अथ प्रत्येक अर्घ्यं (१०८)
दोहा

चिन्मूरत चिंतामणि, पार्श्वनाथ भगवान्।
पुष्पांजलि से पूजहूँ, करूँ आप गुणगान।।१।।

अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।


ॐ ह्रीं अर्हं अन्तरंगानन्तचतुष्टय-बहिरंगाष्टमहाप्रातिहार्यलक्ष्मीसमन्विताय ‘श्रीमान्‘ इति नाम विभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।

ॐ ह्रीं अर्हं अन्तरङ्ग-बहिरंगपरिग्रहविरहितदिगम्बरमुद्रांकितमुनिगणस्वामिने ‘निग्र्रन्थराट्’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।

ॐ ह्रीं अर्हं स्वज्ञानादिगुणस्वरूपधनयुक्ताय ‘स्वामी’ इति गुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।

ॐ ह्रीं अर्हं द्वादशसभारूपगणाधिपतये ‘गणेश’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वजगत्स्वामिने ‘विश्वनायक’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।

ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंस्वपुरुषार्थेन अर्हत्पदप्राप्ताय ‘स्वयंभू’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।

ॐ ह्रीं अर्हं वृषनामधर्मेण शोभिताय ‘वृषभ’ गुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।

ॐ ह्रीं अर्हं हितोपदेशेन समस्तजीवपोषणाय अनन्तगुणधारकाय ‘भर्ता’ इति गुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।

ॐ ह्रीं अर्हं समस्तपदार्थस्वस्मिन् प्रतिबिंबीकरणाय ‘विश्वात्मा’ इति नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।

ॐ ह्रीं अर्हं पुनर्जन्मरहिताय ‘अपुनर्भव’ गुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वपदार्थावलोकिने ‘सर्वदर्शी’ इति गुणविभूषिताय श्रीपाश्र्व- नाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।

ॐ ह्रीं अर्हं त्रिभुवनस्वामिने ‘जगन्नाथ’ गुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।

ॐ ह्रीं अर्हं धर्मस्वरूपात्मने ‘धर्मात्मा’ इति नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वजनहितकारिणे ‘धर्मबान्धव’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।

ॐ ह्रीं अर्हं धर्मप्राणस्वरूपाय ‘धर्ममूर्ति’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वोत्कृष्टधर्मकारकाय ‘महाधर्मकर्ता’ इति नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।

ॐ ह्रीं अर्हं परमधर्मदात्रे ‘धर्मप्रद’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।

ॐ ह्रीं अर्हं विशिष्टैश्वर्यसहिताय ‘विभु’ गुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।

ॐ ह्रीं अर्हं स्पर्शरसगंधवर्ण स्वरूपमूर्तगुणविरहिताय ‘अमूर्त’ नामविभूझ्र षिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।

ॐ ह्रीं अर्हं परमोत्कृष्टपुण्यस्वरूपाय ‘अत्यन्त पुण्यात्मा’ इति नाम-समन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।

ॐ ह्रीं अर्हं अन्तविरहिताय ‘अनन्त’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।

ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तवीर्यसहिताय ‘अनन्तशक्तिमान्’ इति नामधेयाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।

ॐ हीं अर्हं भव्यजनशरणदानकुशलाय ‘शरण्य’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।

ॐ ह्रीं अर्हं अखिललोकहितंकरस्वामिने ‘विश्वलोकेश’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।

ॐ ह्रीं अर्हं परमकारुणिकगुणान्विताय ‘दयामूर्ति’ गुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२५।।

ॐ ह्रीं अर्हं महत्पदप्रदानसमर्थमहाव्रतसहिताय ‘महाव्रती’ इति गुण-विभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२६।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वश्रेष्ठप्रशस्तवचनसहिताय ‘वाग्मी’ इति नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२७।।

ॐ ह्रीं अर्हं समवसरणसभायां चतुर्दिग्मुखप्रदर्शिताय ‘चतुर्मुख’ नामप्रसिद्धाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२८।।

ॐ ह्रीं अर्हं स्वकीयगुणवृद्धिंकराय ‘ब्रह्मा’ इति नामविभूषिताय श्रीपाश्र्व-नाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२९।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वकर्मविप्रमुक्ताय ‘निष्कर्मा’ इति नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३०।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वप्रकारेण पञ्चेंद्रियमनोविजयिने ‘निर्जितेन्द्रिय’ गुण- समन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३१।।

ॐ ह्रीं अर्हं कामदेवमल्लविजयिने ‘मारजित्’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३२।।

ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तसंसारमूलकारणमिथ्यात्वविजयिने ‘जितमिथ्यात्व’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३३।।

ॐ ह्रीं अर्हं घातिकर्मविघातकाय ‘कर्मघ्न’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३४।।

ॐ ह्रीं अर्हं मृत्युमहामल्लस्यान्तकरणकुशलाय ‘यमान्तक’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३५।।

ॐ ह्रीं अर्हं दिग्वस्त्रधारकनिर्विकारनग्नमुद्रांकिताय ‘दिगम्बर’ नामविभू-षिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३६।।

ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानेन त्रिभुवनज्ञायकगुणान्विताय ‘जगद्व्यापी’ इति नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३७।।

ॐ ह्रीं अर्हं अखिलभव्यजनहितकारिणे ‘भव्यबंधु’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३८।।

ॐ ह्रीं अर्हं त्रैलोक्यगौरवपदप्राप्ताय ‘जगद्गुरु’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३९।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वजनमनोरथपूर्णकरणनिपुणाय ‘कामद’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४०।।

ॐ ह्रीं अर्हं जगज्जयिमदनरिपुमर्दकाय ‘कामहंता’ इति गुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४१।।

ॐ ह्रीं अर्हं त्रिभुवनजनातिप्रियसौंदर्यप्राप्ताय ‘सुन्दर’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४२।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वजनताल्हादनकराय ‘आनन्ददायक’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४३।।

ॐ ह्रीं अर्हं कर्मशत्रुविजयिनामपि वर्याय ‘जिनेंद्र’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४४।।

ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तानुबंध्यादिकर्मविजयिस्वामिने ‘जिनराट्’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४५।।

ॐ ह्रीं अर्हं संपूर्णकेवलज्ञानापेक्षया सर्वत्र विश्वव्यापकाय ‘विष्णु’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४६।।

ॐ ह्रीं अर्हं त्रैलोक्यपूज्यपरमपदे स्थिताय ‘परमेष्ठी’ इति नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४७।।

ॐ ह्रीं अर्हं अनादिकालाद् ज्ञानस्वभावाय ‘पुरातन’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४८।।

ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानैकज्योतिर्मयाय ‘ज्ञानज्योतिः’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४९।।

ॐ ह्रीं अर्हं परमपावनस्वभावाय ‘पूतात्मा’ इति नामविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५०।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वजगत्प्रसिद्धहरिहरादिष्वपि श्रेष्ठाय ‘महान्’ इति नामविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५१।।

ॐ ह्रीं अर्हं संसारिजन-इन्द्रियैरग्राह्याय ‘सूक्ष्म’ गुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५२।।

ॐ ह्रीं अर्हं त्रिजगत्स्वामिने ‘जगत्पति’ नाम विभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५३।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वोदयीपरम-अहिंसामयी धर्मचक्रप्रवर्तकाय ‘धर्मचक्रि’ गुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५४।।

ॐ ह्रीं अर्हं अत्यन्तशान्तस्वभावपरिणताय ‘प्रशान्तात्मा’ इति गुण- समन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५५।।

ॐ ह्रीं अर्हं कर्माञ्जनलेपविरहिताय ‘निर्लेप’ गुणसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५६।।

ॐ ह्रीं अर्हं द्रव्यस्वभावापेक्षया कल-शरीरविरहिताय ‘निष्कल’ नाम- समन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५७।।

ॐ ह्रीं अर्हं मृत्युमहामल्लविजयिने ‘अमर’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५८।।

ॐ ह्रीं अर्हं शुद्धबुद्धस्वभाव-स्वात्मोपलब्धिस्वरूपाय ‘सिद्ध’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५९।।

ॐ ह्रीं अर्हं परिपूर्णकेवलज्ञानयुक्ताय ‘बुद्ध’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६०।।

ॐ ह्रीं अर्हं जगत्ख्यातिप्राप्तात्मने ‘प्रसिद्धात्मा’ इति गुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६१।।

ॐ ह्रीं अर्हं अन्तरंग-बहिरंगविभूतिधारकत्रिजगत्पूज्याय ‘श्रीपति’ नाम- समन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६२।।

ॐ ह्रीं अर्हं प्रसिद्धपुरुषाणामपि श्रेष्ठपदप्राप्ताय ‘पुरुषोत्तम’ नामसमन्विताय श्रीपाश्व्र्रनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६३।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वभाषामयीदिव्यध्वनिस्वामिने ‘दिव्यभाषापति’ नाम- विभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६४।।

ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंप्रकाशपुञ्जसुंदराय ‘दिव्य’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६५।।

ॐ ह्रीं अर्हं स्वकीयशुद्धबुद्धनित्यनिरंजनस्वभावात् च्यवनविरहिताय ‘अच्युत’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६६।।

ॐ ह्रीं अर्हं दिव्यैश्वर्यसमन्वितशतेन्द्रनम्रीभूतकरणसमर्थ-परमैश्वर्यविभूषिताय ‘परमेश्वर’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६७।।

ॐ ह्रीं अर्हं अन्तरंगबहिरंगतपश्चरणबलेन तपनशीलात्मस्वभावाय ‘महातपा’ इति नामसहिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६८।।

ॐ ह्रीं अर्हं कोटिसूर्यचन्द्रातिशायिप्रकाशसहिताय ‘महातेजा’ इति नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६९।।

ॐ ह्रीं अर्हं अन्तिमशुक्लध्यानपरिणतस्वभावाय ‘महाध्यानी’ इति गुणसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७०।।

ॐ ह्रीं अर्हं द्रव्यकर्मभावकर्मनोकर्मरूपाञ्जनविरहिताय ‘निरञ्जन’ नामधार-काय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७१।।

ॐ ह्रीं अर्हं अहिंसामयीपरमधर्माम्नायकत्र्रे ‘तीर्थकर्ता’ इति नामविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७२।।

ॐ ह्रीं अर्हं हेयोपादेयविचारविज्ञाय ‘विचारज्ञ’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७३।।

ॐ ह्रीं अर्हं स्वपरभेदविज्ञानबलेन सर्वोत्तमज्ञानप्राप्ताय ‘विवेकी’ इति नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७४।।

ॐ ह्रीं अर्हं अष्टादशसहस्रशीलगुणभूषिताय ‘शीलभूषण’ -नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७५।।

ॐ ह्रीं अर्हं अपरिमितमाहात्म्यसमन्विताय ‘अनन्तमहिमा’ इति नामविभू-षिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७६।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वभव्यजीवहितकरणसमर्थाय ‘दक्ष’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७७।।

ॐ ह्रीं अर्हं शरीरालंकरणकारणनानाभूषणविरहिताय ‘निर्भूष’ नामविभू-षिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७८।।

ॐ ह्रीं अर्हं शत्रुनिवारणहेतुनानाविधायुध-शस्त्रविरहिताय ‘विगतायुध’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७९।।

ॐ ह्रीं अर्हं लोकालोकज्ञायकाय ‘सर्वज्ञ’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८०।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वचराचरजगदवलोकनकराय ‘सर्वदृक्’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अघ्र्यं.......।।८१।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वजनहितैषिणे ‘सार्व’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८२।।

ॐ ह्रीं अर्हं अत्यन्तसौम्यस्वभावाय ‘सुसौम्यात्मा’ इति नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८३।।

ॐ ह्रीं अर्हं कर्मशत्रुविजयिजिनानां मुख्याय ‘जिनाग्रणी’ इति नाम- विभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८४।।

ॐ ह्रीं अर्हं अपराजितादिचतुरशीतिलक्षमंत्रस्वरूपाय ‘मंत्रमूर्ति’ नामधार-काय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८५।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वदेवेषु श्रेष्ठमहापूजाप्राप्ताय ‘महादेव’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८६।।

ॐ ह्रीं अर्हं चतुर्णिकायदेवानामुपरि श्रेष्ठपरमोत्तमदेवपदप्राप्ताय ‘देवदेव’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८७।।

ॐ ह्रीं अर्हं अत्यन्तस्वच्छपवित्रहृदयाय ‘अतिनिर्मल’ नामप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८८।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वकार्यपूर्णीकृताय ‘कृतकृत्य’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८९।।

ॐ ह्रीं अर्हं अष्टादशमहादोषविरहिताय ‘अतिनिर्दोष’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९०।।

ॐ ह्रीं अर्हं जगत्पालकस्वरूपाय ‘परंब्रह्मा’ इति नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्रायअर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९१।।

ॐ ह्रीं अर्हं अतिशयगुणधारकाय ‘महागुणी’ इति नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९२।।

ॐ ह्रीं अर्हं दिव्य-परमौदारिकदेहसमन्विताय ‘दिव्यदेह’ विभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९३।।

ॐ ह्रीं अर्हं अतिशयसौंदर्यगुणसमन्विताय ‘महारूप’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९४।।

ॐ ह्रीं अर्हं स्वभावदृष्ट्या विनाशविरहिताय ‘नित्य’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९५।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वशक्तिमद्मृत्युमल्लविजयिने ‘मृत्युंजय’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९६।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वकार्यकरणसमर्थाय ‘कृती’ इति नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९७।।

ॐ ह्रीं अर्हं मोक्षपदप्रापणकारणसर्वयम-नियमसमन्विताय ‘यमी’ इति नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९८।।

ॐ ह्रीं अर्हं श्रेण्यारोहणसमर्थयतीनामीश्वराय ‘यतीश्वर’ नामविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९९।।

ॐ ह्रीं अर्हं षट्कर्मरूपजगत्सृष्टि-उपदेशकाय ‘स्रष्टा’ इति नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१००।।

ॐ ह्रीं अर्हं त्रिभुवनभव्यजनस्तुतियोग्याय ‘स्तुत्य’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०१।।

ॐ ह्रीं अर्हं अन्तरंगकर्ममलबहिरंगशरीरादिमलविरहितपवित्राय ‘पूत’ नामविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०२।।

ॐ ह्रीं अर्हं चतुर्विधदेवगणशतेन्द्रपूजिताय ‘अमरार्चित’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०३।।

ॐ ह्रीं अर्हं समस्तविद्यानां स्वामिने ‘विद्येश’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ - जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०४।।

ॐ ह्रीं अर्हं मनोवचनकाययोगनिमित्तात्मप्रदेश-परिष्पंदनक्रियाविरहिताय ‘निष्क्रिय’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०५।।

ॐ ह्रीं अर्हं दशलक्षण-रत्नत्रय-दयामय-वस्तुस्वभावरूपधर्मसमन्विताय ‘धर्मी’ इति नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०६।।

ॐ ह्रीं अर्हं सद्योजातबालकवन्निर्विकाररूपधारकाय ‘जातरूप’ नाम-विभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०७।।

ॐ ह्रीं अर्हं मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलज्ञानिनां सयोग्ययोगिकेवलिनामपि श्रेष्ठतमाय भव्यभाक्तिकजनानां ईप्सितकेवलज्ञानलक्ष्मीप्रदानकुशलाय ‘विदांवर’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०८।।


पूर्णाघ्र्य

-शंभु छंद-
हे पार्श्वनाथ भगवन्! तुमको, जो एक मंत्र से भी यजते।
वे भविजन त्रिभुवन की लक्ष्मी, पाने में भी समरथ बनते।।
फिर जो जन एक सौ आठ-मंत्र से, अघ्र्य समर्पण करते हैं।
वे स्वात्मसिद्धि के इच्छुक जन, परमानंदामृत लभते हैं।।१०९।।

ॐ ह्रीं अर्हं सर्वरोगशोकदुःख-दारिद्र्योपद्रवनाशनसमर्थाय श्रीमदा-दिविदांवरपर्यंताष्टोत्तरशतनाममंत्रसमन्विताय संपूर्णऋद्धिसिद्धिसुखसंपत्तिप्रदायकाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय पूर्णाघ्र्यं....।


शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।


जाप्य मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं धरणेन्द्रपद्मावतीसेवित-चरणकमलाय श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय नमः।


(सुगंधित पुष्प, लवंग या पीले चावलों से १०८ बार मंत्र जाप्य करें।)