श्री चन्द्रप्रभु विधान - प्रशस्ति

-दोहा-
ऋषभदेव भगवान को, नमन करूँ शत बार।
वुंâदवुंâद गुरुदेव को, वंदूँ भक्ति अपार।।१।।

वुंâदवुंâद आम्नाय में, गच्छ सरस्वति मान्य।
बलात्कारगण सिद्ध है, उनमें सूरि प्रधान।।२।।

गुरु शांतिसागर हुए, चारित्रचक्री मान्य।
उनके पट्टाचार्य थे, वीरसिंधु प्राधान्य।।३।।

देकर दीक्षा आर्यिका, दिया ज्ञानमति नाम।
गुरुवर कृपा प्रसाद से, सार्थ हुआ कुछ नाम।।४।।

वीर अब्द पच्चीस सौ, उनतालिस सुखवंâद।
द्वादश तिथि वैशाख वदि पूर्ण किया जिनवंद्य।।५।।

चंद्रप्रभू तीर्थेश का, यह विधान सुखकार।
गणिनी ज्ञानमती रचित, सर्वसौख्य दातार।।६।।

तीर्थंकर की अर्चना, करो करावो भव्य।
भव भव भ्रमण समाप्त कर, पावो निज सुख नव्य।।७।।

जब तक मेरू, रवि, शशी, जिनशासन गुणखान।
तब तक भविजन हित करे, चंद्रप्रभू विधान।।८।।

।।श्री चंद्रप्रभ-विधानम् संपूर्णम्।।