।। आओ मंदिर चले ।।
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प्रश्न-47 मंदिर जी में क्या कार्य करना चाहिए?

उत्तर- मंदिर जी में उपर्युक्त कार्य अर्थात सांसारिक विषय-वासनाओं, विषयों से संबंधित कोई भी क्रिया या कार्य न करके वीतरागी भगवान की आराधना, उपासना, पूजा करना चाहिए।

प्रश्न-48 पूजा किसे कहते हैं?

उत्तर इष्ट या देव-शास्त्र-गुरू या गुणानुवाद करना पूछा है।

प्रश्न-49 इष्ट क्या है?

उत्तर- मिथ्यात्व, राग, द्वेष, कषाय, मोह आदि दुष्परिणामों को नष्ट कर आत्मज्ञ होकर सुखी होना ही इष्ट है। संसार के दुखों से मुक्त होकर मोक्ष रूपी आनंद की शाश्वत सम्पदा को उपलब्ध होना ही इष्ट है अर्थात सदा सुखी होना ही सब जीवों को इष्ट है।

प्रश्न-50 इष्ट देव कौन हैं?

उत्तर - जिन्हें इष्ट की उपलब्धि हो चुकी है वे ही हमारे इष्ट देव हैं। जैसे-अरिहंत और सिद्ध परमात्मा।

प्रश्न-51 इष्ट शास्त्र कौन-सेहैं?

उत्तर- जिनमें इष्टदेव की वाणी समाहित होती है, जो राग, द्वेष, मोह, मिथ्यात्व आदि संसार के कारणों को नष्ट करने का मार्ग दर्शन करते हैं, वे इष्ट शास्त्र होते हैं।

प्रश्न-52 इष्ट गुरू कौनहैं?

उत्तर- जो इष्ट की प्राप्ति के मार्ग पर आरूढ़ होकर नग्न दिगम्बर पिच्छी कमण्डलु सहित विषयों की आशा से रहित होकर वीतारागता की साधना में लीन हैं वे इष्ट गुरू हैं।

प्रश्न-53 पूजा का शाब्दिक अर्थ क्या है?

उत्तर- संस्कृत में पूजा शब्द जिस धातु से बना है वह ‘‘पू’’ जिसके कई अर्थ हैं एक अर्थ पवित्र होना, अर्थात पवित्र होने की जो जननी हो वह पूजा है या पवित्रता का जो जन कहो वह पूजा या पवित्रता को जन्म दे वह पूजा है। ‘‘पू’’ का दूसरा अर्थ मांजना भी है या देह के साथ-2 राग द्वेष से मलिन आत्मा को मांजना पूजा है। ‘पू’ का तीसरा अर्थ फटकना भी है। अर्थात जिस प्रकार फटक क रदालअलग व छिलका अलग किया जाता है उसी प्रकार देह अलग और आत्मा अलग करना पूजा है।

प्रश्न-54 पूजा के क्या और भी नाम हैं?

उत्तर- योग, यज्ञ, कृत, सपर्या, इज्या, अध्वर, मख और मह ये सब पूजा के पर्यायवाची नाम हैं।

प्रश्न-55 देव, शास्त्र, गुरू के अलावा और किसकी पूजा होती हैं ?

उत्तर- देव, शास्त्र, गुरू के अलावा उनके ही विस्तृत आधार रूप नवदेवता का भी पूजन होता है।

प्रश्न-56 नव देवता कौन-कौन हैं?

उत्तर- अरिहंत, सिऋ, आचार्य, उपाध्याय, सर्वसाधु, जिनचैत्य, जिन चैत्यालय, जिन आगम और जिन धर्म ये नव देवता हैं।

प्रश्न-57 अरिहंत देव किसे कहते हैं?

उत्तर- जिन्होंने चार घातिया कर्मों का नाश कर दिया, जो केवल ज्ञान समवसरण आदि विभूतियों को उपलब्ध होकर शरीर सहित संसारी भव्य प्राणियों को उपदेश देकर उपकार कर रहे हैं एवं िछयाली समूल गुणों से सुशोभित हैं उन्हें अरिहंत देव कहते हैं।

प्रश्न-58 घातिया कर्म किसे कहते हैं?

उत्तर- जो जीव के सुख आदि अनु जीवी गुणों का घात करते हैं। अर्थात जो अनन्त सुख उत्पन्न नहीं होने देता, सांसारिक दुःखों को बनाए रखता है, वह घातिया कर्म कहलाता है। यह कर्म आत्मिक सुख पर चोट करता है अर्थात आत्मिक सुख पूर्ण रूपेण नहीं प्रापत होने देता।

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प्रश्न-59 घातिया कर्म कितने हैं?

उत्तर- घातिया कर्म चार हैं-

1. ज्ञानावरणी-आत्मा के ज्ञान गुण को ढकते हैं।

2. दर्शनावरणी-आत्मा के दर्शन गुण को ढकते हैं।

3. मोहनीय-आत्मा के सम्यक्त्व एवं चारित्र को ढकता है।

4. अंतराय-किसी भी कार्य के विघ्न उत्पन्न कराता है।

प्रश्न-60 केवल ज्ञान क्या हैं?

उत्तर- जो ज्ञान भूत, भविष्य और वर्तमान तीनोंकालों के पदार्थों को, उनकी पर्यायों को युगपत् (एक साथ) एक काल में जानता और देखता हो वह केवल ज्ञान है। जहान की पूर्णता हो उसे केवल ज्ञान कहते हैं। जहां केवल-ज्ञान ज्ञान शेष रहे वह केवल ज्ञान है।

प्रश्न-61 समवसरण क्या है?

उत्तर- समवसरण वह स्थान विशेष है जहां पर अरिहंत परमात्मा बैठकर भव्य जीवों को उपदेश देते हैं, जिस उपदेश मण्डप की रचना कुबेर द्वारा होती है, जहां मनुष्य, तिर्यंच, देव बैठकर बारह सभाओं में धर्म श्रवण करते हैं उसे समवसरण (धर्म सभी) कहते हैं।

प्रश्न-62 जिन्होंने घाति और अघाति आठों कर्मों का नाश कर दिया हो, शरीर रहित होकर लोक के अग्रभाग में विराजमान हों वे सिद्ध कहलाते हैं। जिनके सकल मनोरथ सिद्ध हो गए हों, उन्हें सिद्ध कहते हैं। सिद्ध परमेष्ठी आठ मूल गुणों से सुशोभित हैं।

प्रश्न-63 अघाति कर्म क्या है?

उत्तर- जो जीव के मोक्ष गमन में कारण प्रति जीवीगुणों का घात करता है अर्थात जो संसार अवस्था को कायम रखता है, मिटने नहीं देता वह अघातिया कर्म कहलाते हैं।

प्रश्न-64 अघातिया कर्म कितने होते हैं?

उत्तर- अघातिया कर्म चार होते हैं-

वेदनीय-जो शरीर के माध्यम से आत्मा को सुख-दुख रूप वेदना या अनुवेदन कराते हैं।

आयु-जिसके माध्यम से आत्मा एक निश्चित समय के लिए एक शरीर में स्थिर रहती है।

नाम-जिसके माध्यम से शरीरादि की रचना होती है।

गोत्र-जिसके माध्यम से ऊंच, नीच गोत्र मिलता है।

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