।। सरस्वती स्तोत्र।।

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चन्द्रार्क-कोटिघटितोज्ज्वल-दिव्य-मूर्ते!
श्रीचन्द्रिका-कलित-निर्मल-शुभ्रवस्त्रे!
कामार्थ-दाय-िकलहंस-समाधिरूढ़े।
वागीश्वरि! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि!।।11।।

देवा-सुरेन्द्र-नतमौलिमणि-प्ररोचि,
श्रीमंजरी-निडि-रंजित-पादपद्मे!
नीलालके! प्रमदहस्ति-समानयाने!।
वागीश्वरि! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि! ।।2।।

केयरहार-मणिकुण्डल-मुद्रिकाद्यैः,
सर्वांगभूषण-नरेन्द्र-मुनीच्द्र-वद्ये!
नानासुरत्न-वर-निर्मल-मौलियुक्ते!
वागीश्वरि! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि!।।33।

मंजीरकोत्कनककंकणकिंकणीनां,
कांच्यश्र्च झंकृत-रवेण विराजमाने!
सद्धर्म-वारिनिधि-संतति-वर्द्धमाने!
वागीश्वरि! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि! ।।4।।

कंकेलिपल्लव-विनिंदित-पाणियुग्मे!
पद्ासने दिवस-पद्मासमान-वक्त्रे!
जैनन्द्र-वक्त्र-भवदिव्य-समस्त-भाषे!
वागीश्वरि! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि! ।।5।।

अद्र्धेन्दुमण्डितजटाललितस्वरूपे!
शस्त्र-प्रकाशिनि-समस्त-कलाधिनाथे!
चिन्मुद्रिका-जपसराभय-पुस्तकांड्के!
वागीश्वरि! प्रतिदिन मम रक्ष देवि!।।6।।

डिंडीरपिंड-मिशंखसिता-भ्रहारे!
पूर्णेन्दु-बिम्बरूचि-शोभित-दिव्यगात्रे!
चांचल्यमान-गृगशवललाट-नेत्रे!
वागीश्वरि! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि!।।7।।

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पूज्ये पवित्रकरणोन्नत-कामरूपे!
नित्यं फणीन्द्र-गरूडाधिप-न्निरेन्द्रैः!
विद्याधरेन्द्र-सुरयक्ष-समस्त-वृन्दैः,
रागीश्वरि! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि! ।।8।।

सरस्वत्यां प्रसादेन, काव्यं कुर्वन्ति मानवाः।
तस्मान्निश्चल-भावेन, पूजनीया सरस्वती।।9।।

श्री सर्वज्ञ मुखोत्पन्ना, भारती बहुभाषिणी।
अज्ञानतिमिरं हन्ति, विद्या-बहुविकासिनी।।10।।

सरस्वती मया दृष्ट, दिव्या कमललोचना।
हंसस्कन्ध-समारूढ़ा, वीणा-पुस्तक-धारिणी।।11।।

प्रथमं भारतीय नाम, द्वितीयं च सरस्वती।
तृतीयं शारदादेवी, चतुर्थ हंसगामिनी।।12।।

पंचमं विदुषां मात, षष्ठं वागीश्वरी तथा।
कुमारी सप्तमं प्रोक्ता, अष्टमं ब्रह्मचारिणी।।13।।

नवमंच जगन्माता, दर्शमं ब्राह्मिणी तथा।
एकादशं तु ब्रह्माणी, द्वादशं वरदा भवते्।।14।।

वाणी त्रयोदशं नाम, भाषा चैव चतुर्दशं।
पंचदंश श्रुतदेवी च, षोडशं गौर्निगद्यते।।15।।

एतानि श्रुतनामानि, प्रातरूत्थाय चः पठेत्।
तस्य संतुष्यदि माता, शारदा वरदा भवेत्।।16।।

सरस्वती! नमस्तुभ्यं, वरदे! कामरूपिणि!
सिद्यारंभं करिष्यामि, सिद्धिर्भवतु में सदा।।17।।

।। इति श्री सरस्वती नाम स्तोत्रम्।।

सरस्वती स्तोत्र (हिन्दी)
शंभु छंद

श्रुत देवी बारह अंगों से, निर्मित जिनवाणी मानी हैं।
सम्यग्दर्शन है तिलक किया, चारित्र वस्त्र परिधानी हैं।।
चैदह पूर्वाें के आभरणों से, सुंदर सरस्वती माता।
इस विध से द्वादशांग कल्पित, जिनवाणी सरस्वती माता।।1।।

श्रुत ‘आचारांग’ कहा मस्तक, मुख ‘सूत्रकृतांग’ सरस्वति का।
ग्रीवा है ‘स्थानांग’ कहा, श्री जिनवाणी श्रुतदेवी का।।
‘समवाय अंग’’ व्याख्या प्रज्ञप्ती’, मां की उभय भुजाएं हैं।
द्वय ‘ज्ञातृकथांग’ ‘उपासकाध्ययनांग’ स्तन कहलाये हैं।।2।।

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