श्री महावीर स्वामी विधान - पंचकल्याणक अर्घ्यं
पंचकल्याणक अर्घ्यं

-गीता छंद-
सिद्धार्थ नृप कुण्डलपुरी में, राज्य संचालन करें।
त्रिशला महारानी प्रिया सह, पुण्य संपादन करें।।
आषाढ़ शुक्ला छठ तिथी, प्रभु गर्भ मंगल सुर करें।
हम पूजते वसु अघ्र्य ले, हर विघ्न सब मंगल भरें।।१।।

ॐ ह्रीं आषाढ़शुक्लाषष्ठ्यां श्रीमहावीरतीर्थंकरगर्भकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।


सित चैत्र तेरस के प्रभू, अवतीर्ण भूतल पर हुए।
घंटादि बाजे बज उठे, सुरपति मुकुट भी झुक गये।।
सुरशैल पर प्रभु जन्म उत्सव, हेतु सुरगण चल पड़े।
हम पूजते वसु अघ्र्य ले, fिनजकर्म धूली झड़ पड़े।।२।।

ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लात्रयोदश्यां श्रीमहावीरतीर्थंकरजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।


मगसिर वदी दशमी तिथी, भवभोग से निःस्पृह हुए।
लौकांतिकादी आनकर, संस्तुति करें प्रमुदित हुए।।
सुरपति प्रभू की निष्क्रमण, विधि में महा उत्सव करें।
हम पूजते वसु अघ्र्य ले, संसार सागर से तरें।।३।।

ॐ ह्रीं मार्गशीर्षकृष्णादशम्यां श्रीमहावीरतीर्थंकरदीक्षाकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।


प्रभु ने प्रथम आहार राजा, वूâल के घर में लिया।
वैशाख सुदि दशमी तिथी, केवलरमा परिणय किया।।
श्रावण वदी एकम तिथी, गौतम मुनी गणधर बनें।
तब दिव्यध्वनि प्रभु की खिरी, हम पूजते हर्षित तुम्हें।।४।।

ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लादशम्यां श्रीमहावीरतीर्थंकरकेवलज्ञानकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।


कार्तिक अमावस पुण्य तिथि, प्रत्यूष बेला में प्रभो।
पावापुरी उद्यान सरवर, बीच में तिष्ठे विभो।।
निर्वाणलक्ष्मी वरण कर, लोकाग्र में जाके बसे।
हम पूजते वसु अघ्र्य ले, तुम पास में आके बसें।।५।।

ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णा-अमावस्यायां श्रीमहावीरतीर्थंकरनिर्वाणकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।


-दोहा-
महावीर सन्मति प्रभो! शिवसुखफल दातार।
पूर्ण अघ्र्य अर्पण करूँ, नमूँ अनंतों बार।।६।।

ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकरपंचकल्याणकाय पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।


शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।