अथ प्रथमोऽधयः
Faith and Knowledge
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ।।1।।
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(सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चरित्र, तीनों मिलकार (मोक्षमार्ग) मोक्ष का मार्ग है, अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति का उपाय है।

Right faith, right knowledge, and right conduct (together)constitute the path to liberation.

तत्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ।।2।।

(सत्वार्थश्रद्धानं) तत्व (वस्तु) के स्वरूप सहित अर्थ-जीवादि पदार्थों की श्रद्धा करना (सम्यग्दर्शनम्) सम्यग्दर्शन है।

Belief in substances ascertained as they are is right faith.

तन्निसर्गादधिगमाद्वा ।।3।।
(तत्) वह सम्यग्दर्शन (निसर्गात्) स्वभाव से (वा)

(तत्) वह सम्यग्दर्शन (निसर्गात्) स्वभाव से (वा) अथवा (अधिगमात्) दूसरे के उपदेशादि से उत्पन्न होता है।

That (This right faith) is attained by intuition or by acquisition of knowledge.

जीवाजीवास्त्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्वम्।।4।।

(जीवाजीवास्त्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्वम्ः)

1. जीव

2. अजीव

3. आस्त्रव

4. बन्ध

5. संवर

6. निर्जर और

7. मोक्ष

यह सात (तत्वम्) तत्व हैं।

(The) soul, (the) non-soul, influx, bondage, stoppage, gradual dissociatin and liberation constitute reality.

नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्यासः।।5।।

(नामस्थपनाद्रव्यभावतः) नाम, स्थापना, द्रव्य अैर भाव से (तत्न्यासः) उन सात तत्वों तथा सम्यग्दर्शनादि का लोक व्यवहार होता है।

These are installed (in four ways) by name, representation, substance (potentiality) and actual state.

प्रमाणनयैरधिगमः।।6।।

सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय और जीवादि तत्वों का (अधिगमः) ज्ञान (प्रमाणनयै) प्रमाण और नयों से होता है।

Knowledge (of the seven categories) is attained by means of pramana1 and naya2.

निर्देशस्वामित्वसाधनाऽधिकरणस्थितिविधानतः।।7।।

(निर्देश स्वामित्व साधन अधिकारा स्थिति विधानतः)

निर्देश, स्वामित्व साधन अधिकरण स्थिति और विधान से भी सम्यग्दर्शननादि तथा जीवादिक तत्वों का अधिगम होता है।

(Knowledge of the seven categories is attained by description, ownership, cause, resting place (substratum), duration, and division.

सत्संख्याक्षेत्रस्पश्ज्र्ञनकालान्तरभावाल्पबहुत्वैक्ष्च।।8।।

(च) और (सत् संख्या क्षेत्र स्पर्शन काल अंतर भावाल्पबहुत्वैः) सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव और अल्पबहुत्व इन आठा अनुयोगों के द्वारा भी पदार्थ का ज्ञान होता है।

1- pramana : comprehensive knowledge

2- naya : standpoint

(The seven categories are known) also by existence, number (enumeration), place or abode, extent of space (pervasion), time, interval of time, thought-activity and reciprocal comparison.

मतिश्रुतावधिमनः पर्ययकेवलानि ज्ञानम्।।9।।

मतिज्ञान, अविधज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान ये पांच (ज्ञानम्) ज्ञान हैं।

Knowledge is of five kinds – sensory knowledge, scriptural knowledge, clairvoyance, telepathy, and omniscience

तत्प्रमाो।।10।।

(तत्) उपरोक्त पांचों प्रकार के ज्ञान ही (प्रमाणे) प्रमाण (सच्चे ज्ञान) हैं।

These (five kinds of knowledge) are the two types of pramany (valid knowledge).

आद्ये परोक्षम्।।11।।

(अद्ये) प्रारम्भ के दो अर्थात् मतिज्ञान और श्रुतज्ञान (परोक्षम्) परोक्ष प्रमाण हैं।

The first two (kinds of knowledge) are indirect (knowledge).

प्रत्यक्षमन्यत्।।12।।

(अन्यत्) शेष तीन अर्थात् अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञान (प्रत्यक्षम) प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।

The remaining three constitute direct (knowledge).

मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम्।।13।।

{मतिः} मति, {स्मृतिः} स्मृति, {संज्ञा} संज्ञा, {चिन्ता} चिन्ता, {अभिनिबोध} अभिनिबोध, {इति} इत्यादि, {अनर्थान्तरम्} अन्य पदार्थ नहीं हैं, अर्थात वे मतिज्ञान के नामांतर है।।

Sensory cognition, remembrance, recognition, induction, and deduction are synonysm.

तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम्।।14।।

{इन्द्रियानिन्द्रिय} इन्द्रियां और मन {तत्} उस मतिज्ञान के {निमित्तम्} निमित्त हैं।

That is caused by the senses and the mind.

अवग्रहेहावायधारणाः।।15।।

{अवग्रह ईहा अवाय धारणाः} अवग्रह, ईहा, अवाय, और धारणा यह चार भेद हैं।

(The four divisions of sensory knowledge are) apprehension (sensation), speculation, perceptual judgment, and retention.

बहुबहुविधक्षिप्रानिः सृतानुक्तध्रुवाणां सेतराणाम्।।16।।

{बहु} बहुत {बहुविध} बहुत प्रकार {क्षिप्र} जल्दी {अनिःसृत} अनिःसृत {अनुक्त} {धु्रवाणां} ध्रुव {सेतराणां} उनसे उल्टे भेदों से युक्त अर्थात् एक, एकविध, अक्षिप्र, निःसृत, उक्त, और अधु्रव इस प्रकार बारह प्रकार के पदार्थों का अवग्रह ईहादिरूप ज्ञान होता है।

(The subdivisions of each of these are) more, many kinds, quick, hidden, unexpressed, lasting, and their opposites.

अर्थस्य।।17।।

उपरोक्त बारह अथवा 288 भेद {अर्थस्य} पदार्थ के {द्रव्य }

(These are the attributes) of substances (objects).

व्यंजनस्यावग्रहः।।18।।

{व्यंजनस्य} अप्रगटरूप शब्दादि पदार्थों का {अवग्रहः} मात्र अवग्रह ज्ञान होता है, ईहादि तीन ज्ञान नहीं होते।

(There is only) apprehension of indistinct things.

न चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम्।।19।।

व्यंजनावग्रह {चक्षुः अनिन्द्रियाभ्याम्} नेत्र और मन से {न} नहीं होता।

(Indistinct apprehension does not arise by means of the eyes and the mind.

श्रुतं मतिपूर्वं द्वयनेकद्वादशभेदम्।।20।।

{श्रुतम्} श्रुतज्ञान {मतिपूर्वं} मतिज्ञान पूर्वक होता है अर्थात मतिज्ञान के बाद होता है, वह श्रुतज्ञान {द्वयनेकाद्वादशभेदम्} दो, अनेक और बारह भेदवाला है।

Scriptural knowledge preceded by sensory knowledge is of two kinds, which are of many and twelve subdivisions.

भवप्रत्ययोऽवधिर्देवनारकाणाम्।।21।।

{भवप्रत्ययः} भवप्रत्यय नामक {अवधिः} अवधिज्ञान {देवनारकाणाम्} देव और नारकियों के होता है।

Clairvoyance (avadhi) based on birth is possessed by celestial and infernal beings.

क्षयोपशमनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम्।।22।।

{क्षयोपशमनिमित्तः} क्षयोपशमनैमित्तक अवधिज्ञान {षडविकल्पः} अनुगामी, अननुगामी, वर्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित - ऐसे छह भेदवाला है, और वह {शेषाणाम्} मनुष्य तथा तिर्यंचों के होता है।

Clairvoyance from destruction-cum-subsidence (i.e. arising on the lifting of the veil) is of six kinds. It is acquired by the rest (namely human beings and animals).

ऋजुविपुलमती मनःपयर्यः।।23।।

{मनः पर्ययः} मनः पर्ययज्ञान {ऋतुमतिविपुलमतिः} ऋजुमति और विपुलमति दो प्रकार का है।

Rjumati and vipulmati are the two kinds of telepathy (manahparyaya).

विशुद्धयप्रतिपाताभयां तद्विशेषः।।24।।

{विशद्धयप्रतिपाताभ्यां} परिणामों की विशुद्धि और अप्रतिपात अर्थात् केवलज्ञान होने से पूर्व न छूटना {तद्विशेष} इन दो बातों से ऋजुमति और विपुलमति ज्ञान में विशेषता (अंतर) है।

The differences between the two are due to purity and infallibility.

विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमनः पर्यययोः।।25।।

{अवामिनः पर्यययोः} अवधि और मनः पर्ययज्ञान में {विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्यः} विशुद्धता, क्षेत्र, स्वामी और विषय की अपेक्षा से विशेषता होती है।

Telepathy (manahparyaya) and clairvoyance (avadhi) differ with regard to purity, space, knower and objects.

मतिश्रुतयोर्निबन्धे द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु।।26।।

{मतिश्रुतयोः} मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का {निबंध} विषय-सम्बंध {असर्वपर्यायेषु} कुछ {न कि सर्व} पर्यायों से युक्त {द्रव्येषु} जीव पुद्गलादि सर्व द्रव्यों में है।

The range of sensory knowledge and scriptural knowledge extends to all the six substances but nut to all their modes.

रूपिष्ववधे।।27।।

{अवधेः} अवधिज्ञान का विषय-सम्बन्ध {रूपिषु} रूपी द्रव्यों में है अर्थात् अवधिज्ञान रूपी पदार्थों को जानता है।

The scope of clairvoyance is that which has form.

तदनन्तभागे मनः पर्ययस्य।।28।।

{तत् अनन्तभागे} सर्वावधिज्ञान के विषयभूत रूपी द्रव्य के अनन्तवें भाग में {मनः पर्ययस्य} मनः पर्ययज्ञान का विषय-सम्बन्ध है।

The scope of telepathy is the infinitesimal part of the matter ascertained by clairvoyance.

सर्वद्रव्यपर्यायेष केवलस्य।।29।।

{केवलस्य} केवलज्ञान का विषय-सम्बन्ध {सर्वद्रव्य-पर्यायेषु} सर्व द्रव्य और उनकी सर्व पर्याय हैं, अर्थात् केवलज्ञान एक ही साथ सभी पदार्थों को और उनकी सभी पर्यायों को जानता है।

Omniscience (kevala jnana) extends to al entities (substances) and all their modes simultaneously.

एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुभ्र्यः।।30।।

{एकस्मिन्} एक जीव में {युगपत्} एक साथ {एकदीनि} एक से लेकर {आचतुभ्र्यः} चार ज्ञात तक {भाज्यानि} विभक्त करने योग्य हैं, अर्थात् हो सकते हैं।

From one up t four kinds of knowledge can be possessed simultaneously by a single should.

मतिश्रुतावध्यो विपर्ययक्ष्च।।31।।

{मतिश्रुवातावधयः} मति, श्रुत और अवधि यह तीन ज्ञान {विपर्ययक्ष्य} विपर्यय भी होते हैं।

Sensory knowledge ,scriptural knowledge and clairvoyance may also be erroneous knowledge.

सदसतोरविशेषाद्यदृच्छोपलब्धेरून्मत्तवत्।।32।।

{यदृच्छोपलब्धेः} अपनी इच्छा से चाहे जैसा ग्रहण करने के कारण {सत् असतोः} विद्यमान और अविद्यमान पदार्थों का {अविशेषात्} भेदरूप ज्ञान {यथार्थ विवेक} न होने सेv{उन्मत्तवत्} पागल के ज्ञान की भांति मिथ्यादृष्टि का ज्ञान विपरीत अर्थात् मिथ्याज्ञान ही होता है।

Owing to the lack of discrimination between the real and the unreal, wrong knowledge is whimsical as that of a lunatic.

नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दसमभिरूढैवंभूता नयाः।।33।।

{नैगम} नैगम, {संग्रह} संग्रह, {व्यवहार} व्यवहार, {ऋजुसूत्र} ऋजुसूत्र, {शब्द}, {समभिरूढ} समभिरूढ़, {एवंभूता} एवंभूत - यह सात {नयाः} नय हैं।

The figurative, the synthetic, the analytic, the straight, the verbalistic, the conventional and the specific are the standpoints.

।।इति तत्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे प्रथमोऽध्यायः।।