।। अयोध्या तीर्थ ।।

१. तीर्थंकर ऋषभदेव जन्मभूमि
(शाश्वत तीर्थ एवं वर्तमानकालीन पाँच तीर्थंकरों की जन्मभूमि)

यह तीर्थ पूर्वी उत्तरप्रदेश के फैजाबाद जनपद में अवस्थित है । अयोध्या में भगवान् आदिनाथ, अजितनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ और अनन्तनाथ इन पाँच तीर्थंकरों के जन्म हुए तथा आज से ९ लाख वर्ष पूर्व मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी ने जन्म लेकर अपने आदर्शों के द्वारा नगरी को राममय बना दिया । जैनधर्म के अनुसार अनन्त तीर्थंकरों की जन्मभूमि होने से यह अयोध्या नगरी शाश्वत एवं अनादि तीर्थ तो है ही, वर्तमान में वहाँ सभी धर्मों के अनुयायी अपने-अपने ढंग से उसे पवित्र तीर्थ मानते हैं । हिन्दू धर्मानुयायियों के वहाँ लगभग १५००० छोटे-बड़े मंदिर हैं तथा चौबीस घंटे राम नाम की ध्वनि वहाँ के वातावरण को पवित्र बनाए हुए है।

वर्तमान के दिगम्बर जैन मंदिर-

१. इस शाश्वत जैन तीर्थ पर कटरा मुहल्ले में एक प्राचीन जैन मंदिर है । वहाँ सन् १९५२ में परम पूज्य आचार्यरत्न श्री देशभूषण महाराज की प्रेरणा से भगवान आदिनाथ, भरत, बाहुबली की खड्गासन प्रतिमाएँ विराजमान हुई थीं। इस मंदिर परिसर में ४ वेदियाँ हैं तथा प्रांगण के बीचोंबीच में तीर्थंकर सुमतिनाथ के जन्मस्थल का प्रतीक सुमतिनाथ की टोंक है जिसमें भगवान सुमतिनाथ के चरण स्थापित हैं । पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी ने फरवरी १९९३ में इसका जीर्णोद्धार करवाते हुए एक शिलापट्ट पर सुमतिनाथ भगवान् का पूर्ण परिचय तथा अर्घ उत्कीर्ण कराकर लगवाया है ।

२. तीर्थंकरत्रय टोंक

यहाँ पास में ही (कटरा में) एक स्थल पर पांडुकशिला बनी हुई है । मार्च १९९५ में श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से यहाँ तीर्थंकर श्री शांतिनाथ, और एवे कुन्थुनाथ अरहनाथ के चरण विराजमान किए गए हैं । अत: भक्तजन हस्तिनापुर का स्मरण करते हुए इस टोंक की वंदना करते हैं ।

३. भगवान ऋषभदेव टोंक

स्वर्गद्वार मोहल्ले में भगवान् ऋषभदेव के जन्मस्थल के प्रतीक में उनकी टोंक है जहाँ १६ सीढ़ी ऊपर चढ़कर भगवान के प्राचीन चरण हैं । यहाँ का प्राचीन इतिहास तो चमत्कारिक रहा ही है, नये साक्षात् चमत्कार ने उसे सचमुच अतिशयकारी सिद्ध कर दिया है । ‘‘१९ जून १९९३ को पूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी जब वहाँ अपने संघ सहित दर्शन करने गर्इं, तब अकस्मात् वहाँ उनकी आँखों से अश्रुधारा बह चली और कुछ क्षणों के पश्चात् वे प्रभु के चरणों मेंं ध्यान मग्न हो गर्इं पुन: न जाने क्या अन्तर्प्रेरणा मिली कि उन्होंने अयोध्या में ही अपना चातुर्मास करने का पक्का निर्णय ले लिया जिससे तीर्थ का उद्धार हो गया । इस ऐतिहासिक टोंक पर चरणों के पास ही दीवार में भगवान ऋषभदेव के जीवन परिचय और अर्घ से उत्कीर्ण एक शिलापट्ट लगवाया गया है तथा बाहर बरामदे में भगवान की स्तुति का एक शिलापट्ट एवं माताजी की स्मृति को चिरस्थाई बनाने हेतु मेरे (चन्दनामती) द्वारा रचित उनकी एक संस्कृत की स्तुति का पत्थर मार्च १९९४ में लगाया गया है । पुन: सन् २०११ में पूज्य माताजी की प्रेरणा से इस जन्मभूमि टोंक पर भगवान ऋषभदेव का भव्य सुन्दर जिनमंदिर बनवाया गया है, ये जिनालय लखनऊ प्रवासी (टिकैतनगर निवासी) श्री कैलाशचंद जैन सर्राफ के सौजन्य से निर्मित है ।

४. लघु कैलाशपर्वत

इसी प्रकार से एक दिन पूज्य माताजी माघ कृष्णा चतुर्दशी (सन् १९९४) को ऋषभदेव निर्वाण दिवस पर वहाँ निर्वाणलाडू चढ़वाने के लिए गर्इं, तो अनायास उनके मन में विचार आया कि यहाँ वैâलाशपर्वत बनाना चाहिए। उनकी प्रेरणा के फलस्वरूप वहाँ बरामदे में ४ अप्रैल १९९४ को ही एक लघु कैलाशपर्वत का निर्माण करके उस पर भगवान ऋषभदेव के चरण विराजमान किये गये। उसके बाद से वहीं निर्वाणलाडू का कार्यक्रम मनाया जाता है ।

५. अजितनाथ टोंक

बेगमपुरा मुहल्ले में यह टोंक है जहाँ भगवान अजितनाथ के चरण विराजमान हैं । यहाँ काफी खुला स्थान है और फरवरी सन् १९९४ में इसका जीर्णोद्धार हुआ तथा अजितनाथ भगवान का पूर्ण परिचय अर्घावली का एक शिलापट्ट यहाँ गणिनी माताजी की प्रेरणा से लगाया गया है ।

६. अभिनन्दननाथ टोंक

कटरा तथा ऊँची सरकारी टंकी के पास यह टोंक है, जहाँ एक कम्पाउंड के भीतर अभिनंदननाथ भगवान के चरण विराजमान हैं । यहाँ पर फरवरी १९९४ में भगवान के पूर्ण परिचय एवं अर्घ का एक शिलापट्ट लगाया गया है । इस टोंक पर प्रायः हमेशा बंदर अवश्य बैठे मिलते हैं ।

७. भरत-बाहुबली टोंक

अभिनन्दननाथ टोंक के पास ही यह टोंक है जहाँ अयोध्या में जन्में प्रथम चक्रवर्ती भरत तथा प्रथम कामदेव बाहुबली के चरण विराजमान हैं ।पुन: सन् २०१३ में डालीगंज-लखनऊ निवासी श्रीमती शांति देवी जैन-श्री राजकुमार जैन परिवार की ओर से इस टोंक पर एक मंदिर का निर्माण करके उसमें भरत-बाहुबली स्वामी की अत्यन्त सुन्दर-मनोहारी खड्गासन प्रतिमाएँ विराजमान की गई हैं ।

८. अनंतनाथ टोंक

सरयू नदी के तट पर राजकीय उद्यान के पीछे एक बड़े परिसर में भगवान अनन्तनाथ के चरण विराजमान हैं । यहाँ के सभी बरामदों में अराजक तत्वों का साम्राज्य फैल गया था अत: पूज्य माताजी की प्रेरणा से फरवरी १९९४ में अयोध्या में जन्में पाँच तीर्थंकरों के अतिरिक्त १९ तीर्थंकरों के चरण विराजमान कर उनके परिचय एवं अर्घ के शिलाफलक लगाए गये हैं । फाटक में घुसने पर बाईं ओर के बरामदे में ७ चरण हैं तथा दाहिनी ओर १२ भगवान के चरण हैं । बरामदों को जाली के दरवाजे से बंद कर सुन्दर स्वरूप प्रदान किया गया है । यहाँ पर एक कमरे में सप्तऋषि चारणऋद्धिधारी मुनियों के चरण तथा एक कमरे में ऋषभदेव की पुत्री आर्यिका श्री ब्राह्मी-सुन्दरी माताजी के चरण विराजमान कर उनके इतिहास को शिलापट्ट पर झलकाया गया है । जीर्णोद्धार के पश्चात् इस स्थल पर अत्यन्त निखार आया है । सरयू नदी की प्राचीनता से संबंधित एक ऐतिहासिक शिलापट्ट भी यहाँ सामने बरामदे में लगाया है तथा अनंतनाथ के परिचय का शिलापट्ट टोंक के अन्दर वाले कमरे में लगा है । परिसर के अन्दर एक वुंआ तथा हैंडपम्प है । पुन: सन् २०१३ में पूज्य माताजी की प्रेरणा से इस टोंक पर भगवान अनन्तनाथ जिनमंदिर का निर्माण कराकर उसमें भगवान अनन्तनाथ की सुन्दर ग्रेनाइट पाषाण की साढ़े बारह फुट उत्तुंग पद्मासन प्रतिमा विराजमान की गई हैं ।

९. बड़ी मूर्ति

अयोध्या के रायगंज मोहल्ले में सन् १९६५ में आचार्यरत्न श्री देशभूषण महाराज की प्रेरणा से उनके सानिध्य में एक ३१ पुट ऊँची खड्गासन प्रतिमा भगवान ऋषभदेव की स्थापित हुई। पुनः एक विशाल मंदिर का निर्माण हुआ। बड़ी मूर्ति के दाएँ-बाएँ अजितनाथ, अभिनन्दननाथ, धर्मनाथ तथा सुमतिनाथ-अनंतनाथ, चन्द्रप्रभ की ५-५ फुट ऊँची खड्गासन प्रतिमाएँ विराजमान हैं तथा ऊपर दोनों ओर १-१ वेदी बनी हैं ।

१०. तीन चौबीसी मंदिर

सन् १९९३-९४ में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के अयोध्या प्रवास के मध्य १९९४ माघ शु. १२ को ७२ पंखुड़ी के एक गुलाबी कमल पर पंचकल्याणक प्रतिष्ठापूर्वक त्रयकालिक चौबीसी की ७२ जिनप्रतिमाओं को विराजमान किया गया । ये समस्त प्रतिमाएँ सवा पुट की पद्मासन हैं । इसमें भूत-भविष्यत् काल से संबंधित श्वेत पाषाण की मूर्तियाँ हैं तथा बीच में वर्तमान काल की चौबीसी हैं जिसमें पाँच वर्ण की प्रतिमाएँ अपने-अपने वास्तविक रंग के आधार पर बनी हैं ।

११. समवसरण मंदिर

पूज्य माताजी की पावन प्रेरणा से मूल मंदिर के बाईं ओर इस मंदिर का निर्माण हुआ है । इसमें बाईस फुट की गोलाकार शिला पर शास्त्रोक्त विधि से भगवान ऋषभदेव के समवसरण का चित्रण अतिसुन्दर ढंग से दर्शाया गया है । २० फरवरी १९९५ (फाल्गुन कृ. ५) को इस मंदिर में १५२ जिनबिंब प्रतिष्ठित करके विराजमान किये गए हैं ।

१२. शासन देवताओं की वेदी

रायगंज के बड़े मंदिर में गणिनी माताजी की प्रेरणास्वरूप भगवान ऋषभदेव के शासन देव गोमुख यक्ष एवं शासनदेवी चव्रेश्वरी माता की वेदियाँ बनवाई गई हैं तथा तदाकार क्षेत्रपाल एवं पद्मावती माता की दो वेदियाँ बनाई गई हैं । इसी प्रकार से तीन चौबीसी मंदिर में क्षेत्रपाल-पद्मावती की दो वेदियाँ हैं एवं समवसरण मंदिर में गोमुख यक्ष और चक्रेश्वरी देवी की दो वेदियाँ निर्मित हुई हैं । ये समस्त शासनदेव जिनधर्म की रक्षा करें तथा शाश्वत तीर्थ अयोध्या का अनंतकाल तक अस्तित्व बनाए रखें, यही भगवान ऋषभदेव के चरणों में प्रार्थना है ।

१३. गुरु मंदिर

रायगंज मंदिर के परिसर में समवसरण मंदिर के ठीक सामने एक भवन में कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य श्री वुंदवुंद स्वामी की मूर्ति तथा उसके एक ओर बीसवीं सदी के प्रथम आचार्य चारित्रचक्रवर्ती श्री शांतिसागर महाराज के चरण एवं दूसरी ओर ऋषभदेव प्रतिमा निर्माण के प्रेरणास्रोत भारत गौरव आचार्यरत्न श्री देशभूषण महाराज के चरण २३ मार्च १९९५ को विराजमान किये गये हैं ।

१४. ऋषभदेव की उत्तुंग पद्मासन प्रतिमा

सरयू तट पर बने सरकारी राजकीय उद्यान (भगवान ऋषभदेव राजकीय उद्यान) में पूज्य माताजी की प्रेरणा से एक २१ पुट उत्तुंग भगवान ऋषभदेव की पद्मासन प्रतिमा स्थापित हैं । २० फरवरी १९९५ को उस मूर्ति का अनावरण हुआ था। हर जाति के नर-नारियों की श्रद्धा के केन्द्र वे भगवान सबके मनोरथ सिद्ध करते हैं ।अयोध्या के वन्दनीय स्थलों के रूप में इन प्राचीन एवं नवीन जिनमंदिरों का दिग्दर्शन मैंने कराया है किन्तु वास्तव में तो यहाँ का कण-कण पवित्र है । यात्रियों के लिए भी यहाँ अब आधुनिक सुविधाओं से युक्त २० फ्लैटों का सेट ‘‘ज्ञानमती निलय’’ नाम से बना हुआ है । १६ फ्लैटों का एक सेट ‘‘आचार्य देशभूषण निलय’’ के नाम से है एवं १६ फ्लैटों का एक सेट ‘‘आचार्य शांतिसागर निलय’’ के नाम से बनकर तैयार हो गया है । एक बड़ी भोजनशाला का निर्माण भी हो चुका है । वहाँ जाकर तीर्थ परिचय के साथ-साथ अपनी आत्मा को भी आप तीर्थ बनाने की भावना करें, यही तीर्थयात्रा की सार्थकता है ।

भगवान ऋषभदेव नेत्र चिकित्सालय-पूज्य माताजी की प्रेरणा से उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा सन् १९९४ से इस चिकित्सालय का संचालन किया जा रहा है । जनकल्याणार्थ किया गया यह अस्पताल अयोध्यावासियों की आवश्यकतापूर्ति में संलग्न है । विश्वविद्यालय में भगवान ऋषभदेव जैन पीठ- उत्तरप्रदेश सरकार के द्वारा ही पूज्य माताजी की प्रेरणानुसार पैâजाबाद के डा. राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय में इस जैनपीठ के भवन का नवनिर्माण हुआ है । इस भवन के ऊपर जैनधर्म के प्रतीक के रूप में ऋषभदेव तीर्थंकर की एक प्रतिमा स्थापित हैं तथा जैनधर्म से संबंधित विषयों पर शोधकार्य यहाँ से संचालित होता है । इस प्रकार अयोध्या तीर्थ पर धार्मिक कार्यकलापों के साथ-साथ सेवा एवं शिक्षा के क्षेत्र में भी निरन्तर प्रगति चल रही है ।

यह अयोध्या तीर्थ समस्त तीर्थयात्रियों को सम्यग्दर्शन की प्राप्ति में निमित्त बने, यही मंगल कामना है ।