।। सूर्यग्रह अरिष्ट निवारक ।।

jain temple338

सूर्यग्रह अरिष्ट निवारक
श्री पद्मप्रभ पूजा
-स्थापना-

दोहा -

ग्रह अरिष्ट यदि सूर्य हो, पूजा पद्मजिनेन्द्र।
कर्म असाता दूर हों, पा जाऊं सुखसिन्धु।।

ऊँ ह्मीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।

ऊँ ह्मीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।

ऊँ ह्मीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर मम सत्रिहितो भव भव वषट् सत्रिधीकरणं स्थापनं।

(अष्टक) नंदीश्वर पूजन की चा

गंगा का निर्मल नीर, झारी भर लाऊं।
धारा दे भवदधि तीर, मैं अब हो जाऊं।।
हे पद्मनाथ भगवान, मुझमें शक्ति भरो।
ग्रह सूर्य ताप हो शांत, ऐसी युक्ति करो।।1।।

ऊँ ह्मीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्र जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

चन्दन की गन्ध अपार, प्रभु पद में चर्चूं।
प्रगटें गुण हृदय हजार, ऐसी भक्ति रचूं।।
हे पद्मनाथ भगवान, मुझमें शक्ति भरो।
ग्रह सूर्य ताप हो शांत, ऐसी युक्ति करो।।2।।

ऊँ ह्मीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्री पद्मप्रभजिनेन्द्र संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।

मोतीसम तन्दुल श्वेत, लेकर पुंज धरूं।
अक्षयपद प्राप्ती हेतु, प्रभु पद पुंज करूं।
हे पद्मनाथ भगवान, मुझमें शक्ति भरो।
ग्रह सूर्य ताप हो शांत, ऐसी युक्ति करो।।3।।

ऊँ ह्मीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्री पद्मप्रभजिनेन्द्र अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।

चंपक वर हरसिंगार, फूल मंगाया है।
अंजलि भर प्रभु ढिग आज, स्वयं चढ़ाया है।।
हे पद्मनाथ भगवान, मुझमें शक्ति भरो।
ग्रह सूर्य ताप हो शांत, ऐसी युक्ति करो।।4।।

ऊँ ह्मीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्री पद्मप्रभजिनेन्द्र कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

पूड़ी पेड़ा पकवान, अर्पण कर पूजूं।
हो क्षुधारोग की हान, तु सम पद ले लूं।।
हे पद्मनाथ भगवान, मुझमें शक्ति भरो।
ग्रह सूर्य ताप हो शांत, ऐसी युक्ति करो।।5।।

ऊँ ह्मीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्री पद्मप्रभजिनेन्द्र क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

घृत दीपक ज्योति जलाय, ज्ञानप्रकाश करूं।
अज्ञान तिमिर नश जाय, आतम स्वस्थ्य करूं।।
हे पद्मनाथ भगवान, मुझमें शक्ति भरो।
ग्रह सूर्य ताप हो शांत, ऐसी युक्ति करो।।6।।

ऊँ ह्मीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्री पद्मप्रभजिनेन्द्र मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

मलयागिरि धूप जलाय, गंध सुगंध करूं।
सब कर्म नष्ट हो जाय, आतम स्वस्थ करूं।।
हे पद्मनाथ भगवान, मुझमें शक्ति भरो।
ग्रह सूर्य ताप हो शांत, ऐसी युक्ति करो।।7।।

ऊँ ह्मीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्री पद्मप्रभजिनेन्द्र अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

फल सेव अनार खजूर, फल का थाल भरूं।
मुझ आत्म लक्ष्य हो पूर्ण, चरणों भाल धरूं।।
हे पद्मनाथ भगवान, मुझमें शक्ति भरो।
ग्रह सूर्य ताप हो शांत, ऐसी युक्ति करो।।8।।

ऊँ ह्मीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्री पद्मप्रभजिनेन्द्र मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

सलिलादिक द्रव्य मिलाय, अघ्र्य बनाय लिया।
‘‘चन्दना’’ बसंू शिव जाय, अतः चढ़ाय दिया।।
हे पद्मनाथ भगवान, मुझमें शक्ति भरो।
ग्रह सूर्य ताप हो शांत, ऐसी युक्ति करो।।9।।

ऊँ ह्मीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्री पद्मप्रभजिनेन्द्र अनघ्र्यपदप्राप्तये अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।

-दोहा-

रविग्रह शांती हेतु मैं, धरा दूं त्रयबार।
पद्मप्रभ के चरण में, मिलती शांति अपार।।
शांतये शांतिधारा।
बेला कमल गुलाब ले, पुष्पांजलि विकिरन्त।
पद्मप्रभ के निकट में, दुखों का हो अंत।।
दिव्य पुष्पांजलिः।।
2
1