अथ तृतीयोऽध्यायः
The Lower World and the Middle World
रत्नशर्करावालुकापंकधूमतमोहानतमः प्रभाभूयमो घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः सप्ताधोऽधः।।1।।

अधोलोक में रत्नप्रभा शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा और महातमप्रभाा - ये सात भूमियां हैं और क्रम से नीचे-नीचे घनोदविधवातवलय, घनवातवलय, तनुवातवलय तथा आकाश का आधार है।

The lower world consists of seven earths* one below the other, surrounded by three kinds of air and space.

तासु त्रिंशप्तंचविंशतिपंचदश्दशत्रिपंचोनैकनरकशतसहस्त्राणि पंच चैव यथाक्रमम्।।2।।

उन पृथ्वियों में क्रम से पहली पृथ्वी में 30 लाख, दूसरी में 25 लाख, तीसरी में 15 लाख, चैथी में 10 लाख, पांचवी में 3 लाख, छठवीं में पांच कम एक लाख (99,995) और सातवीं में 5 ही नरक बिल हैं। कुछ 84 लाख नरकवास बिल हैं।

Ratna, Sarkara, Valuka, Panka, Dhuma, Tamah and Mahatamah – the word probha is taken with each of these.

In these (earths) there are thirty hundred thousand, twenty-five hundred thousand, fifteen hundred thousand, ten hundred thousand, three hundred thousand, one hundred thousand less five and only five infernal abodes, respectively.

नारका नित्यश्भतरलेश्यापरिणामदेहवेदना-विक्रियाः।।3।।

नारकी जीव सदैव ही अत्यंत अशुीा लेश्या, परिणाम, शरीर, वेदना और विक्रिया को धारण करते हैं।

The thought-colouration, environment, body, suffering, and shape of body (or deeds) are incessantly more inauspicious in succession among the infernal beings.

परस्परोदीरितदुःखाः।।4।।

नारकी जीव परस्पर एक-दूसरे को दुःख उत्पन्न करते हैं (- वे कुत्ते की भांति परस्पर लड़ते हैं)।

They cause pain and suffering to one another.

संक्लिष्टासुरोदीरितदुःखाक्ष्य प्राक्चतुथ्र्या।।5।।

और उन नारकियों के चैथी से पहिले-पहिले (अर्थात् तीसरी पृथ्वी पर्यन्त) अत्यंत संक्लिष्ट परिणाम के धारक अम्ब-अम्बरिष आदि जाति के असुरकुमार देवों के द्वारा दुःख पाते हैं अर्थात् अम्ब-अम्बरिष असुरकुमार देव तीसरेनरक तक जाकर नारकी जीवों केा दुःख देते हैं तथा उनके पूर्व के वैर का स्मरण करा-करा के परस्पर लड़ाते हैं और दुःखी देख राजी होते हैं।

Pain is also caused by the incitement of malevolent asurkumaras prior to the fourth earth.

तेष्वेकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रयस्त्रिंशत्सागरोपमा
सत्वानां परा स्थितिः।।6।।

उन नरकों के नारकी जीवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति क्रम से पहिले में एक सागर, दूसरे में तीन सागर, तीसरे में सात सागर, चैथे में दस सागर, पांचवे में सत्रह सागर, छठ्टे में बाईस सागर और सातवें में तेंतीस सागर है।

In these infernal regions the maximum duration of life of the infernal beings is one, three, seven, then seventeen, twenty-two, and thirty-three sagaropamas.

जम्बूद्वीपलवणोदायदयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः।।7।।

इस मध्यलोक में अच्छे-अच्छे नाम वाले जम्बूद्वीप इत्यादि द्वीप, और लवणसमुद्र इत्यादि समुद्र हैं।

Jambudivpa, Lavanoda, and the rest are the continents and the oceans with auspicious names.

द्विद्र्विर्विष्कम्भाः पूर्वपूर्वपरिक्ष्पिणो वलयाकृतयः।।8।।

प्रत्येक द्वीप-समुद्र दूने-दूने विस्तार वाले और पहिले-पहिले के द्वीप-समुद्रों को घेरे हुए चूड़ी के आकर वाले हैं।

(these) are of double the diameter of the preceding ones and circular in shape, each encircling the immediately preceding one.

तन्मध्ये मेरूनाभिर्वृत्तो योजनशतसहस्त्रविष्कम्भो
जम्बूद्वीपः।।9।।

उन सभी द्वीप-समुद्रों के बीच में जम्बूद्वीप है, उसकी नाभि के समान सुदर्शन मेरू है, तथा जम्बूद्वीप थाली के समान गोल है और एक लाख योजन उसका विस्तार है।

In the middle of these oceans and continents is Jambudivpa, which is round and which is one hundred thousands, yojanas in diameter. Mount Meru is at the centre of this continent like the navel in the body.

भरतहैमवतहरिविदेहरम्यकहैरण्यवतैरावतवर्षाः क्षेत्रणि।।10।।

इस जम्बूद्वीप में भरत, हैमवत, हरि, विदेहरम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत - ये सात क्षेत्र हैं।

Bharata, Haimavata, Hari, Videha, Ramyaka, Hairanyavata, and Airavata are the seven regions.

तद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निष्धनील-रूक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वताः।।11।।

उन सात क्षेत्रों का विभाग करनग वाले पूर्व से पश्चिम तक लम्बे
हिमवत्
महामहिमवत
निषध
नील
रूक्मि
शिखरिन
ये छह वर्षधर - कुलाचल पर्वत हैं (वर्ष =क्षेत्र)

The mountain chains Himavan, Mahahimavan, Nisadha, Nila, Rukmi, and Sikhari, running east to west, divide these regions.

हेमार्जुनतपनीयवैडूर्यजतहेममयाः।।12।।

ऊपर कहे गये पर्वत क्रम से स्वर्ण चांदी तपाया सोनावैडूर्य (नील) मणि चांदी स्वर्ण जैसे रंग के हैं।

They are of golden, white, like purified gold, blue, silvery, and golden in colour.

मणिविचित्रपाश्र्वा उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः।।13।।

इन पर्वतों का तट चित्र-विचित्र मणियों का है और ऊपर-नीचे तथा मध्य में एक समान विस्तार वाला है।

The sides (of these mountains) are studded with various jewels, and the mluntains are of equal width at the foot, in the middle and at the top.

पद्ममहापद्मतिगिंछकेशरिमहापुण्डरीकपुण्डरीका हृदास्तेषामुपरि।।14।।

इन पर्वतों के ऊपर क्रम से पद्म महापद्म तिगिंछ केशरि महापुण्डरीक और पुण्डरीक नाम के ह्रद-सरोवर हैं।

Padma, mahapadma, Tigincha, Kesari, Mahapundarika, and Pundarika are the lakes on the tops of these (mountains).

प्रथमो योजनसहस्त्रायामस्तदर्द्धविष्कम्भो ह्रदः।।15।।

महिला पद्म सरोवर एक हजार योजन लम्बा और लम्बाई से आधा अर्थात् पांच सौ योजन चैडा है।

The first lake is 1,000 yojanas in length and half of it in breadth.

भरतहैमवतहरिविदेहरम्यकहैरण्यवतैरावतवर्षाः क्षेत्रणि।।16।।

पहिला सरोवर इश योजन अवगाह (गहराई) वाला है।

The depth is ten yojanas.

तन्मध्ये योजनं पुष्करम्।।17।।

उसके बीच में एक योजन विस्तार वाला कमल है।

In the middle of this first lake, there is a lotus of the size of one yojana.

तद्द्विगुणद्विगुणा ह्दा‘ पुष्कराणि च।।18।।

आगे के सरोवर तथा कमल पहिले के सरोवरों तथा कमलों से क्रम से दूने-दूने विस्तार वाले हैं।

The lake as well as the lotuses are of double the magnitude.

तन्निवासिन्यो देव्यः श्रीह्रीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्म्यः
पल्योपमस्थितयः ससामानिकपारिषत्काः।।19।।

एक पल्योपम आयु वाली और सामानिक तथा पारिषद् जाति के देवों सहित श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी नाम की देवियां क्रम से उन सरोवरों के कमलों पर निवास करती हैं।

In these lotuses live the nymphs called Sri, Hri, Dhrti, Kirti, Buddhi and Lakshmi, whose lifetime is one playa and who live with Samanikas and Parisatkas.

गंगासिन्धुरोहिद्रोहितास्याहरिद्धरिकान्तासीतासीतोदानारनरकन्ता-
सुवर्णरूप्यकूलारक्तारक्तोदाः सरितस्तन्मध्यगः।।20।।

(भरत में) गंगा, सिंधु, (हैमवत में) रोहित, रोहितास्या, (हरिक्षेत्र में) हरित्, हरिकान्ता, (विदेह में) सीता, सीतोदा, (रम्यक् में) नारी, नरकान्ता, (हैरण्यवत् में) स्वर्णकूला, रूप्यकूला और (ऐरावत में) रक्ता, रक्तोदा, इस प्रकार ऊपर कहे हुए सात क्षेत्रों में चैदह नदियों बीच में बहती हैं।

The Ganga, the Sindhu, the Rohit, the Rohitasya, the Harit, the Harikanta, the Sita, the Sitoda, the Nari, the Narakanta, the Suvarnakula , the Rupyakula, the Rakta, and the Raktoda are the rivers flowing across these regions.

द्वयोद्र्वयोः पूर्वाः पूर्वगाः।।21।।

(ये चैदह नदियां दो के समूह में लेना चाहिए) हर एक दो के समूह में से पहली नदी पूर्व की ओर बहती है (और उस दिशा सके समुद्र में मिलती है)।

The first of each pair flows eastwards.

शेषास्त्वपरगाः।।22।।

बाकी रही सात नदियां पश्चिम की ओर जाती हैं (और उस तरफ के समुद्र में मिलती हैं)।

The rest are the western rivers.

चतुर्दशनदीहसस्त्रपरिवृता गंगासिन्ध्वादयो नद्यः।।23।।

गंगा-सिंधु आदि नदियों के युगल चैदह हजार सहायक नदियों से घिरे हुए हैं।

The Ganga, the Sindhu, etc. are rives having 14,000 tribuaries.

भरतः षड्विंशपितंचयोजनशतविस्तारः
षट्चैकोनविंशतिभागा योजनस्य।।24।।

भरत क्षेत्र का विस्तार, पांच सौ छब्बीस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से 6 भाग अधिक है।

Njstsys od 526 6/19 yojanas in width.

तद्द्विगुणद्विगुणविस्तारा वर्षधरवर्षा विदेहान्ताः।।25।।

विदेहक्षेत्र तक के पर्वत और क्षेत्र भरतक्षेत्र से दूने-दूने विस्तार वाले हैं।

The mountains and the regions are double in width up to Videha.

उत्तरा दक्षिणतुल्याः।।26।।

विदेह क्षेत्र से उत्तर के तीन पर्वत ओर तीन क्षेत्र, दक्षिण के पर्वत और क्षेत्रों के समान विस्तार वाले हैं।

Those in the north are equal to those in the south.

भरतैरावतयोर्वृद्धिह्रासौ
षट्समयाभ्यामुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभ्याम्।।27।।

छह कालों से युक्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के द्वारा भरत और ऐरावत क्षेत्र में जीवों के अनुभवादि की वृद्धि-हानि होती रहती है।

In Bharata and Airavata there is rise and fall (regeneration and degeneration) during the six periods of the two aeons of regeneration and degeneration.

ताभ्यामपरा भूमयोऽवस्थिताः।।28।।

भरत और ऐरावत क्षेत्र को छोड़कर दूसरे क्षेत्रों में एक ही अवस्था रहती है - उनमें काल का परिवर्तन नहीं होता।

The regions other than these are stable.

एकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो
हैमवतकहारिवर्षकदैवकुरवकाः।।29।।

हैमवतक, हारिवर्षक और देवकुरू (विदेहक्षेत्र के अन्तर्गत एक विशेष स्थान) के मनुष्, तिर्यंच क्रम से एक पल्य, दो पल्य और तीन पल्य की आयु वाले होते हैं।

The human beings in Haimvata, Hari and Devakuru are of one, two and three playas respectively.

तथोत्तराः।।30।।

उत्तर के क्षेत्रों में रहने वाले मनुष्य भी हैमवतकादिक के मनुष्यों के समान आयु वाले होते हैं।

The Condition is the same in the north.

विदेहेषु संगयेयकालाः।।31।।

विदेह क्षेत्रों में मनुष्य और तिर्यंचों की आयु संख्यात वर्ष की होती है।

In Videhas the lifetime is numerable years.

भरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य नवतिशतभागः।।32।।

भरत क्षेत्र का विस्तार जम्बूद्वीप के एक सौ नव्वेवां (190) भाग के बाराबर है।

The width of Bharata is one hundred and ninetieth (1/190) part of that of Jambudivipa.

द्विर्धातकीखण्डे।।33।।

धातकीखण्ड नाम के दूसरे द्वीप में क्षेत्र, कुलाचल, मेरू, नदी इत्यादि सब पदार्थों की रचना जम्बूद्वीप से दूनी-दूनी है।

In Dhatakikhanda t is double.

पुष्कराद्र्धे च।।34।।

पुष्करार्द्ध द्वीप में भी सब रचना जम्बूद्वीप की रचना से दूनी-दूनी है।

In the (nearest) half of Puskaradivpa also.

प्राड्.मानुषोत्तरान्मनुष्याः।।35।।

मानुषोत्तर पर्वत तक अर्थात् अढ़ाई द्वीप में ही मनुष्य होते हैं - मानुषोत्तर पर्वत से परे ़ऋद्विधरी मुनि या विद्याधर भी नहीं जा सकते।

(There are) human beings up to Manusottara.

आर्या म्लेच्छाक्ष्च।।36।।

आर्य और म्लेच्छ के भेद से मनुष्य दो प्रकार के हैं।

The civilized people and the barbarians.

भरतैरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्रदेवकुरूत्तरकुरूभ्यः।।37।।

पांच मेरू सम्बन्धी पांच भरत, पांच ऐरावत, देवकुरू तथा उत्तरकुरू ये दोनों छोड़कर पांच विदेह, इस प्रकार अढाई द्वीप में कुल पन्द्रह कर्मभूमियं हैं।

Bharata, Airavata, and Videha excluding Devakura and Uttarakura, are the regions of labour.

नृस्थिती परापरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्ते।।38।।

मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्य और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है।

The maximum and the minimum periods of lifetime of human beings are three playas and antarmuhurta.

तिर्यग्योनिजानां च।।39।।

तिर्यंचों की आयु की उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थिति उतनी ही (मनुष्यों जितनी) है।

These are the same for the animals.

।। इति तत्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे तृतीयोऽध्यायः।।