।। चम्पापुर तीर्थ ।।

९. तीर्थंकर वासुपूज्य जन्मभूमि

चम्पापुर भारत की प्राचीन सांस्कृतिक नगरियों में से है। भगवान ऋषभदेव की आज्ञा से इन्द्र ने जिन ५२ जनपदों की रचना की थी, उनमें एक अंग जनपद भी था जिसकी राजधानी चम्पानगरी मानी जाती है। बारहवें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य की जन्मभूमि होने का तो इसे सौभाग्य प्राप्त है ही, किन्तु यहाँ उनके पाँचों कल्याणक भी हुए हैं इसलिए यह पावन सिद्धक्षेत्र भी कहलाता है। किसी तीर्थंकर के पाँचों कल्याणक एक ही जगह होने का इतिहास मात्र चम्पापुर में ही मिलता है, अन्यत्र कहीं नहीं। राजा वसुपूज्य एवं रानी जयावती से फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशी के दिन तीर्थंकर वासुपूज्य का जन्म हुआ था। पाँच बाल ब्रह्मचारी तीर्थंकरों में से वासुपूज्य भगवान प्रथम बालयति हुए हैं जिन्होंने विवाह न करके संसार से वैरागी होकर दीक्षा धारण कर ली थी। इनके पूर्व के ग्यारह तीर्थंकरों में से सभी ने विवाह करके राज्य संचालन करने के पश्चात् दीक्षा धारण की थी। भगवान वासुपूज्य ने चम्पापुर के मनोहर उद्यान में जाकर जिनदीक्षा ग्रहण की थी और वहीं उनको केवलज्ञान एवं मोक्ष हुआ जो आजकल मन्दारगिरि के रूप में माना जाता है। यह मन्दारगिरि उस काल में चम्पानगरी के ही बाह्य उद्यान का पर्वत था अतः चम्पापुर में ही सम्मिलित था। इस विषय में उत्तरपुराणग्रंथ की मान्यता यह है कि वासुपूज्य भगवान के गर्भ और जन्मकल्याणक चम्पानगरी में मनाए गए और मन्दारगिरि के मनोहर उद्यान में दीक्षा एवं ज्ञान कल्याणक हुए तथा मंदारगिरि से ही भगवान ने निर्वाण पद प्राप्त किया था। उत्तरपुराण में वर्णन है-

स तैः सह विहृत्याखिलार्यक्षेत्राणि तर्पयन्।
धर्मवृष्ट्या क्रमात्प्राप्य चम्पामब्दसहस्रकम् ।।५०।।
स्थित्वाऽत्र निष्क्रियं मासं नद्याराजतमालिका--।
सञ्ज्ञायाश्चित्तहारिण्याः पर्यन्तावनिवर्तिनि।।५१।।
अग्रमन्दरशैलस्य सानुस्थानविभूषणे।
वने मनोहरोद्याने पल्यंकासनमाश्रितः।।५२।।
मासे भाद्रपदे ज्योत्स्नाचतुर्दश्यापराण्हके।
विशाखायां ययौ मुत्तिंâ चतुर्णवतिसंयतैः।।५३।।

अर्थात् भगवान ने इन सबके (मुनि, आर्यिका आदि) साथ समस्त आर्यक्षेत्रों में विहार कर उन्हें धर्मवृष्टि से संतृप्त किया और क्रम-क्रम से चम्पानगरी में आकर एक हजार वर्ष तक रहे। जब आयु में एक मास शेष रह गया, तब योग निरोध कर रजतमालिका नामक नदी के किनारे की भूमि पर वर्तमान मन्दारगिरि के शिखर को सुशोभित करने वाले मनोहर उद्यान में पर्यंकासन से स्थित हुए तथा भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी के दिन सायंकाल के समय विशाखा नक्षत्र में चौरानवे मुनियों के साथ मुक्ति को प्राप्त हुए। वर्तमान में मन्दारगिरि चम्पापुर से लगभग ५० किमी. दूर अवस्थित है, सभी तीर्थयात्री दर्शन करने के लिए बड़ी श्रद्धा से वहाँ जाते हैं। चम्पापुर तीर्थ भागलपुर रेलवे स्टेशन से तीन किलोमीटर दूर नाथनगर में पड़ता है। जयपुर के हवामहल की शैली पर बने क्षेत्र का अप्रतिम विशाल भव्य द्वार आगत श्रद्धालुओं और भक्तों का स्वागत करता है। मंदिर के पूर्व भाग में सहस्राब्दियों पुराने दो प्राचीन कीर्तिस्तंभ विद्यमान हैं। कहते हैं कि इन स्तंभों के नीचे से सुरंग मंदारगिरि तथा सम्मेदशिखर जी की चन्द्रप्रभ टोंक तक जाती थी। ऐसे ही दो स्तम्भ मंदिर के पूर्वभाग में थे जो कालक्रम में नष्ट हो गये।

आदिकाल से ही चम्पापुर अनेकानेक महत्वपूर्ण घटनाओं एवं ऐतिहासिक कथानकों का इतिहास अपने अन्दर में संजोए हुए है, जिसके कारण चम्पापुर का कण-कण पवित्र एवं पूजनीय है। यहाँ मंदिर की मूलवेदी में भगवान वासुपूज्य की लाल माणिक्य वर्ण की अति मनोज्ञ पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसी मूलवेदी में एक अष्टधातु की मूर्ति तथा भगवान वासुपूज्य के प्राचीन चरण भी विराजमान हैं। चार कोनों पर चार वेदी बनी हुई हैं उनमें श्वेत पाषाण एवं अष्टधातु की मनोहारी प्रतिमाएँ हैं। मूलमंदिर की परिक्रमा के बाहर दक्षिण की ओर के मंदिर में दो से चार हजार वर्ष पुरानी कुशाणकालीन, गुप्तकालीन एवं पालयुगीन प्रतिमाएँ पुरातत्व की धरोहर के रूप में स्थापित हैं। पास में ही एक अन्य वेदी में लालवर्ण की वासुपूज्य भगवान की एक पुट उत्तुंग पद्मासन प्रतिमा विराजमान हैं। भगवान महावीर स्वामी के २५००वें निर्वाण महोत्सव के पश्चात् चम्पापुर तीर्थ के नये कार्यकर्ताओं ने इस तीर्थ का अच्छा विकास और उद्धार किया है। नये जिनमंदिरों में एक ओर विदेह क्षेत्र में विद्यमान प्रथम तीर्थंकर सीमन्धर स्वामी का समवसरण मंदिर है तो दूसरी ओर काँच का भव्य कलात्मक मंदिर है।

मंदिर जी के पूर्व में मूलवेदी के सम्मुख ७१ पुâट उत्तुंग गगनचुम्बी मानस्तंभ है, मानस्तंभ के तीनों ओर २४ तीर्थंकरों की २४ टोंक हैं। शुरू में भगवान बाहुबली का जिनालय एवं अंतिम में भगवान वासुपूज्य के प्रथम शिष्य ‘‘मन्दर’’ गणधर की चरणपादुका हैं। इसी अहाते में भगवान शांतिनाथ जिनमंदिर, भगवान महावीर जिनमंदिर एवं ध्यानस्थ मुद्रा में खड़े भगवान पाश्र्वनाथ की सात फणों के सर्प वाली काले पाषाण की प्रतिमा वाला रमणीय काँच मंदिर है। इसी के पास कृत्रिम नहर से घिरे भव्य जलमंदिर में भगवान वासुपूज्य की दस टन वजन वाली सवा पन्द्रह फुट खड्गासन प्रतिमा विशाल कमल पर विराजमान है। तीर्थयात्रियों के लिए आधुनिक सुविधासम्पन्न धर्मशाला है। जनहित में विद्यालय, चिकित्सालय एवं वाचनालय है। इस मंदिर के सामने एक बीसपंथी मंदिर मूलनायक भगवान वासुपूज्य का है।

तीर्थंकर वासुपूज्य के पाँचों कल्याणकों से पावन तीर्थ चम्पापुर एवं मन्दारगिरि सिद्धक्षेत्र को मेरा शत-शत नमन।