।। सम्मेद शिखर तीर्थ वंदना माहात्म्य ।।

जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में दो ही तीर्थ शाश्वत हैं-१. अयोध्या २. सम्मेदशिखर तीर्थ। जो अनादिनिधन तीर्थ हैं वे शाश्वत कहलाते हैं। अनादिकाल से अयोध्या में तीर्थकर भगवान जन्म लेते रहे हैं और सम्मेदशिखर तीर्थ से मोक्ष को प्राप्त करते रहे हैं लेकिन हुण्डावसर्पिणी काल के दोष के कारण वर्तमान काल में अयोध्या नगरी में मात्र पाँच तीर्थंकरों ने ही जन्म लिया, जिनके नाम हैं- भगवान आदिनाथ, अजितनाथ, अभिनंदनाथ, सुमतिनाथ एवं अनंतनाथ। इसी प्रकार कालदोष के कारण सम्मेदशिखर से कुल २० तीर्थंकरों ने ही मोक्ष प्राप्त किया। अन्य तीर्थंकरों में भगवान ऋषभदेव ने कैलाशपर्वत से, भगवान वासुपूज्यनाथ ने चम्पापुर से, भगवान नेमिनाथ स्वामी ने गिरनार पर्वत से एवं भगवान महावीर स्वामी ने पावापुरी से मोक्ष प्राप्त किया है अतः यह सम्मेदशिखर एवं अयोध्या दोनों ही महान तीर्थ हैं। आगम के अनुसार सम्मेदशिखर तीर्थ की वंदना करने वाला भव्य प्राणी तो आगामी ४९ भवों में नियम से मोक्ष को प्राप्त करता ही है अतः प्रत्येक भव्य प्राणी को अपने जीवन में कम से कम एक बार सम्मेदशिखर की यात्रा अवश्य करना चाहिए। सम्मेदशिखर तीर्थ पर बने टोंकों का महत्त्व एवं उनके दर्शन वंदन से प्राप्त होने वाले लाखों उपवासों के फल को यहाँ संक्षेप में वर्णित किया गया है।

१. कुंथुनाथ भगवान की टोंक- इस टोंक का नाम ज्ञानधर कूट है। यहाँ से कुंथुनाथ भगवान के साथ एक हजार मुनियों ने अपने कर्मों का नाश कर मोक्ष प्राप्त किया था। इसके अलावा छियानवे कोड़ाकोड़ी, छियानवे कोटि, बत्तीस लाख, छियानवे हजार, सात सौ बयालिस अन्य मुनियों ने यहाँ से निर्वाण प्राप्त किया।

* भाव सहित इस टोंक के वंदन से एक कोटि उपवास का फल प्राप्त होता है।

२. नमिनाथ भगवान की टोंक- इस टोंक का नाम मित्रधर कूट है। यहाँ से इक्कीसवें तीर्थकर भगवान नमिनाथ ने एक हजार मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया था। इनके अलावा नौ सौ कोड़ाकोड़ी, एक अरब, पैंतालिस लाख, सात हजार नौ सौ बयालिस मुनिगण सिद्ध अवस्था को प्राप्त हुए हैं। इस टोंक के वंदन से समस्त दुख-दारिद्र का नाश होता है।

* भाव सहित इस टोंक के वंदन से एक कोटि उपवास का फल प्राप्त होता है।

३. भगवान अरहनाथ की टोंक- इस टोंक का नाम नाटक कूट है। यहाँ से अरहनाथ भगवान ने एक हजार अन्य साधुओं के साथ मोक्षपद प्राप्त किया था। इसी टोंक से निन्यानवे कोटि, निन्यानवे लाख एवं नौ सौ निन्यानवे अन्य साधुओं ने मोक्ष प्राप्त किया।

* भाव सहित इस टोंक के वंदन से छियानवे कोटि उपवास का फल प्राप्त होता है।

४. श्री मल्लिनाथ भगवान की टोंक- इस टोंक का नाम सम्बल कूट है। यहाँ से भगवान मल्लिनाथ स्वामी ने पाँच सौ मुनियों के साथ मोक्ष पद को प्राप्त किया था। इनके अलावा छियानवे कोटि अन्य महामुनियों ने समस्त घातिया-अघातिया कर्मों का नाश कर सिद्धपद को प्राप्त किया था।

* भाव सहित इस टोंक के वंदन से एक कोटि प्रोषधोपवास (एक एकाशन, एक उपवास एवं फिर एक एकाशन) का फल प्राप्त होता है।

५. भगवान श्रेयांसनाथ की टोंक- इस टोंक का नाम संकुल कूट है। यहाँ से श्रेयांसनाथ भगवान ने एक हजार मुनियों के साथ मोक्षपद प्राप्त किया था। इसी टोंक से छियानवे कोटा-कोटि, छियानवे कोटि, छियानवे लाख, नौ हजार पाँच सौ बयालिस अन्य मुनियों ने भी शिवपथ प्राप्त किया।

* भाव सहित इस टोंक के वंदन से एक कोटि उपवास का फल प्राप्त होता है।

६. भगवान पुष्पदंतनाथ की टोंक- इस टोंक का नाम सुप्रभ कूट है। यहाँ से भगवान पुष्पदंतनाथ ने एक हजार साधुओं के साथ मोक्ष प्राप्त किया था। यहीं से एक कोड़ाकोड़ी, निन्यानवे लाख, सात हजार, चार सौ अस्सी मुनियों ने भी मोक्ष पद को प्राप्त किया।

* भाव सहित इस टोंक के वंदन से एक कोटि उपवास का फल प्राप्त होता है।

७. भगवान पद्मप्रभ की टोंक- इस टोंक का नाम मोहन कूट है। यहाँ से भगवान पद्मप्रभ ने तीन सौ चौबीस मुनियों के साथ निर्वाणपद प्राप्त किया था। इसके अलावा यहाँ से निन्यानवे कोटि, सत्तासी लाख, तेतालिस हजार सात सौ सत्ताइस मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया।

* भाव सहित इस टोंक के वंदन से एक कोटि उपवास का फल प्राप्त होता है।

८. भगवान मुनिसुव्रतनाथ की टोंक- इस टोंक का नाम निर्जर कूट है। यहाँ से भगवान मुनिसुव्रतनाथ ने एक हजार साधुओं के साथ मोक्ष प्राप्त किया था। इनके अलावा निन्यानवे कोटाकोटि, सत्तानवे कोटि, नौ लाख, नौ सौ निन्यानवे मुनिराजों ने मोक्षपद को प्राप्त किया।

* भाव सहित इस टोंक के वंदन से एक हजार प्रोषध उपवास का फल प्राप्त होता है।

९. भगवान चन्द्रप्रभ की टोंक- इस टोंक का नाम ललित कूट है। यहाँ से चन्द्रप्रभु भगवान ने एक हजार मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया था। इनसे अतिरिक्त इस कूट से नौ सौ चौरासी अरब, बहत्तर कोटि, अस्सी लाख, चौरासी हजार, पाँच सौ पंचानवे साधओं ने सिद्धपद को प्राप्त किया है।

* भाव सहित इस टोंक का दर्शन करने से छियानवे लाख उपवास का फल मिलता है।

१०. भगवान आदिनाथ की टोंक- वास्तव में तो भगवान आदिनाथ ने कैलाशपर्वत से दस हजार मनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया था लेकिन सम्मेदशिखर तीर्थ पर भी भगवान आदिनाथ की महिमाशाली टोंक बनी हुई है।

* भाव सहित इस टोंक का दर्शन-वंदन करने से अनंत पुण्य का बंध होता है।

११. भगवान शीतलनाथ की टोंक- इस टोंक का नाम विद्यतवर कट है। यहाँ से भगवान शीतलनाथ ने एक हजार साधुओं के साथ मोक्ष प्राप्त किया था। इनसे अतिरिक्त अट्ठारह कोड़ाकोड़ी, बयालिस कोटि, बत्तीस लाख, बयालिस हजार, नौ सौ पाँच मुनिगण मोक्ष सिधारे हैं।

* भाव सहित इस टोंक का दर्शन-वंदन करने से एक कोटि उपवास का फल प्राप्त होता है।

१२. अनंतनाथ भगवान की टोंक- इस टोंक का नाम स्वयंभू कूट है। यहाँ से अनंतनाथ भगवान ने मोक्ष प्राप्त किया था। उनके साथ सात हजार साधुओं ने भी अपने समस्त घातिया कर्मों का नाश कर मोक्ष प्राप्त किया था। यहाँ से छियानवे कोड़ाकोड़ी, सत्तर करोड़, सत्तर लाख, सत्तर हजार, सात सौ अन्य मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया था।

* भाव सहित इस टोंक का वंदन करने से नौ करोड़ उपवास का फल प्राप्त होता है।

१३. भगवान संभवनाथ की टोंक- इस टोंक का नाम धवल कूट है। यहाँ से भगवान संभवनाथ ने एक हजार मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया था। इसके अलावा यहाँ से नौ कोड़ाकोड़ी, बहत्तर लाख, बयालिस हजार पाँच सौ मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया।

* भाव सहित इस टोंक का वंदन करने से बयालिस लाख उपवास का फल मिलता है।

१४. भगवान वासुपूज्य की टोंक- भगवान वासुपूज्य स्वामी ने चम्पापुर (मंदारगिरि) तीर्थ से छ: सौ एक साधुओं के साथ मोक्ष प्राप्त किया था। बारहवें तीर्थकर भगवान वासुपूज्यनाथ ही एक ऐसे तीर्थकर हैं जिनके पाँचों कल्याणक एक ही स्थान अर्थात् चम्पापुर से हुए हैं। सम्मेदशिखर तीर्थ पर भी भगवान वासुपूज्य की टोंक बनी हुई है।

* भाव सहित इस टोंक का वंदन करने से अतिशायी सुख की प्राप्ति होती है।

१५. भगवान अभिनंदननाथ की टोंक- इस टोंक का नाम आनन्द कूट है। यहाँ से भगवान अभिनंदननाथ ने एक हजार मुनियों के साथ सिद्धपद प्राप्त किया था। इनके अलावा यहाँ से बहत्तर कोड़ाकोड़ी, सत्तर कोटि, सत्तर लाख, बयालिस हजार, सात सौ मुनियों ने मोक्षपद प्राप्त किया।

* भाव सहित इस टोंक का वंदन करने से एक लाख उपवास का फल प्राप्त होता है।

१६. भगवान धर्मनाथ की टोंक- इस टोंक का नाम सुदत्त कूट है। यहाँ से भगवान धर्मनाथ स्वामी ने आठ सौ एक मुनियों के साथ सर्व कर्मों का नाश करके निर्वाणपद प्राप्त किया था। यहाँ से उनतीस कोड़ाकोड़ी, उन्नीस कोटि, नौ लाख, नौ हजार, सात सौ पंचानवे साधुओं ने मोक्ष प्राप्त किया।

* भाव सहित इस टोंक का वंदन करने से एक कोटि उपवास का फल प्राप्त होता है।

१७. भगवान सुमतिनाथ की टोंक- इस टोंक का नाम अविचल कूट है। यहाँ से भगवान सुमतिनाथ ने एक हजार साधुओं के साथ मोक्ष प्राप्त किया था। इसके अलावा एक कोड़ाकोड़ी, चौरासी कोटि, बहत्तर लाख, इक्यासी हजार, सात सौ इक्यासी मुनियों ने यहाँ से मोक्ष प्राप्त किया है।

* भाव सहित इस टोंक का वंदन करने से नव कोटि, बत्तीस लाख उपवास का सुफल प्राप्त होता है।

१८. भगवान शांतिनाथ की टोंक- इस टोंक का नाम कुन्दप्रभ कूट है। यहाँ से भगवान शांतिनाथ ने नौ सौ मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया था। इनके अलावा नौ कोटि-कोटि, नौ लाख, नौ हजार, नौ सौ निन्यानवे महामुनियों ने कठोर तपश्वरण करके मोक्ष प्राप्त किया था।

* भाव सहित इस टोंक का दर्शन-वंदन करने से एक कोटि उपवास का फल प्राप्त होता है।

१९. भगवान महावीर टोंक- कालदोष के कारण वर्तमान में भगवान महावीर स्वामी ने पावापुरी जल मंदिर (बिहार) से निर्वाणपद प्राप्त किया। सम्मेदशिखर में भी इनके चरणचिन्ह बने हुए हैं।

* इस टोंक का दर्शन-वंदन करने से सम्पूर्ण रोग, दुख-दारिद्र आदि का विनाश होता है।

२०. भगवान सुपार्श्वनाथ की टोंक- इस टोंक का नाम प्रभास कूट है। यहाँ से सातवें तीर्थंकर भगवान सुपार्श्वनाथ ने पाँच सौ मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया था। इसके अलावा उनचास कोटि-कोटि, चौरासी कोटि, बत्तीस लाख, सात हजार, सात सौ बयालिस महामुनियों ने समस्त कर्मों का नाशकर शिवपद की प्राप्ति की थी।

* भाव सहित इस टोंक का दर्शन-वंदन करने से बत्तीस कोटि उपवास का फल प्राप्त होता है।

२१. भगवान विमलनाथ की टोंक- इस टोंक का नाम सुवीर कूट है। यहाँ से भगवान विमलनाथ स्वामी ने छ: सौ मुनियों के साथ घातिया-अघातिया कर्मों का नाश कर सिद्धपद प्राप्त किया था। इसके अलावा सत्तर कोड़ाकोड़ी, साठ लाख, छ: हजार, सात सौ बयालिस मुनियों ने यहाँ से मोक्षपद प्राप्त किया था।

* भाव सहित इस टोंक का दर्शन-वंदन करने से एक कोटि उपवास का फल प्राप्त होता है।

२२. भगवान अजितनाथ की टोंक- इस टोंक का नाम सिद्धवर कूट है। यहाँ से भगवान अजितनाथ ने एक हजार महामुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया था। यहाँ से एक अरब, अस्सी कोटि, चौवन लाख अन्य मुनियों ने भी निर्वाणपद की प्राप्ति की थी।

* भाव सहित इस टोंक का दर्शन करने से बत्तीस कोटि उपवास का फल प्राप्त होता है।

२३. भगवान नेमिनाथ की टोंक- भगवान नेमिनाथ ने गुजरात प्रान्त में स्थित गिरनार पर्वत से शंबु, प्रद्युम्न आदि महामुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया था। इनके अलावा गिरनार पर्वत से बहत्तर कोटि एवं सात सौ अन्य महामुनियों ने भी मोक्षपद प्राप्त किया। सम्मेदशिखर में भी भगवान नेमिनाथ की टोंक के दर्शन होते हैं।

* इस टोंक का दर्शन कर सभी भक्तजन अनंतगुणा पुण्य संचित करते हैं।

२४. भगवान पार्श्वनाथ की टोंक- इस टोंक का नाम सुवर्णभद्र कूट है। यह सम्मेदशिखर पर्वत की सबसे ऊँची एवं आखिरी टोंक है। यहाँ से तेईसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ ने छत्तिस मुनियों के साथ मोक्ष की प्राप्ति की थी। चूँकि वर्तमानकाल में सम्मेदशिखर से मोक्ष प्राप्त करने वाले अंतिम तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ हैं अतः इस पूरे पर्वत को 'पार्श्वनाथ हिल' के नाम से ही जाना जाता है। यहाँ से अन्य बयासी कोटि, चौरासी लाख, पैंतालिस हजार, सात सौ बयालिस मुनियों ने समस्त कर्मों का नाश कर मोक्षपद प्राप्त किया।

* भाव सहित इस टोंक का वंदन करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है और सोलह कोटि उपवास का फल भी प्राप्त होता है।

तीर्थकर भगवन्तों के गणधरों के मोक्ष का स्थान निश्चित नहीं है फिर भी सम्मेदशिखर तीर्थ की प्रथम गणधर टोंक पर समस्त गणधरों के चरणों के दर्शन होते हैं जिनके वंदन से भक्तजन असीम पुण्य का वर्धन करते हैं।

गुरु के बिना संसार समुद्र नहीं तर सकते

न विना यानपात्रेण तरितुं शक्यतेऽर्णवः।
नतें गुरूपदेशाच्च सुतरोऽयं भवार्णवः।।
बन्धवो गुरवश्चेति द्वये संप्रीतये नृणाम्।
बन्धवोऽत्रैव संप्रीत्यै गुरवोऽमुत्र चात्र च।।

जिस प्रकार जहाज के बिना समुद्र नहीं तिरा जा सकता है उसी प्रकार गुरु के उपदेश के बिना यह संसाररूपी समुद्र नहीं तिरा जा सकता है। इस संसार में भाई और पुत्र दोनों ही मुग्यों की प्रीति के लिए होते हैं.। किन्तु भाई तो इस लोक में ही प्रीति उत्पन्न करते हैं और गरु इस लोक तथा पसोक दोनों ही लोकों में विशेषरूप से प्रीति के लिए होते हैं। अर्थात् भाई से इस लोक में ही सुख मिलता है तथागुरु से इस भव और परभव में भी सर्वत्र सुख, कल्याण और मोक्ष मार्ग की प्राप्ति होती है। अतः सदैव गुरु के चरों की सेवा करते रहना चाहिए।

-भगवज्जिनसेनाचार्य