।। प्रतिक्रमण ।।
अरिहंत सिद्ध आयरिय उज्झाया सव्वसाहु सक्खिय
सम्मत्तपुव्वगं सुव्वदं दिढव्वहं, समारोहियं मे भवदु।

अर्थ - अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधु इन पंच परमेष्ठियों की साक्षिपूर्वक मुझे सम्यक्सहित उत्तमव्रत दृढ़तापूर्वक अंगीकार हो और सम्यक् सहित सदाचार की प्राप्ति हो। (अग्रिम पद में दिवस के प्रतिक्रमण में ‘देवसिय’ और रात्रि के प्रतिक्रमण में राइसिय बोलना चाहिए)

देवसिय पडिक्मम्मणाए सव्वाहच्चारविसोहिणि मित्तं,
पुव्वायरियकमेण आलोयणं सिरो सिद्धभति का उस्सग्गं करेमि।

अर्थ - दिवस (रात्रि) संबंधी शारीरिक, मानसिक और वाचनिककार्य करने में मैंने जो दोष किए हों उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूं अपने मन की विशुद्धि के लिए दोषों की बार-बार आलोचना करता हूं। दोषों से सर्वथा मुक्त ऐसे श्री सिद्ध परमात्मा का स्वरूप चिंतवन करने को मैं (नौ बार णमोकार मंत्र का जाप करता हूं)

णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।।8।।

चत्तारि मंगलं - अरिहंता मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगुत्तमा अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मोलोगुत्तमा। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि अरिहंते सरणं पव्वज्जाभि, सिद्धेसरणंपव्वज्जामि, साहू सरणंपव्वजामि, केवलिपण्णत्तं धम्मं सरणं पव्वजामि। अढ़ाई द्वीप, दो समुद्र संबंधी पंद्रह कर्म भूमि क्षेत्र में रहने वाली तीर्थंकरों को, जिनेश्वरों को, केवलियों को, अंतःकृतवलियों को, उपसर्ग केवलियों को सामान्य केवलियों को, मूक केवलियों को, सातिशय केवलियों को, अनुबद्ध केवलियों को और संतत केवलियों को, गणधरों को, चैंसठ ऋद्धिधारी मुनिश्वरों को, धर्माचारों को,धर्म नायकों को, द्वादशांगरूपअ मृत का पान करने वाले ऋषीश्वरों को ऐसे अढ़ाई द्वीप के सब मिला के 89999997 (तीन कम नौ करोड़ ऋषीश्वरों को एवं चतुर्विध मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका) संघ को मैं भक्तिभाव से नमस्कार करता हूं। धर्म ही प्रधान है। जो चारों गतियों का अंत करने के लिए उत्तम है संसार भय को नाश करने वाले तीर्थंकर, केवली सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्वसाधु ये पांच परमेष्ठी हैं। ये सत्यगार्म का प्रत्यक्ष अनुभव कराते हैं, इसलिए इनकी साक्षिपूर्वक मैं सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र को धारण करता हूं, दूसरे को इस सत्यमार्ग परचलने का उपदेश् करूंगा, मुझसे इस मार्ग पर चलते हुए कोई अतिचार (दोष) हो तो उनकी शुद्धि के लिए आत्मनिंदा - पूर्वक मन, वचन, काय की विशुद्ध भावना से नमस्कार करता हूं। (नौ बार णमोकार मंत्र का जाप्य करना)

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