।। प्रतिक्रमण पाठ ।।

णमो अरिहंताणं
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं
णमो लोए सव्वसाहूणं

परम पवित्र पंच परमेष्ठी भगवंतों के श्री चरणों में...

नमोस्तु ! नमोस्तु ! नमोस्तु !

हे वीतरागी प्रभु !

पापकर्मों के प्रक्षालन के लिए, आत्मा की शुद्धि के लिए, भावों की शुद्धि के लिए स्वयं का प्रतिक्रमण करता हूँ / करती हूँ !

सभी जीवों से क्षमा मांगता हूँ / मांगती हूँ ... (तीन बार बोलना है )

सभी जीवों को क्षमा करता हूँ / करती हूँ ... (तीन बार ...)

हिंसादि पाँच पापों से, सप्त व्यसन से, अष्ट मूलगुण के विपरीत आचरण से पापकर्मों का संग्रह किया है !

* प्रतिक्रमण की इस बेला में पाँच पापों में क्रमशः

1. हिंसा पाप के वशीभूत होकर...

चलने-फिरने आदि समस्त शारीरिक क्रियाओं से, वस्त्रों के भोजन के बनाने में, घर की सफाई में, वस्तुओं के उठानेदरवाजा-खिड़की आदि खोलने व बंद करने में, अग्नि के जल जमीन के खोदने में, अनावश्यक - पानी के बहाने में, वनस तोडने में, बिजली के उपयोग में, हिंसक उपकरण चलाने व देने में के निर्माण में, व्यापार के संचालन में, वाहन के चलाने आदि क्रियाको से त्रस व स्थावर जीवों की हिंसा की हो!

2. झूठ पाप के वशीभूत होकर ...

भगवान के समक्ष, गुरुओं के समक्ष, परिजनों-सामान्यजनों से या बोला हो, झूठ बोलकर-ठगा हो, गवाही दी हो, व्यापार किया हो झूठा दस्तावेज लिखा हो, स्व-पर की झूठी प्रशंसा की हो !

3. चोरी पाप के वशीभूत होकर ...

किसी की गिरी हुई, पड़ी हुई, बिना दी हुई, भूली हुई वस्तु को उठाया हो, किसी ओर को दिया हो/दिलवाया हो, मंदिरजी में डाला हो, मंदिरजी की- सामान्यजन की सम्पत्ति पर कब्जा किया हो/करवाया हो, दान की राशि नहीं चुकायी हो, मंदिरजी की सुविधाओं का कम राशि चुकाकर अधिक उपयोग किया हो, समाज व परिवार में धन की चोरी की हो, व्यापार में कम तोला, कम नापा हो, मिलावट की हो, अधिक मुनाफा लिया हो, संपत्ति के बँटवारे में स्व-पर के लिए पक्षपात किया हो/करवाया हो, चोरी का माल खरीदा/बेचा हो, टैक्स (कर) की चोरी की हो/करवायी हो !

4. कुशील पाप के वशीभूत होकर .....

पर स्त्री - पुरुष की ओर बुरी निगाह से निहारा हो, व्रतादि के दिनों में अब्रह्म (मैथुन) का सेवन किया हो, अमर्यादित दृश्य, पिक्चर, साहित्य देखा हो, पढ़ा हो, बातें की हो, कुशील पाप में आनंद मनाया हो !

5. परिग्रह पाप के वशीभूत होकर ...

आवश्यकता से अधिक चल (रुपया, सोना आदि) संपत्ति का, उपयोग से अधिक अचल (जमीन, मकान आदि) संपत्ति का, क्षमता से अधिक व्यापार का, संग्रह किया हो/ करवाया हो/ आसक्ति का भाव रखा हो । हे प्रभु ! पाँच पाप संबंधी किए हुए समस्त पापों को स्वीकार करता हूँ / करती हूँ (तीन बार...)

तत्संबंधी पाँचों पाप मिथ्या होवें ! (तीन बार...)

मन से प्रायश्चित करता हूँ / करती हूँ । वचन से प्रायश्चित करता हूँ |करती हूँ ।

काय से प्रायश्चित करता हूँ / करती हूँ !

* आत्मशुद्धि की इस बेला में सप्त व्यसन के सेवन से क्रमशः

1. जुआ खेलने के अंतर्गत :- रुपये-पैसे से शर्त लगाई हो, हाऊजी (तम्बोला) खेली हो, लाटरी टिकट खरीदा हो, किसी भी प्रकार का सट्टा लगाया हो, शेयर-वायदा (कमोडिटी) बाजार में रुपया लगाया हो !

2. शराब पीने के अंतर्गत : धूम्रपान, पान-मसाला, तम्बाकू आदि समस्त मादक पदार्थों का सेवन किया हो!

3. माँस भक्षण के अंतर्गत :- जाने-अनजाने में माँस का भक्षण किया हो!

4. शिकार के अंतर्गत :- जाने-अनजाने में मन-वचन-काय से, कृत कारित- अनुमोदना से किसी भी जीव को पीड़ा पहँचाई हो !

5. चोरी के अंतर्गत :- जाने - अनजाने में चोरी की हो / करवाई हो/ अच्छा कहा हो!

6. अनैतिक संबंध के अंतर्गत :- पर स्त्री-पुरुष के साथ रमण किया हो/ अच्छा कहा हो !

7. व्यभिचार के अंतर्गत :- वेश्या गमन किया हो / अच्छा कहा हो !

हे प्रभु ! सप्त व्यसन संबंधी किए हए समस्त पापों को स्वीकार करता हूँ / करती हूँ ! (तीन बार...)

तत्संबंधी मेरे सारे पाप मिथ्या होवें ! (तीन बार...)

मन से प्रायश्चित करता हूँ / करती हूँ । वचन से प्रायश्चित करता हूँ / करती हूँ ! काय से प्रायश्चित करता हूँ / करती हूँ !

* भाव शुद्धि की इस बेला में अष्ट मूलगुण के विपरीत आचरण से क्रमशः

1. मद्य (शराब) त्याग में :- शराब, चलित रस आदि का जाने-अनजार में सेवन किया हो/ करवाया हो !

2. माँस त्याग में :- जाने-अनजाने में माँस भक्षण किया हो / करवाया हो।

3. मधु (शहद) त्याग में :- जाने-अनजाने में शहद का सेवन किया हो। करवाया हो!

4. रात्रि भोजन त्याग में :- रात्रि में भोजन किया हो/ करवाया हो । कहा हो । रात्रि में भोजन बनाया हो/ बनवाया हो / अच्छा कहा हो। रात्रि का बचा हुआ बासी भोजन किया हो/करवाया हो/अच्छा कहा हो। रात्रि में अन्न आदि पिसा हो/ पिसवाया हो/ अच्छा कहा हो !

5. पंच उदम्बर त्याग में :- जाने-अनजाने में उदम्बर फलों का रबड़ पीपल, पाकर (अंजीर), ऊमर, कठूमर } सेवन किया हो !

6. जल के छानने में :- जीवाणी को यथायोग्य स्थान पर पहुँचाने में प्रमाद किया हो, पुराने , पतले, सछिद्र वस्त्र से, रंगीन वस्त्र से जल छाना हो | छनवाया हो/ बिना छना जल उपयोग किया हो !

७. नित्य देव दर्शन में :- नित्य जिनदर्शन के करने में प्रमाद किया हो, वीतराग मुद्रा की, दिगम्बर मुद्रा की अवहेलना की हो/करवाई हो, मंदिरजी में अनावश्यक चर्चा, पर-निन्दा की हो/ करवाई हो/अच्छा कहा हो, अभिषेक, शान्तिधारा व पूजन के समय अपशब्द बोला हो, क्रोध किया हो, जिनवाणी व अन्य उपयोगी वस्तुओं को यथायोग्य स्थान पर नहीं रखा हो, मंदिरजी में चावल आदि अष्ट द्रव्य गिराकर गंदगी फैलाई हो, अज्ञानतावश बच्चों के कारण अशांति व देहगत (डायपर) अशुद्धि फैलायी हो, अयोग्य कार्य किया हो/ करवाया हो/ अच्छा कहा हो !

8. जीवदया पालन करना :- सूक्ष्म व स्थूल जीवों की रक्षा करने में प्रमाद किया हो, सफाई आदि क्रियाओं से त्रस/स्थावर जीवों का घात किया हो/ करवाया हो/अच्छा कहा हो !

हे प्रभु ! अष्ट मूलगुण संबंधी किए हुए समस्त पापों को स्वीकार करता हूँ/करती हूँ... (तीन बार...)

तत्संबंधी सारे पाप मिथ्या होवें ! (तीन बार...)

मन से प्रायश्चित करता हूँ/करती हूँ ! वचन से प्रायश्चित करता हूँ/करती हूँ ! काय से प्रायश्चित करता हूँ/ करती हूँ !

* पाप प्रक्षालन की इस बेला में स्वयं के द्वारा किए गए पापों में क्रमशः

1. अपने जीवन में गर्भपात (साक्षात् सैनी पंचेन्द्रिय जीव का घात) करवाया हो । इस हिंसक कार्य के लिए सलाह दी हो/ सहायता की हो। यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा पाप (साक्षात क्रूर हत्या ) है !

2. मासिक धर्म (अशुद्धि) के समय में भोजन बनाया हो/बनवाया हो/ खिलाया हो/ परोसा हो । बाजार में जाकर खरीददारी की हो, सामाजिक कार्यक्रम, भोज एवं शादियों में शामिल हुए हों, इस विषय में शास्त्र के वचन, गुरुओं के उपदेश की अवहेलना की हो !

३. चार कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) नौ नोकषाय (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा स्त्री-पुरुष-नपुंसक वेद) के निमित्त से, क्रोध के उदय में- वर्षों तक स्वजनों एवं परिजनों से बातचीत न की हो, तीव्र/मंद क्रोध किया हो !

मान के उदय में- गलती होने पर भी क्षमा नहीं मांगी हो, क्षमा नहीं किया हो, अपने को उच्च-दूसरों को तुच्छ समझा हो ! माया के उदय में-स्वार्थी होकर चेतन/अचेतन वस्तु की प्राप्ति के लिए अपने व परायों को ठगा हो !

लोभ के उदय में- भाग्य व पुरुषार्थ के बिना ही सब कुछ पाने की । अभिलाषा की हो, अति महत्त्वाकांक्षा का भाव रखा हो !

४. श्रावक के छह आवश्यक (देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संग तप, दान) का, कुलाचरण (नित्य देव दर्शन, पानी छानकर पीना भोजन त्याग) का पालन नहीं किया हो !

5. सच्चे देव-शास्त्र-गुरु, चतुर्विध संघ (ऋषि मुनि यति अनगार आर्यिका संघ, प्रतिमाधारी व अणुव्रती श्रावक-श्राविका की निन्दा की हो/ झूठा आक्षेप लगाया हो/ दूसरों को बताया हो !

6. मोबाइल (चलंत दूरभाष यंत्र) का उपयोग मंदिरजी व धार्मिक सभा में स्वाध्याय के समय, एकाशन व उपवास में, भोजन करते समय, नित्य कर्म के समय, वाहन चलाते समय , श्मशान घाट में उपयोग किया हो। करवाया हो/ अच्छा कहा हो !

मोबाइल पर हिंसात्मक खेल खेला हो, जुआ खेला हो, दूसरों की निजी जानकारी चुराई हो/उपयोग किया हो, गलत इरादे से सही तथ्यों में छेड़खानी की हो, निषिद्ध वेबसाईट देखी हो, धर्म एवं धार्मिक जनों के विषय में अनावश्यक, असत्य, अनैतिक संदेश फैलाया हो, विद्यार्थी जीवन में माता-पिता से, विवाह के बाद पति-पत्नी ने एक-दूसरे से निजी बातें छिपाई हों, मर्यादाहीन तस्वीरें डाली हों, मुनि-आर्यिका आदि के आहार कक्ष में शुद्धि के वस्त्रों में मोबाइल छुपाया हो, आहारदान के समय उसका उपयोग किया हो!

मोबाइल के उपयोग से हिंसादि पाँच पाप, सप्त व्यसन, अष्ट मूलगुण के विरुद्ध आचरण भाव एवं क्रिया रूप में किया हो !

हे प्रभु । गर्भपात, मासिक धर्म, कषाय, छह आवश्यक, व्रती निन्दा एवं मोबाइल उपयोग संबंधी किए हए समस्त पापों को, स्वीकार करता हूँ/ करती हूँ ! (तीन बार...)

तत्संबंधी मेरे सारे पाप मिथ्या होवें ! (तीन बार...)

मन से प्रायश्चित करता हूँ/करती हैं। वचन से प्रायश्चित करता हूँ । करती हूँ । काय से प्रायश्चित करता हूँ/ करती हूँ !

(नौ बार णमोकार मंत्र जाप्य)

* स्वयं की आलोचना के पश्चात्, आत्म कल्याण के लिए शुभ भावनाएँ भाता हूँ !

हे वीतरागी प्रभु !
सद्बुद्धि की प्राप्ति हो,
जिनधर्म की रक्षा, श्रद्धा, प्रभावना का भाव बना रहे,
सभी के प्रति प्रेम एवं विनय का भाव बना रहे,
अशुभ कर्मों का क्षय हो, शुभ आयु का बंध हो,
रत्नत्रय एवं भगवत्गुणों की प्राप्ति हो,
आयु के अंत में चेतना पूर्वक समाधिमरण हो,
मोक्ष प्राप्ति तक आपके चरण मेरे हृदय में, मेरा हृदय आपके चरणों में लीन रहे !

(नौ बार णमोकार मंत्र जाप्य)

* प्रतिक्रमण उच्चारण संबंधी दोषों की क्षमायाचना

हे उपकारी प्रभु !

मन-वचन-काय की चंचलता से, प्रमाद से, अज्ञानता से पाठ के बोलने में गलतियाँ हो गई हों तो,

हे प्रभु ! कृपा कर.... क्षमा प्रदान करना ! (तीन बार...)

श्री पंचपरमेष्ठी के चरणों में.... नमोस्तु / नमोस्तु / नमोस्तु /

(नौ बार णमोकार मंत्र जाप्य)