श्री रत्नत्रय मण्डल विधान की वंदना

-ब्र. कु. सारिका जैन (संघस्थ)
वंदन करो रे,
श्री रत्नत्रय मण्डल विधान का, वंदन करो रे।
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरित ये, रत्नत्रय कहलाते हैं।
देव-शास्त्र-गुरु की भक्ती से, भविगण इनको पाते हैं।।
वंदन करो, वंदन करो, वंदन करो रे,
रत्नत्रयधारी श्रीगुरुओं का, वंदन करो रे।।१।।

एक वर्ष में तीन बार यह, रत्नत्रयव्रत आता है।
माघ-भाद्रपद-चैत्र मास में, इसे मनाया जाता है।।
वंदन करो, वंदन करो, वंदन करो रे,
महिमाशाली रत्नत्रय व्रत का, वंदन करो रे।।२।।

व्रत पूरा करके इस रत्नत्रय विधान को करना है।
चउ पूजाओं के माध्यम से, प्रभु की भक्ती करना है।।
वंदन करो, वंदन करो, वंदन करो रे,
रत्नत्रय पद की प्राप्ती हेतू, वंदन करो रे।।३।।

सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन, पूजा में बारह अघ्र्य चढ़े।
उसके बाद ज्ञान की पूजन, में अड़तालिस अघ्र्य चढ़े।।
वंदन करो, वंदन करो, वंदन करो रे,
तेंतिस अघ्र्य सहित चारित का, वंदन करो रे।।४।।

इस विधान की रचनाकत्र्री, को मेरा वंदन है।
प्रज्ञाश्रमणी मात चन्दनामति को कोटि नमन है।।
वंदन करो, वंदन करो, वंदन करो रे,
भक्तिभाव से सहित ‘‘सारिका’’, वंदन करो रे।।५।।