।। श्रावक की दिनचर्या ।।

प्रातः कला सूर्योदय से पूर्व ब्रह्ममुहूर्त में जागर णमोकार मंत्र का स्मरण करें और विचार करें कि मैं वास्तव में औदारिक, तैजस, कार्माण - इन तीन शरीरों के अन्दर छिपा हुआ स्वभाव से परम चैतन्यात्मा हूं। मेरे जन्म-मरण का दुख जिसकी वेदना सही नहीं जाती और जो अनादिकाल से लगा है, वह कब छूटेगी? ऐसी भावना भाते हुए दीर्घशंका हेतु जायें। स्नानकर शुद्ध वस्त्र पहन कर कुछ समय सामायिक (ध्यान) कर, माला फेरे, आवश्यक पाठ पढ़ें। इस संसार की असारता का चिन्तन करते हुए दिनचर्या के कुछ नियम कर लें कि आज हमकों क्या कार्य करना है और सबका त्याग। मुख्यतः प्रतिदिन करने योग्य सत्रह नियम ये हैं -

1 - भोजन

2 - सचित वस्तु

3 - गृह

4 - संग्राम

5 - दिशा गमन

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6 - दवा विलेपन (औषध)

7 - ताम्बूल

8 - पुष्प सुगन्ध

9 - नृत्य देखना

10 - गीत श्रवण

11 - स्नान

12 - ब्रह्मचर्य

13 - आभूषण

14 - वस्त्र

15 - शैय्या

16 - औषधि लेना

17 - सवारी पर बैठना

इन सबका अपनी सुविधानुसार नियम कर लेना। जिस नियम में किसी प्रकार की बाधा हो उसे नहीं करना। जैसे आज मैं भोजन दो बार करूंगा, सचित वस्तु नहीं खाऊंगा, दो घण्टे घर का त्याग है, आज संग्रम नहीं करूंगा, आज अमुक दिशा में इतनी दूरर से अधिक गमन नहीं करूंगा, औषध शरीर पर नहीं लगाऊंगा, पान नहीं खाऊंगा, पुष्प सुगन्ध नहीं लूंगा, नृत्य नहीं देखूंगा, गीत नहीं सुनूंगा, आज अमुक स्थान पर जाऊंगा अथवा नहीं, आज ब्रह्मचार्य से रहूंगा, अथवा इतने समय तक का त्याग, आज इतने आभूषण पहनूंगा अथवा नहीं, आज अमुक वस्त्र पहनूंगा, शैय्या पर शयन करूंगा या नहीं दवा खाऊंगा अथवा नहीं, आज सवारी पर बैठूंगा अथवा नहीं। इन सभी नियमों को सामायिक के बाद मन की चंचलता को रोकने के लिए कर लेना चाहिये। नियम के बाद उस वस्तु को सेवन करने की इच्छा ही नहीं होती। इसलिये हमारा प्रत्येक कार्य नियम के साथ ही होना चाहिए। नियम के बिना फल की प्राप्ति नहीं होती और बिना नियम के जीवन असंयमी कहलाता है। हमारे जीवन में कोई-न-काई नियम हर समय रहना चाहिए क्योंकि नियम में अगर शरीर भी छूट जाये तो वह दुर्गति का पात्र नहीं बनता।

उपर्युक्त नियमों को हितकारी जानकर ग्रहण करना और क्रोध इत्यादि कषायों का त्याग कर, धोखेबाजी, बेईमानी अन्याय आदि इन सबको दूर ही से त्याग करें। तत्पश्चात् भगवान के दर्शनार्थ मंदिर जी में जावें और विद्यार्थी जीवन है तो देवाधिदेव के दर्शन करके पाठशाला, काॅलेज जाना चाहिए।

शुद्ध हृदय से कीजिये, मंदिर माॅहि प्रवेश।
शुद्ध भाव से कीजिये, दर्शन वीर जिनेश।।