।। कम्पिल जी तीर्थ ।।

१०. तीर्थंकर विमलनाथ जन्मभूमि

उत्तरप्रदेश के फर्रुखाबाद जनपद में स्थित ‘‘कम्पिल’’ नगरी गंगा नदी के किनारे बसी हुई है। कम्पिल या काम्पिल्यपुरी भारत के अतिप्राचीन वंदनीय और दर्शनीय स्थानों में से एक है। जैन शास्त्रों में तो इसका इतिहास आता ही है, वेदों में भी ‘‘काम्पिल्यपुरी’’ के नाम से इसकी प्रसिद्धि है। कहीं-कहीं इसका नाम भोगवती और माकन्दी भी आया है।

वर्तमान के चौबीस तीर्थंकरों में से १३ वें तीर्थंकर १००८ भगवान ‘‘विमलनाथ’’ की जन्मभूमि के साथ-साथ यहाँ उनके चार कल्याणक हुए हैं। पिता श्री महाराज कृतवर्मा के राजमहल एवं माता जयश्यामा के आंगन में वहाँ १५ माह तक कुबेर ने रत्नाव्रष्टि की तथा सौधर्म इन्द्र ने कम्पिल नगरी में माघ शु. ४ को आकर तीर्थंकर के जन्मकल्याणक का महामहोत्सव मनाया था पुन: युवावस्था में विमलनाथ तीर्थंकर का विवाह हुआ और दीर्घकाल तक राज्य संचालन कर उन्होंने माघ शु. चतुर्थी को ही अपराण्ह काल में सहेतुक वन में जैनेश्वरी दीक्षा लेकर मोक्षमार्ग का प्रवर्तन किया था। उसके बाद उसी कम्पिल के उद्यान में ही माघ शुक्ला षष्ठी को केवलज्ञान उत्पन्न होने पर समवसरण की रचना हुई थी। तब उन्होंने दिव्यध्वनि के द्वारा संसार को सम्बोधन प्रदान किया था। कम्पिला में एक अघातिया टीला है जिसके बारे में यह अनुश्रुति है कि यहीं पर विमलनाथ ने घातिया कर्मों का नाशकर केवलज्ञान प्राप्त किया था। यह टीला किसी प्राचीन जैन मंदिर का ध्वंसावशेष है। खुदाई होने पर यहाँ कभी-कभी जैन मूतियाँ मिल जाती हैं। कहते हैं कि भगवान आदिनाथ, पाश्र्वनाथ एवं महावीर स्वामी के समवसरण से भी यह धरती परम पावन हो चुकी है। महासती द्रौपदी का जन्म एवं स्वयंवर भी यहीं हुआ था जिसकी स्मृति में आज भी वहाँ ‘‘द्रौपदी कुण्ड’’ बना हुआ है।

प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर

यहाँ १४०० वर्ष से भी प्राचीन देवों द्वारा निर्मित एक दिगम्बर जैन मंदिर है। जिसमें गंगानदी के गर्भ से प्राप्त चतुर्थकालीन श्यामवर्णी भगवान विमलनाथ की प्रतिमा विराजमान है और दिगम्बर जैन शिल्पकला की प्राचीनता का दिग्दर्शन करा रही है। यात्रियों के ठहरने हेतु यहाँ तीन दिगम्बर जैन अतिथि गृह उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त पर्यटन विभाग की ओर से पर्यटकों के लिए एक आधुनिक धर्मशाला बनी है। नूतन रूप में वहाँ एक श्वेताम्बर मंदिर और उनकी धर्मशाला भी है। हिन्दुओं तथा जैनियों के ऐतिहासिक धार्मिक स्थानों से प्रभावित होकर भारत सरकार ने कम्पिल जी को पर्यटन केन्द्र घोषित कर दिया है तथा उसके विकास हेतु सरकारी स्तर पर कई योजनाएँ चल रही हैं। वहाँ भगवान विमलनाथ की विशाल खड्गासन प्रतिमा विराजमान है।

वर्तमान समय में कम्पिल जी तीर्थक्षेत्र पर जैन आबादी न होने से यह क्षेत्र जैनत्व स्तर पर विकास की ओर उन्मुख नहीं हो सका है किन्तु वहाँ की कार्यकारिणी ने कुछ नूतन योजनाएँ प्रारंभ की हैं ताकि तीर्थक्षेत्र का विकास और विस्तार होकर अनूठा एवं अनुपम ध्यान-आराधना का स्थल बन सके।

कम्पिलानगरी प्रसिद्ध स्थान अथवा सांस्कृतिक केन्द्र होने के कारण यहाँ अनेक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक घटनाएँ घटी हैं। तीर्थंकर के कल्याणकों के अतिरिक्त यहाँ हरीषेण चक्रवर्ती भी हुए जिनके पिता पद्मनाभ ने नगर के मनोहर उद्यान में अनन्तवीर्य जिनेन्द्र से मुनि दीक्षा ली और दीक्षा वन में ही तप करके केवलज्ञान प्राप्त किया। आचार्य रविषेण ने हरिषेण चक्रवर्ती के संबंध में पद्मपुराण में कहा है कि-‘‘कांपिल्य नगर में इक्ष्वाकुवंशी राजा हरिकेतू की रानी के हरिषेण नाम का दसवाँ प्रसिद्ध चक्रवर्ती हुआ। उसने अपने राज्य की समस्त पृथ्वी को जिनप्रतिमाओं से अलंकृत किया था तथा भगवान मुनिसुव्रतनाथ के तीर्थ में सिद्धपद प्राप्त किया था।’’

इसी प्रकार यहीं पर बारहवें चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त भी हुए जिन्होंने सम्पूर्ण भरतक्षेत्र पर विजय प्राप्त कर कम्पिला को राजनीतिक केन्द्र बनाया था। भगवान नेमिनाथ और पाश्र्वनाथ का अन्तर्वर्ती काल ब्रह्मदत्त का माना जाता है। विषयलम्पटी होने के कारण इस चक्रवर्ती के नरक में जाने का उल्लेख है। भगवान विमलनाथ की जन्मभूमि ऐतिहासिक नगरी काम्पिल्यपुरी को शत-शत नमन।