव्वं अणाण-दंसणादि परिणामो।।
अहवा बहुभेयगयं णाणावरणादिदव्वभावामल देहा।
ताइं गालेइ पुढं जदो तदो मंगलं भाणिदं।
अहवा मंगं सुक्खं लादिहु गेण्हेदि मंगल तम्हा।
एदेण कज्जसिद्धिं मंगई गच्छेदि गंधकत्तारो।।
पावं मलंति अण्णइ उवचारसरूवएा जीवाणं।
तं मालेदि विणसं जेदि त्ति भणंति मंेगलं केइ।।

अर्थात् - ज्ञानावरणादि कर्मरूपी पापरज जीवों के प्रदेशों के साथ सम्बद्ध होने के कारण आभ्यन्तर द्रव्यमल हैं तथा अज्ञान, अदर्शन आदि जीव के परिणाम भावमल हैं। अथवा ज्ञानावरणदि द्रव्यमल के और इस द्रव्यमल से उत्पन्न परिणामस्वरूप भावमल के अनेक भेद हैं। इन्हें यह णमोकार मन्त्र गलाता है, नष्ट करता है, इसलिए इसे मंगल कहा जाता है। इष्ट-साधक और अनिष्ट-विनाशक होने के कारण समस्त कार्यों का आरम्भ इस मन्त्र के मंगल पाठ के अनन्तर ही किया जाता हैै। अतः यह श्रेष्ठ मंगल है। जीवों के पाप को उपचार से मल कहा जाता है, यह णमोकार मन्त्र इस पाप का नाश करता है, जिससे अनिष्ट बाधाओं का विनाश होता है और इष्ट कार्य सिद्ध होते हैं।

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यह णमोकार मन्त्र समस्त हितों को सिद्ध करनेवाला है इस कारण इसे सर्वोत्कृष्ट भाव-मंगल कहा गया है। ‘मड्ग्यते साध्यते हितम निति मंगलम्’ इस व्युत्पत्ति के अनुसार इसके द्वारा समस्त अभीष्ट कार्यों की सिद्धि होती है। इसमें इस प्रकार की शक्ति वर्तमान है, जिसमें इसके स्मरण से आत्मिक गुणोंकी उपलब्ध सहज में हो जाती है। यह मन्त्र रत्नत्रयधर्म तथा उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि इस कर्मों को आत्मा में उत्पन्न करता है अतः ‘‘मंग धर्म लातीति मंगलम्’’ यह व्युत्पत्ति की जाती है।

णमोकार मन्त्र का भावपूर्वक उच्चारण संसार के चक्र के दूर करने वाला है, तथा संवर ओर निर्जर के द्वारा आत्मस्वरूप को प्राप्त करने वाला है। आचार्यों ने इसी कारण बताय है कि ‘‘मं भवात् संसारात् मालयति अपनयतीति मंगलम्’’ अर्थात् यह संसार चक्र से छुड़कार जीवों को निर्वाण देता है और इसके नित्य मनन-चिन्तन ओर ध्यान से सभी प्रकार के कल्यणों की प्राप्ति होती है। इस पंचम काल में संसार त्रस्तजीवों को सुन्दर सुशीतल छाया प्रदान करने वाला कल्पवृक्ष महामन्त्र ही है। दुर्गति, पाप और दुराचरण से पृथक सद्गति, पुण्य और सदाचार के मार्ग मे यह लगाने वाला है। इस महामन्त्र के जप से सभी प्रकार की आधि-व्याधियाँ दूर हो जाती है और सुख-सम्पत्ति की वृद्धि होती है। अतः अहितरूपी पाप य अधर्म का ध्वंस कर यह कल्याणरूपी धर्म के मार्ग में लगाता है। बड़ी-से-बड़ी विपत्ति का नाश णमोकार मन्त्र के प्रभाव से हो जाता है। द्रौपदी का चीर बढ़ना, अंजन-चार के कष्ट का दूर होना, सेठ सुदर्शन का शूली से उतरना,सीता के लिए अग्निकुण्ड का जलकुण्ड बनना, श्रीपाल के कुष्ठ रोग का दूर होना, अंजना सती के सतीत्व की रक्षा का होना, सेठ के घर के दारिद्र्य कानष्ट होना आदि समस्त कार्य णमोकार मन्त्र और पंचपरमेष्ठी की भक्ति के द्वारा ही सम्पन्न हुए हैं।

इस महामन्त्र के एक-एक पद का जाप करने से नवग्रहों की बाधा शान्त होती हैं णमोकारादि समन्त्र संग्रह में बताया गया है कि ‘ओं णमो सिद्धाणं ’ के दस हज़ार जाप से सूर्यग्रह की पीड़ा, ‘ओं णमो अरिहंताणं ’ के दस हजार जापसे चन्द्रग्रह की पीडा़, ‘ओं णमो सिद्धाणं ’ के दस हज़ार जाप से मंगलग्रह की पीड़ा, ‘ओं णमो उवज्झायाणं ’ के दस हज़ार जाप से बुधग्रह की पीड़ा, ‘ओं णमो आइरियाणं ’ के दस हज़ार जाप से गुरूग्रह की पीड़ा, ‘ओं णमो अरिहंताणं ’ के दस हजार जप से शुक्रग्रह की पीड़ा और ‘ओं णमो लोए सव्वसाहूणं’ के दस हज़ार जाप से शनिग्रह की पीड़ा दूर होती है। राहु की पीड़ा की शान्ति के लिए समस्त ण्मोकार मन्त्र का जाप ‘ओं’ जोडत्रकर अथवा ‘ओं हृीं ण्मो अरिहंताणं’ मन्त्र का ग्यारह हजार जप तथा केतु की पीडा की शान्ति के लिए ‘ओं’ जोड़कर समस्त णमोकार मन्त्र का जाप अथवा ‘ओं हृीं णमो सिद्धाणं’ पद का ग्यारह हज़ार जाप करना चाहिए। भूत, पिशाच और व्यन्तर बाधा दूर करने के लिए णमोकर मन्त्र का जाप निम्न प्रकार से करना होता हैं इक्कीस हज़ार जाप करने के उपरान्त मन्त्र सिद्ध हो जाता है। सिद्ध हो जाने पर 9 बार पढ़ कर झाड़ देने से व्यन्तर बाधा दूर हो जाती है। मन्त्र यह है:

‘ओं णमो अरिहंताण ओं णमो सिद्धाणं ओं णमो आइरियाणं ओं णमो उवज्झायाणं ओं णमो लोए सव्वसाहूणं । सर्वदुष्टान् स्तम्भय स्तम्भय मोहय मोहय अन्धय अन्धय मूकवत्कारय कारय हृीं दुष्टान् ठः ठः ठः।’ इस मन्त्र द्वारा एक ही हाथ-द्वारा खींचे गये जल को मन्त्र सिद्ध होने पर 9 बार और सिद्ध नहीं होने पर 108 बार मन्त्रि करना होता है। पश्चात् णमोकार मन्त्र पढ़ते हुए इस जल से व्यन्तराक्रान्त व्यक्ति को घोंट देने से व्यन्तर, भूत, प्रेत और पिशाच की बाधा दूर हो जाती है।

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इस मन्त्र का धर्मकार्य और मोक्ष प्राप्ति के लए अंगुष्ठ ओर तर्जनी से, शान्ति के लिए अंगुष्इ और मध्यमा अंगुली से, सिद्धि के लिए अंगुषठ ओर अनामिका से एवं सर्वसिद्धि के लिए अंगुष्ठ ओर कनिष्ठ से जाप करना होता है। सभी कार्यों की सिद्धि के लिए पंचवर्णपुष्पों की माला से, दुष्ट और व्यन्तरों के स्तम्भन के लिए मणियों की माला से, रोग-शान्ति और पुत्र-प्राप्ति के लिए मोतियों की माला या कमलगट्टों कीमाला से एवं शत्रूच्चाटन के लिए रूद्राक्ष की माला से णमेकार मन्त्र का जाप करना चाहिए। हाथ की अँगुलियों परइस महामन्त्र का जाप करने से दसगुना पुण्य, रेखा खींचकर जाप करनेसे आठ गुणा पुण्य, मूँगा की माला से जाप करने पर हज़ार गुना पुण्य, लवंगों की माला से जाप करने से पाँच हज़ार गुना पुण्य, स्फटिक की माला से जाप करने से दस हज़ार गुन पुण्य, मोती की माला से जाप करने पर लख गुना पुण्य, कमलगट्टों की माला से जाप करने पर दस लाख गुना पुण्य ओर सोने की माला से जाप करने से करोड़ गुना पुण्य होता है। माला के साथ भावों की शुद्धि भी अपेक्षित है।

मारण, मोहन उच्चाटन, वशीकरण, स्तम्भन आदि सभी प्रकार के कार्य इस मन्त्र की साधना के द्वारा साधक कर सकता है। यह मन्त्र तो सभी का हित साधक है, पर साधन करने वाला अपने भावों के अनुसार मारण, मोहनादि कार्याे को सिद्ध कर लेता है। मन्त्र साधन में मन्त्र की शक्ति के साथ साधक की शक्ति भी कार्य करती है। एक ही मन्त्र का फल विभिन्न साधाकों को उनकी योग्यता, परिणाम, स्थिरता आदि के अनुसार भिन्न-भिन्न मिलता है। अतः मन्त्र के साथ साधक का भी महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध है। वास्तविक बात यह है कि यह मन्त्र ध्वनिरूप है और भिन्न-भिन्न ध्वनियाँ अ से लेकर ज्ञ तक भिन्न शक्ति स्वरूप् हैं। प्रत्येक अक्ष्र में स्वतन्त्र शक्ति निहित है, भिन्न-भिन्न अक्षरों के संयोग से भिन्न-भिन्न प्रकार की शक्तियाँ उत्पन्न है जाती हैं। जो व्यक्ति उन ध्वनियों का मिश्रण करना जानता है, वह उन मिश्रित ध्वनियों के प्रयोग से उसी प्रकार के शक्तिशाली कार्य को सिद्ध कर लेता है। णमोकार मन्त्र का ध्वनि-समूह इस प्रकार का है कि इसके प्रयोग से भिन्न-भिन्न प्रकार के कार्य सिद्ध किये जा सकते हैं। ध्वनियों के घर्षण से दो प्रकर की विद्युत उत्पन्न होती है-एक धनविद्युत् और दूसरी ऋणविद्युत्। धनविद्युत् शक्ति द्वारा बाहृ पदर्थांे पर प्रभाव पड़ता है और ऋणविद्युत् शक्ति अन्तरंग की रक्षा करती है, आज का विज्ञान भी मानत है कि प्रत्येक पदार्थ में दोनों प्रकार की शकितयाँ निवास करती हैं मन्त्र का उच्चारण और मनन इन शकितयों का विकास करता हें जिस प्रकार जल में छिपी हुई विद्युत् शक्ति जल के मन्थन से उत्पन्न होती है, उसी पकार मन्त्र के बार-बार उच्चारण करने से मन्त्र के ध्वनि-समूह में छिपी शक्तियाँ विकसित हो जाती है। भिन्न-भिन्न मन्त्रों में यह श्क्ति भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है तथा शक्ति का विकास भी साधक की क्रिया और उसकी शक्ति पर निर्भर करता है। अतएव णमोकार मन्त्र की साधना सभी प्रकार के अभीष्टों को सिद्ध करने वली और अनिष्टों को दूर करने वाली है। यह लेखकर का अनुभव है कि किसी भी प्रकार का सिरदर्द हो, इक्कीस णमोकार मन्त्र द्वारा लौंग मन्त्रिक कर रोगी को खिला देने से सिरदर्द तत्काल बन्द हो जाता है। एक दिन बीच देकर आनेवाले बुखार में केसर द्वारा पीपल के पत्ते का णमोकार मन्त्र लिखकर रोगी के हाथ में बाँध देने से बुखार नहीं आता है। पेट दर्द के कपूर के णमोकार मन्त्र द्वारा मन्त्रित कर खिला देने से पेटदर्द तत्काल रूक जाता है। लक्ष्मी-प्राप्ति के लिए जो प्रतिदिन प्रातःकाल स्नानादि क्रियाओं से पवित्र होकर ‘‘ओं श्रीं क्लीं णमो अरिहंताणं ओं श्रीं क्लीं णमो सिद्धाणं ओं श्रीं क्लीं णमो आइरियाणं अें श्रीं क्लीं णमो अवज्झायाणं ओं श्रीं क्लीं णमो लोए सव्वसाहूणं’’ इस मन्त्र का 108 बार पवित्र शुद्ध धूपदेते हुए जाप करते हैं, उन्हें निश्चयतः लक्ष्मी प्राप्ति होती है। इन सब साधनाओं के लिए एक बात आवश्यक है कि मन्त्र के ऊपर श्रद्धा रहनी चाहिए। श्रद्धा के अभाव में मन्त्र फलदायक नहीं हो सकता है। अतएव निष्कर्ष यह है कि इस कलिकाल में समस्त पापों का ध्वंसक और सिद्धियों को देनेवाला णमोकार मन्त्र ही है। कहा गया है ‘

जापाज्जयेत्क्षयमरोचकमग्निमान्द्यं
कुष्ठोदरमकसनश्वसनादिरोगान्।
प्राप्नोति चाप्रतिमवाग् महतीं महद्भ्यः
पूजां परत्र च गतिं पुरूषोत्तमाप्ताम्।।
कोकद्विष्टप्रियावश्यघातकादेः स्मृतोऽपि यः।
मोहनोच्चाटनाकृष्टि-कार्मणस्तम्भनादिकृत्।।
दूरयत्सापदः सर्वाः पूरयत्यत्र कामनः।।
राज्यस्वर्गापवर्गास्तु ध्यातो योऽमुत्र यच्छति।।