।। आओ मंदिर चले ।।
नहि त्राता नहि त्राता, नहि त्राता जगत्त्रये।
वीतरागात्परो देवो, न भूतो न भविष्यति।।

अर्थ - तीन लोक के बीच हमारा कोई रक्षक नहीं है। यदि कोई है तो हे वीतराग देव आप ही हैं क्योंकि आपके सामने न कोई देव हुआ है न होगा। 

जिने भक्तिर्जिन, भक्तिर्जिन, भक्तिर्दिने दिने।
सदा मेऽतु, सदा मेऽस्तु भवे भवे।।

अर्थ - हे जिनेन्द्र भगेवान, मेरी आकांक्षा है कि मेरी जिन भक्ति प्रत्येक दिन और प्रत्येक भव में सदा बनी रहे। 

जिनधर्म-विनिर्मुक्तो मा भवेच्चक्रवत्र्यपि।
स्याच्चेटोऽपि दरिद्रोपि, जिनधर्मानुवासितः

अर्थ - जिन धर्म रहित चक्रवर्ती होना भी अच्छा नहीं। जिनधर्मधरी दास या दरिद्री भी हो तो अच्छा है। 

जनम‘जन्मकृतं पापं, जन्मकोटिमुपार्जितम।
जन्ममृत्युजरारोगं हन्यते जिन-दर्शनात्।।

अर्थ - जिनेन्द्र देव के दर्शन से जन्म-जन्म में किए हुए पाप व करोड़ों जन्मों में उपार्जित जन्म, जरा, मृत्यु रूपी रोग नष्ट हो जाते हैं। 

अद्याभवत्यफलता नयनद्वयस्य,
देव त्वदीयचरणांबुजवीक्षणेन।
अद्य त्रिलोक-तिलक प्रतिभासते मे,
संसार-यारिधिरयं चुलुकप्रमााम्।।

अर्थ - हे देवाधिदेव आपके कल्याणकारी चरण कमलों के दर्शन से मेरे दोनों नेत्र आज सफल हुए हैं। तीनों लोकों के तिलक लोकोत्तर पुरूषोत्तम। आपके प्रताप से मेरा संसार समुद्र चुल्लुभर पानी के समान प्रतीत हो रहा है।  

jain temple215
दर्शनपाठ हिंदी

हे प्रभु तब अर्चना में भेंट क्या अर्पण करें।
ये है तन मन और जीवन अब समर्पण क्या करें।
भाव की कलियां संजोकर, यह पुजारी आया है।
द्रव्य की थाली नहीं यह दिल में अरमा लाया है।
दे दिया सर्वस्व तुझको ओर अर्पण क्या करें।
दिल है एक केशर की प्याली भाव की केशर भरी।
ज्ञान की ज्योति जलाकर आरती तेरी करी।
मोह माया त्यागकर हम आज तब विनती करें।
मैं पुजारी तेरा जिनवर तू है मेरा आशियां
त्याग कर सारे जहां को आ गया तेरे यहां
तार दे इस भव से प्रभु जी आज हम विनती करें।

प्रश्न-22 भगवान के दर्शन करते समय विनती, स्त्रोत, स्तुति व णमोकार मंत्र क्यों पढ़ते हैं?

उत्तर- अपने मन को एकाग्र करने के लिए अर्थात मन मंदिर में रहकर सांसारिक विचारों में न उलझें, शुभोपयोग बना रहे। इसलिए दर्शन करते समय स्तोत्र, स्तुति आदि पढ़ते हैं।

प्रश्न-23 मंिदर में भगवान वेदी पर क्यों विराजमान रहते हैं?

उत्तर- वेदी गंधकुटी का प्रतीक है। गंधकुटी वह स्थान है जहां पर भगवान का सिंहासन होता है। जिसपर भगवान चार अंगुल अधर में विराजमान होकर उपदेश करते हैं, एवं जिनेन्द्र भगवान का पद जगत में सर्वोत्कृष्ट पद है और उच्च पद में स्थित आत्मा को विनयपूर्वक सम्मानार्थ उच्च स्थान पर विराजमान करते हैं।

प्रश्न-24 भगवान का सिंहासन पर विराजमान होना किसका प्रतीक हैं?

उत्तर- सिंहासन दो शब्दों से मिलकर बना है। सिंह$आसन:- सिंहासन अर्थात सिंह के समान आसन जमा लिया जाए जिस पर वह है सिंहासन। अर्थात कषायों के ऊपर, वासनओं के ऊपर, मिथ्यात्व आदि के ऊपर जिनेन्द्र ने सिंहों के समान आसन लगाया हे। इस बात का प्रतीक सिंहासन होता है।

प्रश्न-25 भगवान के ऊपर तीन छत्र क्यों लगाते हैं?

उत्तर- तीन छत्र भगवान के तीन लोक (अधो लोक, मध्य लोक और देव लोक और देव लोक अर्थात अध्र्वलोक के नाथ) स्वमी होने का द्योतक हैं। अर्थत तीन लोक पर जिनेन्द्र प्रभु का एक छत्र राज्य हो गया है एवं तीन छत्र देखकर आत्मशक्ति को जाग्रत करने की प्रेरणा मिलती है हम भी यदि जिनेन्द्र के बताए मार्ग पर चलेंगे तो उनके ही समान त्रिलोकी नाथ बन जाएंगे। इसी उद्देय को लेकर भगवान के ऊपर तीन छत्र लगाते हैं।

प्रश्न-26 भगवान पर चैंसठ चैंवर क्यों ढुराए जाते हैंे?

उत्तर- भगवान पर ढुरते हुए चैंसठ चंवर का अर्थ है कि चैंसठ ऋद्धियां उनके चरणों की दासी बनकर उनकी सेवा में खड़ी हैं। चंवर को देखने से प्रोरणा मिलती है कि हमें सांसारिक भौतिक सम्पदा के पीछे नहीं भागना चाहिए क्योंकि उनक पीछे भागने से अर्थात ऋद्धि के पीछे भागने से आत्मतत्व की, शाश्वत सुख की उपलब्धि नहीं होती। वरन् आत्मिक साधना करने से सारी ऋद्धियां, भौतिक सम्पदाएं स्वतः हमारे चरणों में आ जाएंगी। इसी बात के प्रतीक के लिए चैंसठ चंवर ढुराए जाते हैं। यह जिनेन्द्र भगवान का प्रातिहार्यै भी है।

प्रश्न-27 भगवान के पीछे भामण्डल क्यों लगाते हैं?

उत्तर- समवसरण में भगवान के पीछे भामण्डल होता है। जिसमें भव्य जीवों को अपने सात भवों का (तीन अतीत के, तीन भविष्य के ओर एक वर्तमान) का अवलोकर होता है जो सम्यक्त्व में कारण बनता है। मंदिर जी में प्रतिमा के पीछे भामण्डल लगाते हैं। उसके बीचो-बीच एक कांच का शीशा लगाते हैं। उस पर दर्शन करने वालों का प्रतिबिम्ब बनता है। अतः दर्शनार्थीएक दृष्टि शीशे पर बने स्वयं के प्रतिबिम्ब पर डालता है एवं एक दृष्टि भगवान पर डालता है तो उसे प्रेरणा मिलती है कि मेरा जीवन कितना निकृष्ट हैं और परमात्मा का जीवन कितना महान् है। जब दोनों जीवन की तुलना करते हैं तो महान् जीवन के प्रति श्रद्धा बनती है जो सम्यकदर्शन की उत्पत्ति में कारण है। इसी उद्देश्य से भगवान के पीछे भामण्डल लगाते हैं।

प्रश्न-28 भगवान को नमस्कार किस प्रकार किया जाता है?

उत्तर- भगवान को नमस्कार पंचांग व साष्टांग किया जाता है।

प्रश्न-29 पंचांग नमस्कार किस प्रकार किया जाता है?

उत्तर- दोनों पैरों को मोड़कर, गाय के समान गवासन लगाकर अर्थात, पैर, नितम्ब, छाती, हाथ अैर मस्तक पृथ्वी पर लगाकर नमस्कार करना पंचांग नमस्कार कहलाता है।

प्रश्न-30 पंचांग नमस्कार क्यों किया जाता है?

उत्तर- पांच पापों (हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह) से निवृत्त होकर पंचमगति (मोक्ष) को पाने के उद्देश्य से पंचांग नमस्कार किया जाता है।

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