|| कल्याण मंदिर विधान - Kalyan Mandir Vidhan ||
Kalyan Mandir Vidhan
-कुसुमलता छंद-

सिद्धशिला के अधिनायक, प्रभु सिद्ध अनंतानंत नमू।
सिद्धिप्रिया को सुखदायक, चौबीसों तीर्थंकर प्रणमूँ।।
रिद्धि सिद्धि के दाता चिन्तामणि पारस प्रभु को वंदन।
सुख समृद्धि के कर्ता विघ्नों, के हर्ता जिनवर को नमन।।१।।

पंचकल्याणक प्राप्त जिनेश्वर, निज आतम कल्याण करें।
सचमुच जो कल्याण के मंदिर, बन जन-जन कल्याण करें।।
कुमुदचंद्र आचार्य प्रवर ने, इसीलिए शुभ भाव रखा।
पाश्र्वनाथ प्रभु की भक्ती में, पाश्र्वनाथ स्तोत्र रचा।।२।।

ऋद्धि मंत्रयुत इस स्तुति में, कार्यसिद्धि की शक्ती है।
लौकिक सुख की प्राप्ति हेतु भी, करो पाश्र्वप्रभु भक्ती है।।
भुक्ति-मुक्ति को देने वाला, यह विधान अतिशयकारी।
पाश्र्वनाथ स्तोत्र के ऊपर, ही इसकी रचना सारी।।३।।

चौवालिस काव्यों में प्रभु के, सभी गुणों का वर्णन है।
कालसर्प का योग निवारण, करने में यह सक्षम है।।
कालजयी व्यक्तित्व है जिनका, काल भी जिनसे हार गया।
काल भी यदि आया अकाल में, भक्ति से वह भी भाग गया।।४।।

जिनभक्ती से ही अकाल-मृत्यू का संकट टलता है।
पाश्र्वनाथ के जाप्य मंत्र से, केतू ग्रह भी टलता है।।
जन्मलग्न के कालसर्प का, योग सभी नश जाता है।
इस विधान के करने से, सांसारिक सुख मिल जाता है।।५।।

मंडल पर प्रभु को पधराकर, विधिवत् पूजा पाठ करो।
मंगल कलश करो स्थापन, फिर भक्ती का ठाठ करो।।
पंचसूत्र से मंडल वेष्टित, कर आराधन विधि कर लो।
दिक्पालादिक का आह्वानन, कर मंडलशुद्धी कर लो।।६।।

जैसे पारस प्रभु ने संकट, सहकर शिवपद पाया है।
दश भव तक कमठासुर के प्रति, क्षमाभाव अपनाया है।।
वैसे ही मुझको भी कष्ट, सहन करने की शक्ति मिले।
जब तक मुक्ति मिले नहिं तब तक, भव-भव में प्रभु भक्ति मिले।।७।।

कुमुदचंद्र मुनिवर की कृति को, श्रद्धापुष्प समर्पित हैं।
उनके पद मोती की माला, उनके पद में अर्पित है।।
गणिनी प्रमुख ज्ञानमती माताजी की संप्रेरणा मिली।
इस विधान की रचना हेतू, उनकी ही देशना मिली।।८।।

यही भावना करे चन्दनामती आर्यिका प्रभुपद में।
मेरा हो कल्याण जगत का, भी कल्याण करो क्षण में।।
सार्थक हो स्तोत्र नाम, कल्याण का मंदिर मुझ मन में।
परमातम की प्रतिमा सुन्दर, स्वयं विराजे इस तन में।।९।।

विधियज्ञ प्रतिज्ञापनाय कल्याणमंदिर विधान मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।