श्री चन्द्रप्रभु विधान - जिनपूजा
श्री चन्द्रप्रभ जिनपूजा

श्री अर्हंत पूजा
Chandra Prabhu
-अथ स्थापना-नरेन्द्र छंद-
अर्धचन्द्र सम सिद्ध शिला पर, श्रीचन्द्रप्रभ राजें।
चन्द्रकिरण सम देह कांति को, देख चन्द्र भी लाजे।।
अत: आपके श्रीचरणों में, हुआ समर्पित चंदा।
आह्वानन कर चन्द्रप्रभू का, मेरा मन आनंदा।।१।।

ॐ ह्रीं अर्हं श्रीचन्द्रप्रभतीर्थंकर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीचन्द्रप्रभतीर्थंकर! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीचन्द्रप्रभतीर्थंकर! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।


-अथ अष्टक-नरेन्द्रछंद-
गंगा सरिता का निर्मल जल, रजत कलश भर लाऊँ।
श्री चन्द्रप्रभ चरण कमल में, धारा तीन कराऊँ।।
मुनि मनकुमुद विकासी चंदा, चन्द्रप्रभू को पूजूँ।
निज समरस सुख सुधा पान कर, भव भव दुःख से छूटूँ।।१।।

ॐ ह्रीं अर्हं श्रीचन्द्रप्रभतीर्थंकराय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।


मलयागिरि चंदन केशर घिस, गंध सुगंधित लाऊँ।
जिनवर चरण कमल में चर्चूं, निजानंद सुख पाऊँ।।
मुनि मनकुमुद विकासी चंदा, चन्द्रप्रभू को पूजूँ।
निज समरस सुख सुधा पान कर, भव भव दुःख से छूटूँ।।२।।

ॐ ह्रीं अर्हं श्रीचन्द्रप्रभतीर्थंकराय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।


चन्द्रकिरणसम उज्ज्वल तंदुल, लेकर पुंज रचाऊँ।
अमल अखंडित सुख से मंडित, निजआतम पद पाऊँ।।
मुनि मनकुमुद विकासी चंदा, चन्द्रप्रभू को पूजूँ।
निज समरस सुख सुधा पान कर, भव भव दुःख से छूटूँ।।३।।

ॐ ह्रीं अर्हं श्रीचन्द्रप्रभतीर्थंकराय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।


मल्ली बेला कमल केवड़ा, पुष्प सुगंधित लाऊँ।
जिनवर चरण कमल में अर्पूं, निजगुण यश विकसाऊँ।।
मुनि मनकुमुद विकासी चंदा, चन्द्रप्रभू को पूजूँ।
निज समरस सुख सुधा पान कर, भव भव दुःख से छूटूँ।।४।।

ॐ ह्रीं अर्हं श्रीचन्द्रप्रभतीर्थंकराय कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।


अमृतपिंड सदृश चरु ताजे, घेवर मोदक लाऊँ।
जिनवर आगे अर्पण करते, सब दुःख व्याधि नशाऊँ।।
मुनि मनकुमुद विकासी चंदा, चन्द्रप्रभू को पूजूँ।
निज समरस सुख सुधा पान कर, भव भव दुःख से छूटूँ।।५।।

ॐ ह्रीं अर्हं श्रीचन्द्रप्रभतीर्थंकराय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।


घृत दीपक में ज्योति जलाकर, करूँ आरती भगवन्।
निज घट का अज्ञान दूर हो, ज्ञानज्योति उद्योतन।।
मुनि मनकुमुद विकासी चंदा, चन्द्रप्रभू को पूजूँ।
निज समरस सुख सुधा पान कर, भव भव दुःख से छूटूँ।।६।।

ॐ ह्रीं अर्हं श्रीचन्द्रप्रभतीर्थंकराय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।


अगर तगर चंदन से मिश्रित, धूप सुगंधित लाऊँ।
अशुभ कर्म के दग्ध हेतु मैं, अग्नी संग जलाऊँ।।
मुनि मनकुमुद विकासी चंदा, चन्द्रप्रभू को पूजूँ।
निज समरस सुख सुधा पान कर, भव भव दुःख से छूटूँ।।७।।

ॐ ह्रीं अर्हं श्रीचन्द्रप्रभतीर्थंकराय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।


सेव आम अंगूर सरस फल, लाके थाल भराऊँ।
जिनवर सन्निध अर्पण करते, परमानंद सुख पाऊँ।।
मुनि मनकुमुद विकासी चंदा, चन्द्रप्रभू को पूजूँ।
निज समरस सुख सुधा पान कर, भव भव दुःख से छूटूँ।।८।।

ॐ ह्रीं अर्हं श्रीचन्द्रप्रभतीर्थंकराय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।


जल चंदन अक्षत कुसुमावलि, आदिक अर्घ बनाऊँ।
उसमें रत्न मिलाकर अर्पूं, ‘ज्ञानमती’ निधि पाऊँँ।।
मुनि मनकुमुद विकासी चंदा, चन्द्रप्रभू को पूजूँ।
निज समरस सुख सुधा पान कर, भव भव दुःख से छूटूँ।।९।।

ॐ ह्रीं अर्हं श्रीचन्द्रप्रभतीर्थंकराय अनघ्र्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।


-दोहा-
पद्मसरोवर नीर से, चन्द्रप्रभ चरणाब्ज।
त्रयधारा विधि से करूँ, मिले शांति साम्राज्य।।१०।।

शांतये शांतिधारा।
जुही गुलाब सुगंधियुत, वर्ण वर्ण के पूâल।
पुष्पांजलि अर्पण करत, मिले सौख्य अनुवूâल।।११।।

दिव्य पुष्पांजलि:।