अथ नवग्रहशांति स्तोत्रम्
जगद्गुरू नमस्कृत्य श्रुत्वा सद्गुरूभाषितम्।
ग्रहशांतिं प्रवक्ष्यामि लोकानां सुखहेतवे।।1।।

जिनेन्द्राः खेचरा ज्ञेयाः पूजनीया विधिक्रमात्।
पुष्पैर्विलेपनैर्धूपैनैंवेद्यैस्तुष्टिहेतवे।।2।।

पद्मप्रभस्य मार्तण्डश्चन्द्रः चन्द्रप्रभस्य च।
वासुपूज्यस्य भूपुत्रो बुधश्चाष्टजिनेशिनाम्।।3।।

विमलानन्तधर्माराः शांतिः कुंथुर्नमिस्तथा।
वर्धमानजिनेन्द्रस्य पादपद्मं बुधो नमेत्।।4।।

ऋषभाजितसुपाश्र्वाः साभिनंदनशीतलौ।
सुमतिः संभवस्वामी, श्रेयसश्च वृहस्पतिः।।5।।

सुविधिः कथितः शुक्रे, सुव्रतश्च शनिश्चरे।
नेमिनाथो भवेद् राहोः केतुश्चमल्लिपाश्र्वयोः।।6।।

जन्मलग्नं च राशिश्च, यदि पीडयंति खेचराः।
तदा संपूजयेत् धीमान्, खेचरान् सह तान् जिनान्।।7।।

आदित्यसोममंगल-बुधगुरूशुक्राः शनिः।
राहुकेतुमेरवाग्रे1 यो जिनपूजाविधायकः।।8।।

जिनागारे गतः कृत्वा, ग्रहाणां तुष्टिहेतवे।
नमस्कारशतं भक्त्या जपेदष्टोत्तरं शतम्।।9।।

भ्रदबाहुगुरूर्वाग्मी पंचमः श्रुतकेवली।
विद्याप्रसादतः2 पूर्वं ग्रहशांतिः विधिः कृता।।10।।

यः पठेत् प्रातरूत्थाय शुचिर्भूत्वा समाहितः।
विपत्तितो भवेच्छांतिः क्षेमं तस्य पदे पदे।।11।।

भावार्थ- सूर्यग्रह की शांतिहेतु पद्मप्रीा, सोमग्रह के लिए चन्द्रप्रभ, मंगलग्रह शांति हेतु वासुपूज्य, बुधग्रह के लिए श्री विमल, अनंत, धर्म, शांति, कुंथु, अर, नमि एवं वर्धमान ये आठ तीर्थंकर हैं। गुरूग्रह हेतु श्री ऋषभदेव, अजित, संभव, अभिनंदन, सुमति, सुपाश्र्व, शीतल और श्रेयांस ये आठ तीर्थंकर हैं। शुक्रग्रह हेतु पुष्पदंतनाथ, शनिग्रह शांति हेतु मुनिसुव्रतनाथ, राहुग्रह हेतु नेमिनाथ तथा केतुग्रह हेतु मल्लिनाथ एवं पाश्र्वनाथ ये दो तीर्थंकर कहे गये हैं। यदि सूर्य, सोम आदि ये ग्रह अनिष्टकारक हों तो उपर्युक्त तीर्थंकर की पूजा करना चाहिए।

श्री भद्रबाहु महामुनि पांचवें श्रुतकेवली हुए हैं। उनके प्रसाद से यह ग्रहशांति विधि प्राप्त हुई है। जो भव्य प्रातः इस ग्रहशांति स्तोत्र को पढ़ते हैं, वे विपत्ति से छुटकारा पाकर पद-पद पर क्षेम-कल्याण प्राप्त करते हैं।

नवगहशांति के हेतु नवमंत्र-

1. ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय नमः शांति कुरू कुरू स्वाहा। (7000)

2. ऊँ ह्रीं क्रौं क्लीं श्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय नमः शांति कुरू कुरू स्वाहा। (11000)

----------------

1. यह पाठ समझ में नहीं आया है।

2. विद्यानुवादतः इत्यपि पाठः लभ्यते।

----------------

3 ऊँ ह्रीं क्रौं ह्रीं श्रीं क्लीं भौमग्रहारिष्टनिवारक श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय नमः शांति कुरू कुरू स्वाहा। (10000 जाप्य)

4 ऊँ ह्रीं क्रौं ह्रीं श्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्री श्रीविमलानंतधर्मशांति-कुंथु-अरनमिवर्धमानाष्टजिनेंद्रेभ्यो नमः शांति कुरू कुरू स्वाहा। (8000 जाप्य)

5 ऊँ आं क्रौं ह्रीं क्लीं एं गुरूग्रहारिष्टनिवारक ऋषभाजितसंभवाभि-नंदनसुमति सुपाश्र्वशीतलश्रेयांसाष्टजिनेंद्रेभ्यो नमः शांति कुरू कुरू स्वाहा। (19000 जाप्य)

6 ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदंतजिनेन्द्राय नमः शांति कुरू कुरू स्वाहा। (11000 जाप्य)

7 ऊँ ह्रीं क्रौं ह्नः श्रीं शनिग्रहारिष्टनिवारक श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय नमः। (23000 जाप्य)

8 ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय नमः। (18000 जाप्य)

9 ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं एं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राभ्यां नमः। (7000 जाप्य)

इस प्रकार इन दोनों-नवग्रह स्तोत्र, मंत्र व विधान को प्रमाणीक मानकर पूजा, मंत्र आदि करते रहना चाहिए।

नवग्रह व्रत विधि-

वर्ष में तीन बार आष्टान्हिक पर्व आता है। उन्हीं पर्वों में एक दिन पहले से यह व्रत किया जाता है। जैसेकि आषाढ़ शुक्ला सप्तमी से आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक। कार्तिक शुक्ल सप्तमी से पूर्णिमा तक एवं फाल्गुन शुक्ल 7 से पूर्णिमा तक ऐसे वर्ष में तीन बार यह व्रत करना चाहिए। अधिकतम यह व्रत नव वर्ष तक 27 बार अथवा कम से कम तीन वर्ष 3गुण3=9 बार यह व्रत किया जाता है। इस व्रत में पूर्व में कहे गये मंत्रों की क्रम से जाप्य करना चाहिए एवं ’नवग्रह पूजा विधान’ से एक-एक पूजाएं करना चाहिए। व्रत पूर्ण होने पर यथाशक्ति उद्यापन करना चाहिए।

इसप्रकार जो इन नवग्रहों की शांति के लिए जाप्य, पूजा एवं व्रत आदि करते हैं वे निश्चित ही अपने सर्व ग्रहों को अनुकूल, सिद्धिकारक बनाकर संसार के सर्वसुखों को प्राप्त कर परंपरा से मोक्ष को भी प्राप्त करेंगे।