भगवान श्री महावीर स्वामी की आरती

-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती || तर्ज—मन डोले, मेरा............
जय वीर प्रभो, महावीर प्रभो, की मंगल दीप प्रजाल के मैं आज उतारूं आरतिया।।टेक.।।

सुदी छट्ठ आषाढ़ प्रभूजी, त्रिशला के उर आए। पन्द्रह महिने तक कुबेर ने, बहुत रत्न बरसाये।।प्रभू जी.।।
कुण्डलपुर की, जनता हरषी, प्रभु गर्भागम कल्याण पे, मैं आज उतारूं आरतिया।।१।।

धन्य हुई कुण्डलपुर नगरी, जन्म जहां प्रभु लीना। चैत्र सुदी तेरस के दिन, वहां इन्द्र महोत्सव कीना।।प्रभू जी.।।
काश्यप कुल के, भूषण तुम थे, बस एकमात्र अवतार थे, मैं आज उतारूं आरतिया।।२।।

यौवन में दीक्षा धारण कर, राजपाट सब त्यागा। मगशिर असित मनोहर दशमी, मोह अंधेरा भागा।।प्रभू जी.।।
बन बालयती, त्रैलोक्यपती, चल दिए मुक्ति के द्वार पे, मैं आज उतारूं आरतिया।।३।।

शुक्ल दशमि वैशाख में तुमको, केवलज्ञान हुआ था। गौतम गणधर ने आ तुमको, गुरु स्वीकार किया था।।प्रभू जी.।।
तव दिव्यध्वनी, सब जग ने सुनी, तुमको माना भगवान है, मैं आज उतारूं आरतिया।।४।।

पावापुरि सरवर में तुमने, योग निरोध किया था। कार्तिक कृष्ण अमावस के दिन, मोक्ष प्रवेश किया था।।प्रभू जी.।।
निर्वाण हुआ, कल्याण हुआ, दीपोत्सव हुआ संसार में, मैं आज उतारूं आरतिया।।५।।

वर्धमान सन्मति अतिवीरा, मुझको ऐसा वर दो । कहे ‘चंदनामती’ हृदय में, ज्ञान की ज्योति भर दो। प्रभू जी.।।
अतिशयकारी, मंगलकारी, ये कल्पवृक्ष भगवान हैं, मैं आज उतारूं आरतिया।।६।।

कुण्डलपुर तीर्थ की आरती -


प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती तर्ज—हे वीर तुम्हारे द्वारे पर..............
त्रिशला के ललना महावीर की, जन्मभूमि अति न्यारी है।
आरति कर लो कुण्डलपुर की, तीरथ अर्चन सुखकारी है।।टेक.।।

है प्रांत बिहार में कुण्डलपुर, जहाँ वीर प्रभू ने जन्म लिया।
राजा सिद्धार्थ और त्रिशला, माता का आंगन धन्य किया।।
उस नंद्यावर्त महल की सुन्दरता ग्रन्थों में भारी है।।आरति....।।१।।

पलने में झूलते वीर दर्श से, मुनि की शंका दूर हुई।
शैशव में संगम सुर ने परीक्षा, ली प्रभु वीर की विजय हुई।।
सन्मति एवं महावीर नाम, तब से ही पड़ा मनहारी है।।आरति....।।२।।

हुए तीन कल्याणक इस भू पर, जृम्भिका के तट पर ज्ञान हुआ।
प्रभु मोक्ष गए पावापुरि से, इन्द्रों ने दीपावली किया।।
उन पाँच नामधारी जिन की, महिमा जग भर में न्यारी है।।आरति....३।।

कुछ कालदोषवश जन्मभूमि का, रूप पुराना नष्ट हुआ।
पर छब्बिस सौंवे जन्मोत्सव में, ज्ञानमती स्वर गूंज उठा।।
इतिहास पुन: साकार हुआ, उत्थान हुआ अतिभारी है।।आरति....४।।

जिस नगरी की रज महावीर के, कल्याणक से पावन है।
जहाँ इन्द्र-इन्द्राणी की भक्ती का, सदा महकता सावन है।।
वहाँ तीर्थ विकास हुआ विस्तृत, तीरथ की छवि अति न्यारी है।।आरति....५।।

प्रभुवर तेरी इस जन्मभूमि का, कण-कण पावन लगता है।
है परिसर नंद्यावर्त महल, जो नंदनवन सम लगता है।।
इस विकसित तीर्थ के हर जिनमंदिर, का दर्शन भवहारी है।।आरति....६।।

जिनशासन के सूरज तीर्थंकर, महावीर को नमन करूं।
उन तीर्थ प्रणेत्री माता को भी, भक्तिभाव से मैं वंदूं।।
‘‘चंदनामती’’ यह तीर्थ अर्चना, दे शिवतिय सुखकारी है।।आरति....७।।