|| उत्तम सत्य धर्म ||

चोर ने प्रसन्नता के साथ उत्तर दिया कि हाँ महाराज असत्य बोलना मैं छोड़ सकता हूँ। मुनि ने कहा कि बस तू झूठ बोलना ही छोड़ दें। कैसी ही विपत्ति आवे परंतु तू कभी असत्य न बोलना।

चोर हर्ष के साथ हाथ जोड़ कर मुनि महाराज के सामने असत्य बोलने का त्याग करके अपने घर चला गया।

रात को वह चोर राजा की अश्वशाला (घुड़साल) में चोरी करने के लिए गया। घुड़साल के बाहर सईस सो रहे थे। चोर की घुड़साल में घुसते देखकर उन्होंने पूछा कि तू कौन है ?

चोर ने उत्तर दिया कि मैं चोर हूँ। सईसों ने समझ कि वह मजाक में कह रहा है, घुड़साल का ही कोई नौकर होगा, इसलिये चोर को किसी ने न रोका। चोर ने घुड़साल में जाकर राजा की सवारी का सफेद घोड़ा खोल लिया और उस पर सवार होकर चल दिया।

बाहर सोते हुए सईसों ने फिर पूछा कि घोड़ा कहाँ लिये जा रहा है ? चोर ने सत्य बोलने का नियम ले रक्खा था इस कारण उसने उत्तर दिया कि-

मैं घोड़ा चुरा कर ले जा रहा हूँ। सईसों ने इस बात को भी हंसी मजाक समझा, यह विचार किया कि दिन में घोड़े को पानी पिलाना भूल गया सो अब पानी पिलाने के लिये घोड़ा ले जा रहा है। ऐसा विचार कर उन्होंने उसे चला जाने दिया।

चोर घोड़ा लेकर एक बड़े जंगल में पहुँचा और घोड़े को एक पेड़ से बाँध कर आप एक पेड़ के नीचे सो गया।

जब प्रभात हुआ तब घुड़साल के नौकरों ने देखा कि घुड़साल में मुख्य सफेद घोड़ा नहीं है। नौकर बहुत घबड़ाये। उनको रात की बात याद आ गई और वे कहने लगे सचमुच रात वाला आदमी चोर ही था और सचमुच वह घोड़ा चुरा ले गया।

जब प्रभात हुआ तब घुड़साल के नौकरों ने देखा कि घुड़साल में मुख्य सफेद घोड़ा नहीं है। नौकर बहुत घबड़ाये। उनको रात की बात याद आ गई और वे कहने लगे सचमुच रात वाला आदमी चोर ही था और सचमुच वह घोड़ा चुरा ले गया।

अंत में यह बात राजा के कानों में तक पहुँची। राजा ने घोडे को खोजने के लिये चारों ओर सवार दौडायें। कुछ सवार उस जंगल में जा पहुँचे। उन्होंने चारे को सोता देखकर उठाया और पूछा कि तू कौन है ?

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सत्यवादी चोर ने उत्तर दिया कि मैं चोर हूँ।

राजा के नौकरों ने पूछा कि रात को तूने कहीं से कुछ चोरी की थी ?

चोर ने कहा कि ‘हाँ राजा की घुड़साल से घोड़ा चुराया था।

नौकरों ने पूछा कि घोड़ा किस रंग का था और कहाँ है ?

चोर ने कहा ‘घोड़े का रंग सफेद है‘ और वह उस पेड़ के साथ बँधा हुआ है

देवों ने चोर के सत्य की परीक्षा लेने के लिये घोड़े का रंग लाल कर दिया अतः राज कर्मचारियों ने जब वह घोड़ा देखा तो लाल था। उन्होंने चोर से पूछा कि भाई! वह घोड़ा तो लाल है।

चोर ने दृढ़ता के साथ उत्तर दिया कि मैं सफेद घोड़ा ही चुरा कर लाया हूँ।

देवों ने उस चोर के सत्यव्रत से प्रसन्न होकर चोर के ऊपर फूल बरसाये और घोड़े का रंग फिर सफेद कर दिया। यह चमत्कार देखकर राजा के नौकरों को आश्चर्य हुआ। वे चोर को अपने साथ ले जाकर राजा के पास पहुँचे।

राजा ने चोर से सब समाचार पूछे। चोर ने साधु महाराज से सत्य व्रत लेने से लेकर अब तक की सब बात सच कह डाली।

राजा चोर की सत्यवादिता पर बहुत प्रसन्न हुआ और पारितोषित में उसको बहुत सा धन देकर उससे चोरी करना छुड़ा दिया। इस तरह एक झूँठ को छोड़ देने से चारे का इतना राज सम्मान हुआ और उसका चोरी करना भी छूट गया।

बहुत से लोग अपने छोटो बच्चों के साथ झूठ बोल कर अपना चित्त बहलाया करते हैं परंतु बच्चों का हृदय कोमल स्वच्छ निर्मल होता है उस पर जैसे संस्कार माता-पिता जमाना चाहें वैसे जमा सकते हैं। तदनुसार जो बात मनोरंजन के लिये बच्चों से की जाती है बच्चे उसको सत्य समझ कर अपने हृदय में धारण कर लेते हैं। इस कारण मनोरंजन के लिये भी बच्चों से झूँठ नहीं बोलना चाहिए।

एक मारवाड़ी सेठ अपने परिवार के साथ रेलगाड़ी से कलकत्ता जा रहा था। मार्ग में अपने छोटे बच्चे से वह मनोरंजन करने लगा। उसने अपने बच्चे की जरी की टोपी उसके सिर से उतार ली और उसे दूसरे हाथ से गाड़ी के बाहर फैंकने की बनावटी चेष्टा की। बच्चा जब अपनी टोपी के लिये रोने लगा तब सेठ ने कहा कि अच्छा, टोपी फिर बुला दूँ, लड़के ने कहा कि मंगा दो। सेठ ने झट खिड़की से बाहर वाला हाथ अंदर करके टोपी उसे दे दी, लड़का प्रसन्न होकर हँसने लगा।

थोड़ी देर पीछे सेठ ने फिर टोपी बाहर फैंक देने का बहाना किया। लड़के ने फिर कहा अब फैंकी हुई मेरी टोपी बुलादो, सेठ ने दूसरी बार भी टोपी उसे दे दी। लड़का प्रसन्न हो गया। इस तरह सेठ ने ३-४ बार किया, उस छोटे बच्चे ने इस मनोरंजन को सत्य घटना समझ लिया।

कुछ देर पीछे उस लड़के ने अपने हाथ से वह १॰-१२ रुपये की जरी की टोपी खिड़की से बाहर फैंक दी। यह देखकर सेठ को बहुत दुख हुआ किंतु चुप रह गया।

परंतु बच्चा रोने लगा और पिता से आग्रह पूर्वक कहने लगा कि पहले की तरह मेरी टोपी फिर गाड़ी के बाहर से मँगा दो। सेठ, वह टोपी कैसे मँगा देता। बड़ी कठिनता से उसने बच्चे को चुप किया। बच्चे के साथ झूँठ बोलने का बुरा परिणाम उसे अनुभव हुआ।

सत्यभाषी मनुष्य यदि धनहीन हो तो सब कोई उसका विश्वास करता है और असत्य वादी बहुत बड़ा धनिक हो तब भी कोई उसका विश्वास नहीं करता। संसार का व्यवहार, व्यापार सत्य के आधार पर ही चलता है। सत्यवादी मनुष्य बिना हस्ताक्षर किये तथा बिना साक्षी या लिखा पढ़ी के लाखों करोड़ों रुपयों का लेन-देन किया करते हैं जबकि असत्यवादी के साथ बिना पक्की लिखा पढ़ी के कोई भी व्यवहार नहीं करता। अतः अपना विश्वास फैलाने के लिए सदा सत्य बोलना चाहिये।

परंतु ऐसा नहीं बोलना चाहिए जिससे किसी को दुख पहुँचे। जिस तरह नेत्रांध पुरुष को अंधा कहना अथवा एकाक्षी को काना कहना असत्य नहीं है परंतु उन अंधे काने पुरुषों को अंधा काना शब्द बहुत बुरा मालूम होता है अतः उनको अंधा काना नहीं कहना चाहिए।

इसके सिवाय जिस सत्य बोलने से किसी का प्राण नाश होता हो अथवा धर्म के विनाश होने की आशंका हो तो वैसा सत्य वचन भी न कहना चाहिए।

एक जंग में एक मुनि बैठे हुए स्वाध्याय कर रहे थे। इतने में एक हिरण भागता हुआ उनके सामने से एकओर निकल गया। कुछ देर पीछे एक शिकारी धनुष बाण लिये वहाँ आया, उसने मुनिराज से पूछा कि -

महाराज! हिरण किधर गया है ?

मुनिराज ने विचार किया यदि मैं सत्य कहता हूँ तो इसके हाथ हिरण मारा जायेगा और यदि हिरण को बचाता हूँ तो मुझे असत्य भाषण करना पड़ता है।

इसके लिये उन्होंने उत्तर दिया कि भाई! मेरी आंखों ने हिरण देखा है परंतु आंखें कुछ कह नहीं सकतीं, और जीभ कह सकती हैं किंतु उसने कुछ देखा नहीं, इसलिए मैं तुझे क्या बताऊँ।

इसढंग से उन्होंने हिरण के प्राण बचा दिये।

तथा-कोई भी बात सिद्धांत विरुद्ध नहीं कहनी चाहिये, यदि कोई बात मालूम न हो तो सरलता के साथ कह देना चाहिए कि ‘यह बात हमको मालूम नहीं।‘ उसने विषय में अंट-संट उत्तर देना उचित नहीं।

इस तरह मुख से प्रमाणिक सत्य, स्व-परहितकारी मीठे वचन बोलने चाहिए, अपने नौकर चाकरों से, भिखारी, दीन, दरिद्र, व्यक्तियों से सान्तवना तथा शांतिकारक मीठे वचन कहने चाहिये। पीड़ा-कारक कठोर बात कहनी चाहिये क्यांेकि उनका हृदय पहले ही दुःखी होता है तुम्हारे कठोर वचनों से और भी अधिक दुखेगा। यह जीभ यदि अच्छे वचन बोलती है तो वह अमूल्य है। अगर यह झूठ, भ्रमकारक, भय उत्पादक, पीड़ादायक, कलहकारी, क्षोमकारक निंदनीय वचन कहती है तो यह जीभ चमड़े का अशुद्ध टुकड़ा है।

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