।। संयम धर्म ।।

घोड़े को यदि लगाम न लगी हो तो घोड़ा बेकाबू होकर अपने सवार को किसी खड्डे में गिरा देता है, इसी तरह इन्द्रियों पर आत्मा यदि अँकुश न लगावे तो इन्दियाँ भी आत्मा को दुर्गति में डाल देती हैं। इस कारण अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण लगाकर इन्द्रियों को अपने वश में रखना आवश्यक है।

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प्राणी संयम:-जिस प्रकार अपनी आत्मा है उसी प्रकार अन्य जीवों के भी आत्मा है, जिस तरह हमको शारीरिक दुख होता है उसी प्रकार अन्य जीवों को भी शरीर की पीड़ा होती है। एकेन्द्रिय जीव पृथ्वी, पर्वत आदि पृथ्वीकायिक जीव, पानी ओला, ओस आदि जलकायिक जीव; आग, दीपक, बिजली आदि अग्निकायिक जीव; हवा, आंधी, यदि वायुकायिक जीव; वृक्ष, वेल, घास, झाड़ी, पौधे, फल-फूल, पते आदि वनस्पतिकायिक जीव एकेन्द्रिय होते हैं। वे बोल नहीं सकते परंतु उनको भी दुख तो होता ही है। डाॅ0 जगदीशचन्द्र वसु प्रयोग करके बतलाते थे कि किसी पेड़ में यदि कील आदि नुकीली चीज चुभाई जाय तो वह पीड़ा से कांपता है। इस कारण बिना किसी प्रयोजन के न पृथ्वी, पहाड़ खोदना चाहिए, न पानी बिखेरना चाहिए न आग जलानी चाहिए न हवा करनी चाहिए और न फूल, पते, घास, डाली आदि तोड़नी चाहिए।

लट, केंचुआ, जोंक आदि दो इन्द्रिय जीव हैं। चींटी, खटमल, जूं आदि कीड़े मकोड़े तीन इन्द्रिय जीव हैं। मक्खी, मच्छर, भौंरा, पतंगा आदि चार इन्द्रिय जीव होते हैं और पशु पक्षी, मनुष्य आदि पँचेन्द्रिय जीव हैं इन सब को त्रसकाय कहते हैं। इस सब जीवों को रक्षा भी उसी तरह करनी चाहिये जिस तरह कि अपने प्राणों की रक्षा की जाती है। इसको ही प्राणी-संयम कहते हैं।

महाव्रती मुनि अपनी समस्त इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण रखते हैं, मन को उग्र नहीं होने देते। रागद्वेष के कीचड़ से बचाकर निर्मल रखते हैं तथा समस्त जीवों की रक्षा करते हैं। इस कारण उनके उत्तम संयम होता है। गृहस्थांे को भी अधिक से अधिक जितना हो सके उतना अपनी इन्द्रियों पर अंकुश लगा कर त्रस स्थावर जीवों पर दया भाव का आचरण करते रहना चाहिए।

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