।। दाता के गुणों की विशेषता ।।

jain temple298

1 श्रद्धा - पात्र को रत्नत्रय का आधार समझकर उस पर पूर्ण श्रद्धा रखें।

2 भक्ति - उनके गुणो मे अनुराग रखते हुए प्रशंसात्मक स्तुति करें।

3 तुष्टि - अतिथि अपने घर पर नही आये, व आहार देने न मिल पारहा होतो खेद-खिन्न न होते हुए संतोष धारण करें।

4 विवेक - पात्र की स्थिति-बाल, वृद्ध, शिक्षा शील, तपस्वी, आदि के अनुसार व देश काल, स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए आहार को क्रम बद्ध व पात्र की तात्कालिक स्थिति को देख कर उनकी परिचर्या करना विवके गुण है।

5 अलोलुपता - आहार आदि दान देकर प्रत्युपकार की आकांक्षा न करें कि इन से मंत्र तंत्र आदि मिल जावे। उदार भाव के साथ अतिथि का आहार सत्कार करना।

6 क्षमा - किसी कारण से आहार न दे पा रहे हों या किसी के द्वारा अंतराय हो जाये तो क्रोध नही करना। क्षमाभाव धारण करना।दूसरे दाताओ से ईष्र्या नही करना- उनके यहा आहार होते देख व अन्य कारणो से।

7 सामथ्र्य/शक्ति - अपनी सामथ्र्य के अनुसार दान देना। क्लेश का कारण् ाबने ऐसा दान नही ंदेना।

» आजकल केवल वस्त्रों की शुद्धि को ही ‘सोला’ कहते हैं। जबकि ‘सोला’ कहते है जिनमेंनिम्नलिखित 16 बातों की शुद्धि होतीहै-

9 प्रकार की नवधा 0भक्ति, 7 प्रकार के दातागुण यह सोला है।