।। तत्वार्थ सूत्र प्रश्नोत्तरी ।।

तत्वार्थ सूत्र प्रश्नोत्तरी

तृतीय अध्याय


प्र.१. नारकी जीव कहाँ रहते हैं ?

उत्तर — नारकी जीव अधोलोक की सात भूमियों में रहते हैं ।

प्र.२. नरक की भूमियों के नाम बताईये ?

उत्तर —‘‘रत्नशर्कराबालुकापंकधूमतमोमहातम: प्रभाभूमयो घनाम्बुवाताकाश प्रतिष्ठा: सप्ताधोऽध:।’’ रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा, तथा महातमप्रभा ये सात नरक की भूमियाँ हैं और क्रम से नीचे—नीचे घनोदधिवातवलय, घनवातवलय, तनुवातवलय, और आकाश के आधार हैं।

प्र.३. नरक की सभी भूमियों के साथ प्रभा शब्द क्यों लगाया गया है ?

उत्तर — प्रभा शब्द से समस्त भूमियों की विशेषता का बोध होता है इसलिये इसे सब भूमियों के साथ लगाया गया है ।
उदाहरण — रत्नों के समान प्रभावाली भूमि रत्न प्रभा है।

प्र.४. नरक की सात भूमियां किसके आधार पर स्थित हैं ?

उत्तर — नारक की सातों भूमियाँ घनवातवलय से वेष्टित हैं । घनवातवलय घनाम्बुवातवलय के आश्रय से स्थित है। घनाम्बुवातवलय तनुवातवलय से वेष्टित है तथा तनुवातवलय आकाश के आश्रय से स्थित है ।

प्र.५. घनोदधिवातवलय, घनवातवलय तथा तनुवातवलय के वर्ण बताईये।

उत्तर — घनोदधिवातवलय गोमूत्र के रंग सा है, घनवातवलय का रंग मूंगे जैसा है तथा तनुवातवलय अनेक वर्णी है।

प्र.६. रत्नप्रभा भूमि के कितने भाग हैं और उनमें कौन से जीव रहते हैं ?

उत्तर — रत्नप्रभा भूमि के ३ भाग हैं— (१) खर भाग (२) पंक भाग (३) अब्बहुल भाग । (अ) खरभाग में सात प्रकार के व्यंतर और नौ प्रकार के भवनवासी देव रहते हैं । (ब) पंकभाग में राक्षस और असुरों के भवन हैं । (स) अब्बहुल भाग की घम्मा नामक प्रथम पृथ्वी में नारकी जीव निवास करते हैं।

प्र.७. सातों नरकों में कुल कितने पटल (प्रतर) हैं ?

उत्तर — प्रथम नरक में १३, द्वितीय में ११, तीसरे में ९, चौथे में ७, पांचवें में ५, छठे में ३ और सातवें नरक में १ इस तरह कुल ४९ पटल होते हैं।

प्र.८. लोक के कितने भेद हैं और उनका आकार कैसा है ?

उत्तर — लोक के ३ भेद हैं— ऊर्ध्व लोक— मृदंग के समान, मध्यलोक झालर के समान तथा अधोलोक वेत्रासन के समान है।

प्र.९. सातों नरकों में कुल कितने बिल हैं ? स्पष्ट कीजिये ।

उत्तर — रत्नप्रभा भूमि में ३० लाख, शर्कराप्रभा में २५ लाख, बालुका में १५ लाख, पंकप्रभा में १० लाख, धूम प्रभा में तीन लाख, तम प्रभा में ५ कम एक लाख और महातमप्रभा में सिर्फ पाँच ही बिल हैं। इस तरह कुल ८४ लाख बिल हैं।

प्र.१०. नारकियों की विशेषता बताईये ।

उत्तर — ‘‘नारकानित्याशुभतरलेश्या परिणाम देहवेदना विक्रिया:’’। नारकी जीव निरंतर अशुभतर लेश्या, परिणाम, देह, वेदना और विक्रिया वाले हैं।

प्र.११.नरक में होने वाली शीत उष्णता संबंधी वेदना स्पष्ट करें।

उत्तर — प्रथम से चतुर्थ नरक तक— उष्ण वेदना । पांचवी पृथ्वी में ऊपर के दो लाख नरक उष्ण वेदना वाले तथा छठवीं और सातवीं भूमि में शीत वेदना है।

प्र.१२. नारकियों के अन्य दु:ख कौन से है ?

उत्तर — ‘‘संक्लिष्टासुरोदीरितदु:खाश्च प्राक् चतुर्थ्या:,’’ अर्थात् चौथी भूमि से पूर्व तक संक्लेश परिणामी असुरकुमार जाति के देव उन्हें परस्पर दु:ख देते हैं।

प्र.१३. नारकियों की आयु कितनी है ?

उत्तर — ‘‘तेष्वेकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रयस्त्रिंशत्सागरोपमा सत्वानां परास्थिति:’’। नरकों में उत्कृष्ट आयु इस प्रकार है— प्रथम नरक में १ सागर, दूसरे में ३ सागर, तीसरे में सात सागर, चौथे नरक में दस सागर, पांचवे नरक में सत्रह सागर, छठे नरक में बाईस सागर तथा सातवें नरक में तैंतीस सागर।

प्र.१४. तिर्यकलोक से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर — अधोलोक से ऊपर मध्यलोक है, जिसमें जंबूद्वीप से लेकर स्वयंभूरमण समुद्र तक तिर्यंक प्रचय विशेषण से अवस्थित असंख्यात द्वीप समूद्र अवस्थित हैं, इसलिये इसे तिर्यक्लोक कहते हैं।

प्र.१५. तिर्यक् अथवा मध्यलोक में कितने द्वीप समुद्र हैं ?

उत्तर — तिर्यक लोक में जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र आदि शुभ नाम वाले असंख्यात द्वीप, समुद्र हैं। जैसा कि सूत्र है— ‘‘जम्बूद्वीपलवणोदादय: शुभनामानोद्वीपसमुद्रा:’’।

प्र.१६. जम्बूद्वीप का नाम जम्बूद्वीप क्यों पड़ा है ?

उत्तर —जम्बूवृक्ष से उपलक्षित होने से इस द्वीप का नाम जम्बूद्वीप पड़ा है। ये जंबूवृक्ष अकृत्रिम, अनादि—निधन, शाश्वत् एवम् पृथ्वीकायिक है ।

प्र.१७. द्वीप और समुद्रों का कितना विस्तार है तथा उनका आकार कैसा है ?

उत्तर — ‘‘द्विर्द्विर्विष्कम्भा: पूर्व पूर्व परिक्षेपिणो वलयाकृतय:’’। प्रत्येक द्वीप समुद्र दूने—दूने विस्तार वाले, पहले—पहले के द्वीप समुद्रों को घेरे हुए हैं तथा इनका आकार वलयाकार (चूड़ी के आकार का) होता है।

प्र.१८. विष्कंभ से क्या आशय है ?

उत्तर — विष्कंभ का अर्थ है विस्तार।

प्र.१९. जम्बूद्वीप कहां है तथा उसका विस्तार कितना है ?

उत्तर — समस्त द्वीप समुद्रों के मध्य में एक लाख योजन विस्तार वाला जम्बूद्वीप है। इसके मध्य में सुमेरुपर्वत है।

प्र.२०.नाभिवृत्तो से क्या आशय है ?

उत्तर — नाभिवृत्तो से आशय है नाभि के समान अर्थात् जिस तरह शरीर के मध्य में नाभि होती है उसी प्रकार असंख्यात द्वीप समुद्रों के मध्य में जम्बूद्वीप और जम्बूद्वीप के मध्य में सुमेरुपर्वत है।

प्र.२१. चारों दिशाओं की पाण्डुक शिलाओं के नाम व रंग बताईये।

उत्तर — दिशा शिला का नाम रंग १. ईशान दिशा पाण्डुक शिला स्वर्णमयी २. आग्नेय दिशा पाण्डुकंबला शिला रजतमयी ३. नैऋत्य दिशा रक्त शिला स्वर्णमयी ४. वायव्य दिशा कम्बला शिला। लालमणी मयी

प्र.२२. जम्बूद्वीप में कितने क्षेत्र हैं ?

उत्तर — भरतहैमवतहरिविदेहरम्यकहैरण्यवतैरावत वर्षा: क्षेत्राणि भरत, हेमवत, हरि, विदेह,रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत ये सात क्षेत्र हैं।

प्र.२३. भोगभूमि और कर्मभूमियों की संख्या बताइये।

उत्तर — ३० भोगभूमि और १४ कर्मभूमियां हैं।

प्र.२४. कल्पवृक्ष कितने और कौन से हैं ?

उत्तर — कल्पवृक्ष १० हैं— १. मद्दांग, २. वादित्रांग, ३, भूषणांग, ४. माल्यांग, ५. ज्योतिरांग, ६. दीपांग , ७. गृहांग, ८. भोजनांग, ९. भाजनांग, १०. वस्त्रांग।

प्र.२५. कुलाचल (पर्वत) कितने हैं ?

उत्तर — तद्विभाजिन: पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निषधनील रुक्मिशिखरिणो वर्षधर पर्वता:। भरत आदि सात क्षेत्रों का विभाग करने वाले, पूर्व से पश्चिम तक लंबे हिमवान् , महाहिमवान् ,निषध, नील, रुक्मि और शिखरिन् ये अनादि निधन नाम वाले छ: पर्वत हैं।

प्र.२६. छह कुलाचलों के वर्ण कौन से हैं?

उत्तर — हेमार्जुनतपनीयवैडूर्यरजतहेममया:। ये छहों पर्वत क्रम से सोना, चांदी, तपाया हुआ सोना, वैडूर्यमणी, चांदी और सोना इनके समान रंग वाले हैं।

प्र.२७. छह कुलाचलों की विशेषतायें बताईये।

उत्तर — ‘‘मणिविचित्रपाश्र्वा उपरि मूले च तुल्य विस्तारा:’’। इन पर्वतों के पाश्र्वभाग अर्थात् तट मणियों से चित्र—वचित्र हैं तथा वे ऊपर—मध्य व मूल में समान विस्तार वाले हैं।

प्र.२८. कुलाचलों के मध्य स्थित तालाबों के नाम बताईये।

उत्तर —‘‘पद्ममहापद्मतिगिंछ केसरिमहापुण्डरीकपुण्डरीका हृदास्तेषामुपरि।’’ पर्वतों के ऊपर क्रम से पद्म महापद्म, तिगिंछ, केसरी, महापुण्डरीक, और पुण्डरीक ये छह तालाब हैं।

प्र.२९. पद्म तालाब का आकार व लम्बाई बताईये।

उत्तर — ‘‘प्रथमो योजन सहस्रायामस्तदर्धविष्कम्भो हृद:’’ पहला तालाब एक हजार योजन लंबा और उससे आधा चौड़ा है।

प्र.३०. पद्म तालाब की गहराई कितनी है ?

उत्तर — ‘‘दशयोजनाव—गाह:’’ पद्म तालाब दस योजन गहरा है।

प्र.३१.पद्म तालाब के मध्य क्या है ?

उत्तर — ‘‘तन्मध्ये, योजनं पुष्करम्’’ पद्म तालाब के मध्य एक योजन का कमल है।

प्र.३२. अन्य तालाब और कमलों की लंबाई आदि कितनी है ?

उत्तर — ‘‘तद्द्विगुणद्विगुणा हृदा: पुष्कराणि च’’ आगे के तालाब और कमल दोनों पद्म तालाब से दुगने—दुगने हैं।

प्र.३३. कमलों पर रहने वाली देवियों के नाम, आयु और परिवार को बताईये।

उत्तर — ‘‘तन्निवासिन्यो देव्य: श्री हृी धृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्म्य: पल्योपम स्थितय: स सामानिक परिषत्का:’’ उन पद्मादि सरोवरों के कमलों पर श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि,लक्ष्मी ये छह देवियाँ सामानिक और पारिषद जाति के देवों के साथ निवास करती हैं। इनकी आयु एक पल्य की है।

प्र.३४. सामानिक देव कौन हैं ?

उत्तर — समान स्थान में होने वाले सामानिक कहलाते हैं, जो पिता , दादा और उपाध्याय आदि के सदृश होते हैं ।

प्र.३५. पारिषद् कौन हैं ?

उत्तर — पारिषद का अर्थ है सभा। पारिषद मित्र तुल्य होते हैं।

प्र.३६. क्षेत्रों के विभाग करने वाली नदियां कहां बहती हैं, इनके नाम बताईये।

उत्तर —‘‘गंगासिंधुरोहिद्रोहितास्याहरिद्धरिकान्तासीतासीतोदा नारी नरकांता सुवर्ण रुप्यकूला रक्तारक्तोदा: सरितस्तन्मध्यगा:’’। गंगा, सिंधु, रोहित, रोहितास्या, हरित, हरिकांता, सीता, सीतोदा, नारी, नरकांता, सुवर्णकुला, रुप्यकूला रक्ता और रक्तोदा ये १४ नदियां भरतादि सात क्षेत्रों में बहती हैं। ये नदियां उन क्षेत्रों में या उन क्षेत्रों में से होकर बहती है।

प्र.३७. नदियों के बहने का क्रम क्या है ?

उत्तर — ‘‘द्वयोद्र्वयो: पूर्वा: पूर्वगा:’’। ‘‘शेषास्त्वपरगा:’’ दो—दो नदियों में से पहली—पहली नदी पूर्व समुद्र को जाती है। बाकी बची हुई सात नदियां पश्चिम की ओर जाती हैं।

प्र.३८. कौन सी नदियां किस दिशा में जाती हैं ?

उत्तर — गंगा,रोहित,हरित,सीता, नारी, सुवर्णकूला और रक्ता ये ७ नदियां पूर्व समुद्र में तथा सिंधु, रोहितास्या, हरिकांता, सीतोदा, नरकान्ता रुप्यकुला और रक्तोदा ये ७ नदियां पश्चिम समुद्र की ओर जाती हैं।

प्र.३९. महानदियों की सहायक नदियां कितनी हैं ?

उत्तर — ‘‘चतुर्दशनदीसहस्रपरिवृता गंङ्गासिंध्वादयो नद्या:’’ गंगा, सिंधु आदि नदियों के युगल चौदह हजार सहायक नदियों से घिरे हुए हैं।

प्र.४०. भरत क्षेत्र का विस्तार कितना है ?

उत्तर — भरत: षड़्विंशतिपञ्चयोजनशतविस्तार: षट्चैकोन विँशतिभागा योजनस्य’’। भरत क्षेत्र पांच सौ छब्बीस योजन विस्तार वाला तथा एक योजन के उन्नीस भागों में से छह भाग अधिक अर्थात् ५२६— ५/१९ योजन है।

प्र.४१. जंबूद्वीप में पर्वत और क्षेत्रों का विस्तार कितना है ?

उत्तर — ‘‘तद्द्विगुणद्विगुणविस्तारा वर्षधरवर्षा विदेहान्ता: ’’ विदेह क्षेत्र तक पर्वत और क्षेत्रों का विस्तार भरत क्षेत्र के विस्तार से दुगना—दुगना है।

प्र.४२. विदेह क्षेत्र के आगे के पर्वत और क्षेत्रों का विस्तार किस प्रकार है ?

उत्तर — ‘‘ उत्तरादक्षिणतुल्या:’’ उत्तर के क्षेत्र और पर्वतों का विस्तार दक्षिण के क्षेत्र व पर्वतों के समान है ।

प्र.४३.भरत और ऐरावत क्षेत्रों में मनुष्यों के अनुभव, आयु आदि की विशेषता क्या है ?

उत्तर — ‘‘भरतैरावतयोर्वृद्धिह्रासौषट्समयाभ्यामुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभ्याम्।’’ भरत और ऐरावत क्षेत्र में उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के छह समयों की अपेक्षा (मनुष्यों में भोग, उपभोग, अनुभव, संपदा, आयुप्रमाण, शरीर की ऊँचाई) आदि के द्वारा वृद्धि और हृास होता है।

प्र.४४. अनुभव से क्या आशय है ?

उत्तर — सुख— दु;ख के उपयोग को अनुभव कहते हैं।

प्र.४५. आयु और प्रमाण क्या है ?

उत्तर — आयु—जीवित काल के प्रमाण को आयु कहते हैं । प्रमाण—शरीर की ऊँचाई को प्रमाण कहते हैं ।

प्र.४६. उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल क्यों कहा गया है ?

उत्तर — ये दोनों काल सार्थक नाम वाले हैं । उत्सर्पिणी— अर्थात् जिस काल में मनुष्य की आयु, अनुभव व प्रमाण में वृद्धि होती है तथा अवसर्पिणी— अर्थात् वह समय जिसमें मनुष्य की आयु, अनुभव व प्रमाण का हृास होता है।

प्र.४७. अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल के कितने भेद हैं ?

उत्तर — अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल के ६ भेद हैं ।

प्र.४८. अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल के ६ भेद कौन से हैं ?

उत्तर — अवसर्पिणी के ६ भेद हैं —

  1. सुषमा—सुषमा
  2. सुषमा
  3. सुषमा—दुषमा
  4. दुषमा—सुषमा
  5. दुषमा
  6. दुषमा—दुषमा ।
उत्सर्पिणी के ६ भेद हैं—
  1. दुषमा—दुषमा
  2. दुषमा
  3. दुषमा—सुषमा
  4. सुषमा—दुषमा
  5. सुषमा
  6. सुषमा—सुषमा ।

प्र.४९.वर्तमान में भरत—ऐरावत क्षेत्र में कौन सा काल चल रहा है ?

उत्तर — हुण्डावसर्पिणी काल ।

प्र.५०. एक अवसर्पिणी और एक उत्सर्पिणी काल की अवधि कितनी होती है ?

उत्तर — दस कोड़ा—कोड़ी सागर का एक अवसर्पिणी काल तथा दस कोड़ा—कोड़ी सागर का एक उत्सर्पिणी काल होता है । दोनों काल मिलकर एक कल्पकाल होता है।

प्र.५१.शलाका पुरुष कितने हैं और वे कब उत्पन्न होते हैं ?

उत्तर — शलाकापुरुष ६३ होते हैं और चतुर्थकाल में उत्पन्न होते हैं ?

प्र.५२. ६३ शलाका पुरुष कौन—कौन से हैं ?

उत्तर — २४ तीर्थंकर , ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण, ९ बलभद्र तथा १२ चक्रवर्ती मिलाकर ६३ शलाका पुरुष होते है।

प्र.५३. पुण्य पुरुष कितने होते हैं तथा कब होते हैं ?

उत्तर — पुण्य पुरुष १६९ होते हैं। जिनमें ६३ श्लाकापुरुष , ४८ तीर्थंकरों (२४ तीर्थंकर के) के माता—पिता, २४ कामदेव, १४ कुलकर, ११ रूद्र, ९ नारद होते हैं। इनमें से कुलकर तृतीयकाल में पल्य का आठवां भाग शेष रहने पर तथा शेष सभी चतुर्थकाल में उत्पन्न होते हैं।

प्र.५४. भरत—ऐरावत क्षेत्र के अलावा शेष भूमियों की व्यवस्था क्या है ?

उत्तर —‘‘ताभ्यामपरा भूमयोऽवस्थिता:’’ भरत और ऐरावत क्षेत्र के अलावा शेष भूमियों में काल परिवर्तन नहीं होता वे अवस्थित हैं।

प्र.५५. अवस्थित भूमि में मनुष्य की आयु —स्थति किस प्रकार से है ?

उत्तर — ‘‘एक—द्वि—त्रि पल्योपमस्थितयोहैमवतक—हरिवर्षक, दैवकुरवका:’’। हैमवत, हरिवर्ष और देवकुरु में मनुष्यों की आयु—स्थिति एक, दो और तीन पल्य प्रमाण है।

प्र.५६. उत्तरवर्ती क्षेत्रों की स्थिति कैसे है ?

उत्तर —‘‘तथोत्तरा: ’’। दक्षिण के समान उत्तर में है।

प्र.५७. विदेहक्षेत्र में जीवों की आयु—स्थिति कैसी है ।

उत्तर —‘‘विदेहेषु संख्येयकाला:’’। पांचों विदेहों में संख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य होते हैं।

प्र.५८. विदेह क्षेत्र में जीवों की उत्कृष्ट आयु कितनी है ?

उत्तर — विदेह क्षेत्र में जीवों की उत्कृष्ट आयु एक पूर्व कोटि प्रमाण है।

प्र.५९. भरत क्षेत्र का विस्तार (प्रकारांतर से) कितना है ?

उत्तर — ‘‘भरतस्य विष्कम्भो जंबूद्वीपस्य नवति शतभाग:’’। भरत क्षेत्र का विस्तार जम्बूद्वीप का एक सौ नब्बेवां (१९०) भाग है।

प्र.६०. भरत क्षेत्र के विस्तार को समझाईये।

उत्तर — जम्बूद्वीप का विस्तार एक लाख योजन है उसमें १९० का भाग देने पर ५२६/६/१९ योजन प्रमाण आता है यही भरत क्षेत्र का विस्तार है।

प्र. ६१. वे कौन से समुद्र हैं जिनमें जलचर जीव रहते हैं ?

उत्तर —लवणोदधि, कालोदधि और स्वयम्भूरमण समुद्र में जलचर जीव रहते हैं। अन्य समुद्रों में नहीं।

प्र. ६२. धातकीखंड द्वीप में कितने क्षेत्र, कितने पर्वत और कितने मेरु हैं ?

उत्तर —‘द्विर्धातकीखण्डे’ धातकीखंड में क्षेत्र तथा पर्वत जम्बूद्वीप से दुगुने हैं।

प्र. ६३. धातकीखंड द्वीप का नाम धातकीखंड क्यों हुआ ?

उत्तर —धातकीखंड द्वीप में परिवार वृक्षों के साथ धातकीवृक्ष स्थित है और इसके संबंध से ही इस द्वीप का नाम धातकीखंड प्रसिद्ध हुआ।

प्र.६४. पुष्करद्वीप का विस्तार कितना है ?

उत्तर —पुष्करद्वीप का विस्तार १६ लाख योजन है।

प्र.६५.अर्द्धपुष्कर में कितने क्षेत्र और कितने पर्वत हैं ?

उत्तर —‘‘पुष्करार्द्धे च’’। अर्द्ध पुष्करद्वीप में उतने ही पर्वत और क्षेत्र हैं जितने धातकीखंड में हैं अर्थात् दो इष्वाकार पर्वत, मंदर व विद्युन्माली दो मेरु, भरतादि दो—दो क्षेत्र, हिमवान आदि दो—दो पर्वत तथा कमलादि दुगुने हैं।

प्र.६६. पुष्करद्वीप यह नाम क्यों प्रसिद्ध हुआ ?

उत्तर —पुष्करद्वीप में अपने परिवार वृक्षों के साथ पुष्कर वृक्ष होने से इस द्वीप का नाम पुष्करद्वीप हुआ।

प्र.६७. इस द्वीप को पुष्करार्द्ध क्यों कहा गया ?

उत्तर —पुष्करद्वीप के मानुषोत्तर पर्वत के कारण दो विभाग हो गये हैं, इसी कारण आधे द्वीप को पुष्करार्द्ध गया।

प्र.६८. मनुष्य लोक कितना है ?

उत्तर —‘प्राङ्मानुषोत्तरान्मनुष्या:’। मानुषोत्तर पर्वत के पहले तक ही मनुष्य हैं अर्थात् अढ़ाई द्वीप ही मनुष्यलोक कहलाता है।

प्र.६९. अढ़ाई द्वीप से क्या आशय है ?

उत्तर —जंबूद्वीप, धातकीखंडद्वीप तथा आधा पुष्कर द्वीप मिलाकर जितना क्षेत्र होता है वह अढ़ाई द्वीप कहलाता है।

प्र.७०. मानुषोत्तर पर्वत कहां स्थित है ?

उत्तर —मानुषोत्तर पर्वत मनुष्यलोक की सीमा पर स्थित है।

प्र.७१. मानुषोत्तर पर्वत का कितना विस्तार है ?

उत्तर —मानुषोत्तर पर्वत का विस्तार सत्रह सौ इक्कीस (१७२१) योजन ऊँचा, ४३० योजन भूमि के अंदर, मूल में १२२ योजन, मध्य में ७३३ योजन तथा ऊपर ४२४ योजन विस्तार वाला है।

प्र.७२. मानुषोत्तर पर्वत पर कितने चैत्यालय है ?

उत्तर —मानुषोत्तर पर्वत पर चारों ओर चार दिशाओं में चार चैत्यालय हैं।

प्र.७३. मनुष्य कहां तक जा सकते हैं ?

उत्तर —मानुषोत्तर पर्वत तक ही कोई भी मनुष्य जा सकता है उसके आगे नहीं।

प्र.७४. मनुष्य कितने प्रकार के हैं ?

उत्तर —‘आर्याम्लेच्छाश्च’। मनुष्य के दो भेद हैं। (१) आर्य (२) म्लेच्छ।

प्र.७५. आर्य किन्हें कहते हैं ?

उत्तर —जो गुणों से सहित हों और गुणवान लोग जिनकी सेवा करें उन्हें आर्य कहते हैं।

प्र.७६. म्लेच्छ किन्हें कहते हैं ?

उत्तर —जो निर्लज्जतापूर्वक बिना विचार किये कुछ भी बोलते रहते हैं भ्रष्ट हों उन्हें म्लेच्छ कहते हैं।

प्र.७७. आर्य मनुष्यों के कितने भेद हैं ?

उत्तर —आर्य मनुष्यों के २ भेद हैं ?(१) ऋद्धिप्राप्त आर्य (२) ऋद्धि रहित आर्य।

प्र.७८. मुख्यत: ऋद्धियां कितने प्रकार की हैं ?

उत्तर त्तर—मुख्यत: ऋद्धियां आठ प्रकार की हैं :

  1. बुद्धि ऋद्धि
  2. क्रिया ऋद्धि
  3. विक्रिया ऋद्धि
  4. तप ऋद्धि
  5. बल ऋद्धि
  6. औषध ऋद्धि
  7. रस ऋद्धि
  8. क्षेत्र ऋद्धि।

प्र.७९. ऋद्धि रहित आर्यों के कितने भेद हैं ?

उत्तर —ऋद्धि रहित आर्य ५ प्रकार के होते हैं : (१) सम्यक्त्व आर्य (२) चारित्र आर्य (३) कर्म आर्य (४) जाति आर्य (५) क्षेत्र आर्य।

प्र.८०. म्लेच्छ कितने प्रकार के होते हैं ?

उत्तर —म्लेच्छ दो प्रकार के होते हैं : (१) अन्तर्द्वीपज (२) कर्म भूमिज।

प्र.८१. म्लेच्छ द्वीपों की संख्या बताईये। इन द्वीपों में कौन उत्पन्न होते हैं ?

उत्तर —म्लेच्छ द्वीपों की संख्या ९६ है। इनमें अंतर्द्वीपज म्लेच्छ पैदा होते हैं।

प्र.८२. कर्मभूमिज म्लेच्छ कौन हैं ?

उत्तर —पुलिन्द, शबर, यवन, खस, बर्बर आदि कर्मभूमिज म्लेच्छ हैं ।

प्र.८३. कर्मभूमियां कौन—कौन सी हैं ?

उत्तर —‘भरतैरावतविदेहा: कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरुत्तर कुरुभ्य:।’ देवकुरु और उत्तकुरु के अतिरिक्त भरत, ऐरावत और विदेह ये समस्त कर्मभूमियाँ हैं।

प्र.८४. कर्मभूमियां कितनी हैं ?

उत्तर —कर्मभूमियां १५ हैं ।

प्र.८५. भोग भूमियां कितनी है ?

उत्तर —भोगभूमियां ३० हैं।

प्र.८६. १५ कर्मभूमियां किस प्रकार से हैं ?

उत्तर —पांच मेरु संबंधी ५ भरत, ५ ऐरावत तथा ५ विदेह संबंधी १५ कर्मभूमियां होती हैं।

प्र.८७. ३० भोगभूमियाँ किस प्रकार से हैं ?

उत्तर —पांच मेरु संबंधी ५ देवकुरु, ५ उत्तकुरु, ५ हैमवत, ५ हरि, ५ रम्यक तथा ५ हैरण्यवत् इस प्रकार ३० भोगभूमियाँ होती हैं।

प्र.८८. भूमि के साथ कर्म विशेषण क्यों दिया गया ?

उत्तर —सकल संसार के कारण भूत कर्मों की निर्जरा कर्मभूमि में ही होती है, मोक्षमार्ग की प्रवृत्ति भी कर्मभूमि में ही होती है।

प्र.८९. भोगभूमि नाम क्यों दिया गया है ?

उत्तर —भोगभूमि में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तो है परन्तु चारित्र नहीं है वहां जीव के निरंतर अविरत भोगरूप परिणाम ही रहते हैं इसलिये भोगभूमि नाम दिया गया है।

प्र.९०. कर्मभूमि और भोगभूमि में मनुष्यों की उत्कृष्ठ व जघन्य आयु कितनी है ?

उत्तर —‘‘नृस्थिति परावरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्ते’’। मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु तीन पल्य और जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त है।

प्र.९१. पल्य के कितने भेद हैं ?

उत्तर —पल्य के ३ भेद हैं—(१) व्यवहार पल्य (२) उद्धार पल्य (३) अद्धापल्य।

प्र.९२. व्यवहार पल्य किसे कहते हैं ?

उत्तर —जिन पल्यों के द्वारा संख्याओं (पल्यों) का वर्णन किया जाता है, वह व्यवहार पल्य है।

प्र.९३. उद्धार पल्य किये कहते हैं ?

उत्तर —जिसके द्वारा द्वीप और समुद्रों की गणना की जाती है वह उद्धार पल्य है।

प्र.९४. अद्धापल्य किसे कहते हैं ?

उत्तर —जिसके द्वारा कर्मों की स्थिति का काल जाना जाता है, वह अद्धापल्य कहलाता है।

प्र.९५. द्वीप—समुद्र कितने हैं ?

उत्तर —पच्चीस कोड़ा—कोड़ी उद्धार पल्यों के जितने रोम खण्ड होते हैं उतने ही द्वीप समुद्र हैं।

प्र.९६. कोड़ा—कोड़ी किसे कहते हैं ?

उत्तर —एक करोड़ को एक करोड़ से गुणा करने पर जो गुणनफल प्राप्त होता है उसे कोड़ा—कोड़ी कहते हैं।

प्र.९७. तिर्यंचों की उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति कितनी है ?

उत्तर —तिर्यंचों की उत्कृष्ट स्थिति मनुष्यों के समान ही तीन पल्य तथा जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है इसका सूत्र है —‘‘तिर्यग्योनिजानां च।’’