राहुग्रहारिष्ट निवारक श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्र पूजा
स्थापना-अडिल्लछन्द
बाइसवें तीर्थंकर नेमीनाथ हैं।
इनके तप की कथा जगत विख्यात है।।
राहू ग्रह की शांति हेतु मैं पूजहूं।
आह्वानन स्थापन विधि से मैं जजूं।।

ऊँ ह्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट आह्वाहननं।
ऊँ ह्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थपनं।
ऊँ ह्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।

-अष्टक-
तर्ज-धीरे-धीरे बोल...........................

नेमिनाथ प्रभू जी की पूजा कर लो, पूजा कर लो प्रभू पूजा कर लो।
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकी संसार असार है।
नेमिनाथ प्रभू जी की पूजा कर लो, पूजा कर लो प्रभु पूजा कर लो।।टेक.।।
जल का कलश लिया है मैंने हाथ में,
जलधारा मैं करूं जिनेश्वर पाद में।
जनम जरा अरू मरण नशें त्रय ताप हैं।
जग में रहकर भी पाऊं सुखशान्ति मैं।।

पूजा करो, अर्चा करो,
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकी संसार असार है। नेमिनाथ.।।1।।
ऊँ ह्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

कश्मीरी केशर कर्पूर सहित घिसी,
जिनवर के चरणों में उसको चर्च दी।
व हकेशर मस्तक के रोग निवारती,
तिलक करो तो सिद्धी होती र्का की।।
पूजा करो, अर्चा करो,
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकी संसार असार है। नेमिनाथ.।।2।।
ऊँ ह्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।

शुभ्र श्वेत तन्दुल धोकर अक्षत बना,
पुंज चढ़ा कर चाहूं मैं अक्षयपना।
भावसहित वह चावल ही मोती बना,
मनोवती सम मैं भी फल पाऊं घना।

पूजा करो, अर्चा करो,
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकी संसार असार है। नेमिनाथ.।।3।।
ऊँ ह्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अक्ष्यपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।

चुन चुन कर उपवन से फूल मंगा लिए,
अंजलि भरकर प्रभु के पास चढ़ा दिये।
भाग्य खिला उन पुष्पों का जो चढ़ गये,
बाकी तो खिलकर पेड़ों से झड़ गये।।

पूजा करो, अर्चा करो,
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकी संसार असार है। नेमिनाथ.।।4।।
ऊँ ह्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

जो भोजन हर तन की भूख मिटा रहा,
वह भोजन आतम की व्यथा बढ़ा रहा।
वह यदि प्रभु की पूजा में चढ़ जाएगा,
कर्म वेदनी भव भव का घट जाएगा।

पूजा करो, अर्चा करो,
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकी संसार असार है। नेमिनाथ.।।5।।
ऊँ ह्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय क्षुाारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

दीपक पूजा प्रभु पूजा का अंग है,
अष्टद्रव्य में दीपक भी इक द्रव्य है।
थाल सजाकर दीप जला आरति करूं,
मोहतिमिर को घटा सकल आरत हरूं।।

पूजा करो, अर्चा करो,
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकी संसार असार है। नेमिनाथ.।।6।।
ऊँ ह्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

शुद्ध धूप को बना अग्नि में दहन की,
एक यही इच्छा कर्मों के हवन की।
धूप जलाना प्रभु पूजा का अंग है,
उसके बिना कैसे जल सकते कर्म हैं।।

पूजा करो, अर्चा करो,
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकी संसार असार है। नेमिनाथ.।।7।।
ऊँ ह्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

खट्टे मीठे फल को एकत्रित किया,
स्वर्णथाल में लेकर उन्हें चढ़ा दिया।
सुना बहुत सतियों को उत्तम फल दिया,
इसीलिए प्रभु मैंने तुम्हें नमन किया।।

पूजा करो, अर्चा करो,
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकी संसार असार है। नेमिनाथ.।।8।।
ऊँ ह्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

जल चन्दन अक्षत अरू पुष्प मंगाय के,
चरू दीपक धूपम् फल आदि मिलाय के।
अघ्र्य थाल ’’चन्दना’’ चढ़ाऊं आज मैं,
पद अनघ्र्य पा बैठूं प्रभु के पास में।।

पूजा करो, अर्चा करो,
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकी संसार असार है। नेमिनाथ.।।9।।
ऊँ ह्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अनघ्र्यपदप्राप्तये अघ्र्यम् निर्वपामीति स्वाहा।

अष्टद्रव्य को चढ़ा शांतिधारा करूं,
शांति बढ़े धरती पर यह आशा करूं।
हो सुभिक्षता क्षेम प्रेम मैत्री बढ़े,
पृथिवी से दुर्भिक्ष अनिष्ट सभी हटे।।

पूजा करो, अर्चा करो,
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकी संसार असार है। नेमिनाथ.।।10।।
शांतये शांतिधारा

बेला चंप चमेली की कलियां जहां,
खिल जातीं तो वातावरण महक रहा।
उन पुष्पों की अंजलि भर पूजा करूं,
पर्यावरण प्रदूषण दूर किया करूं।।
पूजा करो, अर्चा करो,
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकी संसार असार है। नेमिनाथ.।।10।।
दिव्य पुष्पांजलिः।
(अब मण्उल पर राहुग्रह के स्थान पर श्रीफल सहित अघ्र्य चढ़ावें)

हे नेमिनाथ भगवान् मेरे, तन में बढ़ गई असाता है।
होती है अरूचि धर्म में भी, शूगर का रोग सताता है।।
तुम भक्ती में कुछ रूची बनी, इसलिए विनय यह है मेरी।
राहू ग्रह की बाधा हरकर, ’’चन्दना’’ व्याधि हर लो मेरी।।1।।
ऊँ ह्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
जाप्यमंत्र- ऊँ ह्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय नमः।
जयमाला

तर्ज-लेके पहला-पहला......................

जय जय नेमिनाथ भगवान्, हम करते तेरा गुणगान,
तेरी पूजन से मिटता है तिमिर अज्ञान।।
करते प्रभू जगत कल्याण, तुमने पाया पद निर्वाण,
तेरी पूजन से मिटता है तिमिर अज्ञान।।टेक.।।

राजुल को त्यागा प्रभु जी, ब्याह न रचाया।
गिरनार गिरि पर जाकर, योग लगाया।
प्राप्त हुआ फिर केवलज्ञान, दूर हुआ सारा अज्ञान,
तेरी पूजन से मिटता है तिमिर अज्ञान।।1।।

शिवादेवी माता तुमसे, धन्य हुई थीं।
शौरीपुरी की जनता, पुलकित हुई थी।।
समुद्रविजय की कीर्ति महान, गाई सुरइन्द्रों ने आन।
तेरी पूजन से मिटता है तिमिर अज्ञान।।2।।

राहुग्रह की शांति हेतु, पूजा रचाऊं।
तेरी गुण गाके प्रभुजी, निजगुण को पाऊं।।
करे ’’चन्दना’’ तव गुणगान, होवे मेरा भी कल्याण,
तेरी पूजन से मिटता है तिमिर अज्ञान।।3।।
ऊँ ह्रीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।

-दोहा-
नेमिनाथ भगवान् की, पूजन है सुखकार।
दर्शन-वन्दन सब करो, शौरीपुर-गिरना।।
इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिः।