श्री मल्लिनाथ पूजा
स्थापना
-दोहा-
तर्ज-मेरे मन मंदिर में आन......
मेरे हृदय महल में आन, पधारो मल्लिनाथ भगवान।। आओ तिष्ठो नाथ! विराजो मण्डल ऊपर प्रभु तुम राजो।। बुधग्रह की बाधा हो हान, पधारो मल्लिनाथ भगवान।। ऊँ ह्मीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्रय! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ऊँ ह्मीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्रय! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। ऊँ ह्मीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्रय! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं स्थापनं।
अष्टक-दोहा
यमुना सरिता नीर ले, करूं चरण जलधार। मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।1।। ऊँ ह्मीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्रय जन्मजरा मृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चंदन घिस कर्पूर युत, चरणन चर्चूं नाथ। मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।2।। ऊँ ह्मीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्रय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। मुक्ता सम तन्दुल धवल, अर्पूं प्रभु तुम पास। मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।3।। ऊँ ह्मीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्रय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। विविध भांति के पुष्प ले, चरण चढ़ाऊं नाथ। मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।4।। ऊँ ह्मीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्रय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। घृत दीपक की आरती, आरत हरे अपार। मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।6।। ऊँ ह्मीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्रय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूप सुगंधित दहन से, नशें कर्म दुखकार। मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।7।। ऊँ ह्मीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्रय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। सेव आम्र अंगूर से, मिले सुफल साकार। मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।8।। ऊँ ह्मीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्रय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अष्ट द्रव्य ले ‘‘चन्दना’’, अघ्र्य चढ़ाऊं आज। मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।9।। ऊँ ह्मीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्रय अनघ्र्यपदप्राप्तये अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
रत्नत्रय की प्राप्ति में, त्रयधारा आधार। स्वर्णभृंग की नाल से, कर लो शांतीधारा।। शांतये शांतिधारा। पुष्पों की भर अंजली, अर्पूं प्रभु के पास। महक हे उस गंध से, मन का मंदिर आज।। दिव्य पुष्पांजलिः।
(अब मण्डल के ऊपर बुधग्रह के स्थान पर श्रीफल सहित अघ्र्य चढ़ावें)
तर्ज-ऐ मां तेरी सूरत से अलग..........
हे मल्लिनाथ! तुम चारणों में, ग्रहशांति हेतु हम आए हैं। भगवान्......भगवान् तुम्हारे सम्मुख हम, यह अघ्र्य चढ़ाने आए हैं। टेक.।। यह बात सुनी हमने, तुम बुध ग्रह स्वामी हो। तुम उसके निग्रह में, सक्षम प्रभु ज्ञानी हो।। ‘‘चन्दना’’ तुम्हारी पूजन से, सब संकट हरने आए हैं। भगवन....... भगवान् तुम्हारे सम्मुख हम, यह अघ्र्यं चढ़ाने आये हैं।।1।। ऊँ ह्मीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्रय पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
तर्ज-जैनधर्म के हीरे मोती.......
हे प्रभु! पूजा के माध्यम से, एक सुखद संवेदन है। संसारी और सिद्धों का प्रभु, आज यहां सम्मेलन है।।टेक.।। नाथ! तुम्हारी और मेरी, आत्मा में अन्तर बहुत बड़ा। तुम हो सिद्धशिला के वासी, मैं भवसागर बीच खड़ा।। निश्चय नय से दोनों की आत्मा में इस सम वेदन है। संसारी और सिद्धों का प्रभु, आज यहां सम्मेलन है।।1।।