।। आओ मंदिर चले ।।
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प्रश्न-123 पानी को प्रासुक कैसे करते हैं?

उत्तर- पानी प्रासुक तीन तरह से होता है-

1 - छानकर

2 - अन्य विजातीय पदार्थ मिलाने से

3 - गर्म करके।

प्रश्न-124 पानी किस प्रकार छाना जाता है?

उत्तर- कुंआ आदि से पानी बिलकुल करूणभाव से धीरे-धीरे निकालकर कपड़े का एक छन्ना, जो चैबीस इंच चैड़ा और छत्तीस इंच लम्बा हो एवं इतना मोटा हो कि सूर्य की किरणें उसमें आरपार प्रवेश न कर सके। उसे दोहरा कर लें फिर जिस पात्र में पानी भरना हो उसके मुख पर अच्छी तरह कसकर छन्ना बांध देना चाहिए। फिर धीरे-धीरे बाल्टी का पानी छन्ना के ऊपर छोड़ते जाएं। पात्र भर जाने पर छन्ने को सावधानी से उठाकर बाल्टी में पलट दें फिर छन्ने के ऊपर छना हुआ पानी छोड़ दें। उसे जिवाणी कहते हैं। जिवाणी को पुनः धीरे-से बाल्टी के माध्यम से कुंआ आदि में छोड़ देना चाहिए

प्रश्न-125 पानी क्यों छानना चाहिए?

उत्तर- बिना छने पानी में अनन्तानन्त सूक्ष्म जीवों की उत्तपत्ति होती रहती है। जो हमारी नंगी आंखों से दिखाई नहीं देते। सूक्ष्मदर्शी यंत्रादि की सहायता से देखने पर वैज्ञानिकों ने पाया कि एक बूंद अनछने पानी में 36,450 जीव पए जाते हैं। जो हमारे पेट में पहुंचकर विभिन्न प्रकार की शारीरिक बीमारियों को जन्म देते हैं एवं जीव भक्षण से हिंसा जैसे महापाप का हमें बंध होता है। अतः पानी छानना आवश्यक है।

प्रश्न-126 पानी छानने के बाद क्या पुनः जीव उत्पन्न होते हैं?

उत्तर- हां, पानी को छानने के उपरांत पानी में एक मुहूर्त (48मिनट) के बाद पुनः जीवों की उत्पत्ति हो जाती है।

प्रश्न-127 जब पानी में पुनः जीवोत्पत्ति हो जाती है तो फिर अड़तालीस मिनट बाद पानी दूसरा भरना चाहिए?

उत्तर- नहीं, यदि पानी को छानने के उपरांत उस छने हुए ठंडे पानी में विजातीय पदार्थ जैसे लौंग, सौंफ, इलाचयची, चंदन आदि का चूर्ण मिला दिया जाए, जिससे पानी का रंग और स्वाद दोनों परिवर्तित हो जाएं तो पानी में छः घण्टे तक जीवोत्पत्ति नहीं हो पाती है।

प्रश्न-128 क्या ऐसा भी कोई तरीका है जिससे पानी में जीवोत्पत्ति और अधिक समय तक न हो सकें?

उत्तर- हां, छने हुए पानी को थोड़ा गर्म कर लें, तथा पानी छः घण्टे उबाल लेने पर चैबीस घण्टे तक बिना जीव राशि के रह सकता है। जिसका हम प्रयोग कर सकते हैं।

प्रश्न-129 क्या भगवान का अभिषेक कच्चे पानी से कर सकते हैं?

उत्तर- कर तो सकते हैं, परंतु करना नहीं चाहिए। क्योंकि 48 मिनट बाद पानी अप्रासुक हो जाता है। अर्थात् जीवोत्पत्ति होने लगती है और मंदिर जी में गंधोदक काफी लम्बे समय तक रखा जाता है। जो जीव राशि के कारण लेने के योग्य नहीं होता और प्रतिमा जी या वेदी पर कुछ हिस्सों में पानी लगा रह जाता है। जो जीव हिंसा के कारण बनता हैं और गर्म पानी लगा भी रह जाए तो चैबीस घण्टे उपरांत पुनः अभिषेक होता है जिससे जीव हिंसा नहीं हो पाती। अतः भगवान का अभिषेक गर्म किए हुए ठण्डे पानी से ही करना चाहिए।

प्रश्न-130 कच्चे पानी में विजातीय पदार्थ लौंग आदि डालकर भी तो अभिषेक कर सकते हैं?

उत्तर- हां कर सकते हैं परंतु लौंग आदि डालने का यह कतई मतलब नहीं है कि बाल्टी भर पानी में दो-चार लौंग डाल दे ंतो पानी प्रासुक हो गया। पानी का पूरा रंग और स्वाद लौंग के सदृश होना चाहिए। इतनी लौंग डालते हैं तब पानी प्रासुक होता है। सर्वश्रेष्ठ गर्म पानी ही है।

प्रश्न-131 जब गर्म पानी ही सर्वश्रेष्ठ है तो पानी प्रासुक करने की विजातीय पदार्थ मिलाने की विधि क्यों बतलाई?

उत्तर- द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के अनुसार अर्थात् जहां पानी गर्म करने की सुविधा न हो ऐसे क्षेत्र में हम पहुंच जाएं तो वहां अभिषेक पूजन से वंचित न रहें। इस कारण से लौगांदि मिलाने का विधान किया है। सुवधिाजनक स्थान पर तो पानी गर्म ही करना चाहिए।

प्रश्न-132 क्षीर सागर के जल से जन्माभिषेक करते समय देवताओं ने पानी तो छाना नहीं था?

उत्तर- क्योंकि क्षीर सागर के जल में जीवोत्पत्ति अर्थात् त्रस व जलचर जीव नहीं पाए जाते हैं। वह सदा प्रासुक रहता है।

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प्रश्न-133 पानी छानते समय छन्ना (कपड़ा) पात्र में ही लगाते हैं या हैंडपम्प में भी लगा सकते हैं?

उत्तर- छन्ना हैंडपम्प में भी लगा सकते हैं परंतु पानी भरने के उपरांत नल से छन्ना अलग कर जिवाणी यथा-स्थान पहुंचा दे। छन्ना नल में बंधा रहने से उन्नत जीवों के प्राणों का वियोग होता है क्योंकि छन्ना लगा-लगा सूख जाता है यह अविवेक पूर्ण क्रिया है।

प्रश्न-134 कुएं की जिवाणी तो कुंए में कर सकते हैं। हैंडपम्प की जिवाणी कहां करना चाहिए?

उत्तर- नल की जिवाणी वहीं बनी स्वच्छ, साफ, कीचड़ रहित बहती हुए नाली में रोक सकते हैं। यदि जिवाणी नहीं करते हैं तो पानी छानने की परम्परा का लोप हो जाएगा। अतः जीवा रक्षा के भावों को प्रबल बनाए रखते हुए क्रिया करना चाहिए।

प्रश्न-135 अष्ट द्रव्य थाली में किस प्रकार जमाए जाते हैं?

उत्तर-

जल - कुएं, झरने या नदी के स्वच्छ जल को छानकर गर्म करके छोटे कलश में भरना।

चंदन - दूसरे छोटे कलश के जल में चन्दन मिलाकर रखना, अर्थात चंदन की तरह घोल तैयार करना।

अक्षत - बिना टूटे, धुले हुए सफेद चावलों को थाली के एक हिस्से में रखना।

पुष्प - कुछ मात्रा में चावलों में चंदन, केशर आदि डालकर पीले (केसरिया) रंग में रंग कर थाली में अक्षत के पास रखना।

नेवेद्य - शुद्ध मर्यादित मिष्टान्न घेवर, पेड़ा, बर्फी, गुलाबजामुन आदि रखना (वर्तमान परम्परा में नारियल की सफेद चिटक नैवेद्य के रूप में प्रचलित हैं।)

दीप - जलता हुआ शुद्ध घी का दीपक रखनाः (सफेद चिटक को चंदन केसर से पीला करके भी रखा जाता है)

धूप - दीप के पास चंदन का चूरा शुद्ध रखना जिसे अग्नि में खेना है।

फल - बादाम, सुपारी, काजू, किशमिश, अखरोट, छुआरा आदि उत्तर फल धोकर धूप के ही पास रखना।

अध्र्य - थाली के बीच में आठ द्रव्यों का मिश्रण अध्र्य के रूप में रखना।

प्रश्न-136 अभिषेक कलशों को कैसे तैयार किया जाता है?

उत्तर- यदि पंचामृत अभिषेक न करना हो तो शुद्ध जल चार कलशों में भर लेना चाहिए।

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