पञ्चम परमेष्ठी के कितने मूलगुण एवं उत्तरगुण होते हैं, इसका वर्णन इस अध्याय में है।
1. साधु परमेष्ठी किसे कहते हैं ?
जो सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान एवं सम्यकचारित्र रूप रत्नत्रयमय मोक्षमार्ग की निरन्तर साधना करते हैं तथा समस्त आरम्भ एवं परिग्रह से रहित होते हैं। पूर्ण नग्न दिगम्बर मुद्रा के धारी होते हैं जो ज्ञान,ध्यान और तप में लीन रहते हैं, उन्हें साधु परमेष्ठी कहते हैं।
2. साधु परमेष्ठी के कितने मूलगुण होते हैं ?
साधु परमेष्ठी के 28 मूलगुण होते हैं - 5 महाव्रत, 5 समिति, 5 इन्द्रिय निरोध, 6 आवश्यक और 7 शेष गुण।
3. साधु परमेष्ठी के पर्यायवाची नाम कौन-कौन से हैं ?
श्रमण, संयत, वीतराग, ऋषि, मुनि, साधु और अनगार।
4. महाव्रत किसे कहते हैं एवं उसके कितने भेद हैं ?
हिंसादि पाँचों पापों का मन, वचन, काय व कृत, कारित, अनुमोदना से त्याग करना महापुरुषों का महाव्रत है। इसके 5भेद हैं।
5. समिति किसे कहते हैं एवं उसके कितने भेद हैं ?
‘सम्’अर्थात् सम्यक् ‘इति'अर्थात् गति या प्रवृत्ति को समिति कहते हैं। चलने-फिरने में, बोलने-चालने में, आहार ग्रहण करने में, वस्तुओं को उठाने-रखने में और मल-मूत्र का निक्षेपण करने में यत्न पूर्वक सम्यक् प्रकार से प्रवृत्ति करते हुए जीवों की रक्षा करना, समिति है।
6. पञ्चेन्द्रिय निरोध किसे कहते हैं एवं उसके कितने भेद हैं ?
स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र इन पाँच इन्द्रियों के मनोज्ञ-अमनोज्ञ विषयों में राग-द्वेष का परित्याग करना पञ्चेन्द्रिय निरोध है।
7. आवश्यक किसे कहते हैं एवं उसके कितने भेद हैं ?
8. मुनियों के शेष 7 गुण कौन-कौन से हैं ?
9. मुनियों के उत्तर गुण कितने हैं ?
मुनियों के 34 उत्तर गुण होते हैं। 12 तप और 22 परीषहजय।
10. क्या आचार्य, उपाध्याय परमेष्ठी के 28 मूलगुण नहीं होते हैं ?
साधु जिन 28 मूलगुणों का पालन करते हैं। उन 28 मूलगुणों का पालन आचार्य, उपाध्याय परमेष्ठी भी करते हैं, किन्तु आचार्य के अतिरिक्त 36 मूलगुण एवं उपाध्याय के अतिरिक्त 25 मूलगुण होते हैं।