।। भक्ष्याभक्ष्य – जैन आहार ।।

भक्ष्य का अर्थ खाने योग्य और अभक्ष्य का अर्थ नहीं खाने योग्य। जो वस्तुएं विशेष जीव हिंसा में कारण हैं, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, प्रमाद वर्धक एवं बुद्धि विकार में कारण होती हैं, ऐसी वस्तुएं अभक्ष्य कहलाती हैं।

अभक्ष्य पदार्थ भी मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं प्रथम तो जिनका सेवन करना, सर्वथा निषेध है, दूसरे वे, जो एक समय सीमा, परिस्थिती तक तो खाने योग्य होते है उसके बाद नहीं, वे अमर्यादित पदार्थ भी जीव हिंसा में कारण होने से त्यागने योग्य हैं।

अभक्ष्य पदार्थ अनेक प्रकार के हैं। कुछ का वर्णन यहाँ करते हैं :-

मद्य, मांस, मधु व नवनीत ये चार महाविकृतियाँ कही गई है अत: सर्वथा अभक्ष्य हैं।

मद्य (मदिरा, शराब) - अनेक फल-फूलादि को सड़ाकर शराब बनाई जाती है। इसमें अनेकों जीव उत्पन्न हो जाते हैं, इसे पीने वाला व्यक्ति बुद्धि और विवेक खो देता है। एक दो बार इनका सेवन करने वाला व्यक्ति फिर इतना आदि हो जाता है कि उसके बिना उसका किसी कार्य में मन ही नहीं लगता, धीरे-धीरे दरिद्रता उसे घेर लेती है। नशे की हालत में मारना-पीटना, गाली बकना, गंदी नालियों में पड़े रहना, आदि दुष्कृत्य उसके द्वारा हो जाते हैं। ऐसे ही अन्य पदार्थ गाँजा, भांग, अफीम, चरस, तम्बाकू, बीड़ी-सिगरेट, पान-मसाले आदि जो कि स्पष्ट ही कैंसर, हृदय रोग आदि बड़े-बड़े रोगों के कारण है तथा और भी तरह-तरह के नशीले पदार्थ भी अभक्ष्य की ही श्रेणी में आते हैं।

मांस - जीव/प्राणियों की हत्या करके ही मांस प्राप्त होता है अत: मांसभक्षण करने वाले को नियम रूप से हिंसा का पाप लगता है। स्वयं मरे हुए पशु के मांस में भी अनन्त निगोदिया जीव होते हैं, मांस को अग्नि से गर्म करने पर भी वह जीव रहित नहीं होता उसमें तजाति(उसी पशु की जाति वाले) निगोदिया जीव निरन्तर उत्पन्न होते रहते हैं अत: मांस खाने योग्य तो दूर, छूने योग्य भी नहीं है। मांस व अन्न दोनों प्राणियों के अंग होने से समान है ऐसा कहना योग्य नहीं है स्त्रीपने की अपेक्षा समानता होने पर जैसे माता और पत्नी एक नहीं है उसी प्रकार मांस के सेवन से जैसे नरकादि दुर्गति प्राप्त होती है। वैसे अन्न, वनस्पतियों के सेवन से नहीं।

मधु (शहद) - मधुमक्खियों की उगाल है। मांस के समान ही शहद कभी भी निगोदिया जीवों से रहित नहीं होता है। कई बार शहद प्राप्ति के लिए छत्ते को तोड़ दिया जाता है जिसके सैकड़ों मक्खियाँ मर जाती हैं। तथा शहद में सैकड़ों त्रस जीवों की उत्पत्ति होती रहती है। एक बूंद शहद के सेवन से सात गाँव को जलाने से भी अधिक पाप लगता है। मधुत्याग के दोष से बचने हेतु फूलों का रस अथवा आसव, गुलकन्द तथा अन्य शहद युक्त खाद्य पदार्थों का त्याग करना चाहिए।

नवनीत (मक्खन) - काम, मद (अभिमान, नशा) और हिंसा उत्पन्न करने वाला है। बहुत से उसी वर्ण, जाति के जीवों का उत्पत्ति स्थान भूत होने से नवनीत विवेकी जन के द्वारा खाने योग्य नहीं है। अन्तर्मुहूर्त पश्चात ही उसमें अनेक सूक्ष्म जीव उत्पन्न हो जाते है। जिस बर्तन में नवनीत पकाया जाता है वह बर्तन भी छोड़ने/ त्यागने योग्य हैं। नवनीत को निकालते ही तुरन्त गर्म कर लेने पर प्राप्त घी खाने योग्य हैं।

पाँच उदम्बर फल - बड़, पीपल, ऊमर, पाकर, कलूमर के फल, त्रस जीवों की उत्पति स्थान ही है। अत: अभक्ष्य है। सूख जाने पर भी विशेष रागादि रूप भाव हिंसा का कारण होने से अभक्ष्य है। अनजान फल जिसका नाम, स्वाद आदि न पता हो वह भी अभक्ष्य है।

द्विदल अभक्ष्य है - जिसके दो भाग हो ऐसे दाल आदि को दही में मिलाने पर, तथा (मुख में उत्पन्न) लार के संयोग से असंख्य त्रस जीव राशि पैदा हो जाती है। इसका सेवन करने से महान हिंसा व त्रस जीवों के भक्षण का दोष लगता है। अत: द्विदल अभक्ष्य है इसका सर्वथा त्याग करना चाहिए जैसे दही बड़ा, दही की बड़ी, दही पापड़ आदि। कच्चे दूध से बनी दही व छाछ तथा गुड़ मिला दही व छाछ भी अभक्ष्य हैं।

चुना व संदिग्ध अन्न अभक्ष्य है - चुने हुए अन्न में अनेक त्रस जीव होते हैं यदि सावधान होकर नेत्रों के द्वारा शोधा भी जाए तो भी उसमें से सब त्रस जीवों का निकल जाना असम्भव है। अत: सैकड़ों बार शोधा हुआ भी घुना अन्न अभक्ष्य है। तथा जिस पदार्थ में त्रस जीवों के रहने का संदेह हो ऐसा अन्न भी त्यागने योग्य है।

कंदमूल (गडन्त) अभक्ष्य है - कंद अर्थात् सूरण, मूली, गाजर, आलू, प्याज, लहसुन, गीली हल्दी आदि जमीन के भीतर पैदा होने वाली गड़न्त वस्तुएं साधारण वनस्पति, अनन्तकाय होने से अभक्ष्य है अन्य वनस्पतियों की अपेक्षा इनमें अधिक हिंसा होती है। अत: जीवदया पालने वालों को इनका सेवन नहीं करना चाहिए।

पुष्प व पत्रादि अभक्ष्य हैं - जो बहुत जन्तुओं की उत्पति के आधार के हैं जिनमें नित्य त्रस जीव पाये जाते हैं, ऐसे केतली के फूल, द्रोण पुष्पादि सम्पूर्ण पदार्थों को जीवन पर्यन्त के लिए छोड़ देना चाहिए क्योंकि इनके खाने में फल थोड़ा और घात बहुत जीवों का होता है तथा पते वाले शाक में सूक्ष्म त्रस जीव अवश्य होते हैं उसमें कितने ही जीव तो दृष्टिगोचर हो जाते हैं और कितने ही दिखाई नहीं देते। किन्तु वे जीव उस पते वाले शाक का आश्रय कभी नहीं छोड़ते। अत: अपना आत्म कल्याण चाहने वाले जीव को पते वाले सब शाक तथा पान तक छोड़ देना चाहिए।

जिनका रूप, रस, गन्ध व स्पर्शादि चलित हुआ, विकृत हुआ है, फफूंद लगा हो ऐसे त्रस व निगोद जीवों का स्थान, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थ भी अभक्ष्य कहे गये हैं।

होटल में अमर्यादित एवं अशोधित आटे आदि से तथा अनछने पानी से बनी वस्तुएँ सर्वथा अभक्ष्य हैं। अमर्यादित अचार, मुरब्बा आदि त्रस जीवों से संसत होने से अभक्ष्य हैं।

कुछ पदार्थ भक्ष्य होने पर भी अनिष्टकारक होने से अभक्ष्य माने जाते हैं जैसे बुखार वाले को घी एवं शीत प्रकृति वालों के लिए ठंडे फल आदि। जो सेवन करने योग्य न हो ऐसे लार, मूत्र, कफ आदि अनुपसेव्य पदार्थ भी अभक्ष्य हैं।

अभक्ष्य बाईस भी माने गये हैं -
ओला घोर बड़ा निशि भोजन, बहुबीजा बैंगन संधान ।
बड़, पीपर, ऊमर, कठऊमर, पाकर फल या होय अजान ।
कंदमूल माटी विष आमिष, मधु माखन अरू मदिरापान।
फल अतितुच्छ तुषार चलित रस, ये बाईस अभक्ष्य बखान ।

दूध को दुहने के पश्चात् अड़तालीस (४८)मिनिट के भीतर ही भीतर गर्म कर लेना चाहिए अन्यथा वह भी अभक्ष्य की कोटि में आ जावेगा, क्योंकि दूध के दुहने के एक मुहुर्त पश्चात् तजाति निगोद जीव उत्पन्न हो जाते हैं। अत: दूध की मर्यादा का विशेष ख्याल रखना चाहिए।

भक्ष्य पदार्थों की मर्यादा निम्र प्रकार से है

  1. दूध उबलने के बाद चौबीस घंटे तक मर्यादित माना जाता है।
  2. गर्म दूध का दही जमावे पर चौबीस घंटे तक मर्यादित माना जाता है। बिलौते समय पानी डालने पर बनी छाछ बारह घंटे तक मर्यादित मानी गई है। मीठे पदार्थ मिले दही की मर्यादा ४८ मिनट की है।
  3. पिसे नमक की मर्यादा अड़तालीस मिनट एवं गर्म कर पीसे गये नमक की मर्यादा चौबीस घंटे की हैं एवं मसालेदार नमक की छह घंटे की मर्यादा है।
  4. मौन वाले पकवान की मर्यादा चौबीस घंटे, रोटी, पूड़ी, हलवा, बड़ा, कचौड़ी की मर्यादा बारह घंटे एवं खिचड़ी, दाल, सब्जी की मर्यादा छह घंटे की है।
  5. आटा, बेसन एवं पिसे मसाले की शीतकाल में सात दिन, ग्रीष्म काल में पाँच दिन एवं वर्षाकाल में तीन दिन की मर्यादा जाननी चाहिए।
  6. घी, गुड़, तेल स्वाद बिगड़ने पर अभक्ष्य माना जाता है। ७. चौबीस घंटे के बाद का मुरब्बा, आचार, बड़ी पापड़ आदि खाने योग्य नहीं है।
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