।। नवग्रह पूजा ।।

jain temple337

ऊँ पूजा नं. 1
नवग्रह पूजा
समुच्चय पूजा
(स्थापना)

-कुसुमलता छंद-

काल अनादी के कर्मों के, ग्रह ने मुझे सताया है।
उनका निग्रह करने का अब, भाव हृदय में आया है।।
इसीलिए ग्रह शांति हेतू, पूजा पाठ रचाया है।
तीर्थंकर प्रभु के अर्चन को, मैंने थाल सजाया है।।1।।

-दोहा-

आह्वाहनन स्थापना, सत्रिधिकरण महान।
अष्टद्रव्य से पूर्व है, यह विधि हुई प्रधान।।2।।

ऊँ ह्मीं सर्वग्रहारिष्टनिवारकाः श्रीनवतीर्थंकर जिनाः! अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् आह्वाहननं।

ऊँ ह्मीं सर्वग्रहारिष्टनिवारकाः श्रीनवतीर्थंकर जिनाः! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः स्थापनं।

ऊँ ह्मीं सर्वग्रहारिष्टनिवारकाः श्रीनवतीर्थंकर जिनाः! अत्र मम त्रिहिताः भव भव वषट् सत्रिधीकरणं स्थापनं।

अष्टक-शंभु छंद

मुनिमनसम निर्मल जल लेकर, प्रभु पद में धारा करना।
जर जन्म मरण को निर्बल कर, अब आत्मचिन्तवन करना है।।
नव तीर्थंकर की पूजन कर, नवग्रह का निग्रह करना है।
व्यवहार सिद्धि के साथ-साथ, परमार्थ सिद्धि भी वरना है।।1।।
ऊँ ह्मीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्री नवतीर्थंकरेभ्यो चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
मोत सम श्वेत तंदुलों को, गजमोती समझ चढ़ाना है।
अपने आतम के छिपे गुणों के, मोती अब प्रगटाना है।।
नवतीर्थंकर की पूजन कर, नवग्रह का निग्रह करना है।
व्यवहार सिद्धि के साथ-साथ, परमार्थ सिद्धि भी वरना है।।3।।
ऊँ ह्मीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्री नवतीर्थंकरेभ्यो अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
सुरकल्पवृक्ष के पुष्प समझ, यह पुष्प अंजली भरना है।
जिनवर के सम्मुद श्रद्धा से, अब इन्हें समर्पित करना है।
नवतीर्थंकर की पूजन कर, नवग्रह का निग्रह करना है।
व्यवहारिसिद्धि के साथ-साथ, परमार्थसिद्धि भी वरना है।।4।।
ऊँ ह्मीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्री नवतीर्थंकरेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
अमृतमय इन पकवानों में, दिव्यामृत अनुभव करना है।
जिनवर चरणों में भेंट चढ़ा, क्षुधरोग निवारण करना है।
नवतीर्थंकर की पूजन कर, नवग्रह का निग्रह करना है।
व्यवहारसिद्धि के साथ-साथ, परमार्थसिद्धि भी वरना है।।5।।
ऊँ ह्मीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्री नवतीर्थंकरेभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
घृत के लघु दीपक में रत्नों का, दीप प्रकल्पित करना है।
प्रभु की आरति करके अंतर का, दीप प्रज्वलित करना है।।
नवतीर्थंकर की पूजन कर, नवग्रह का निग्रह करना है।
व्यवहारसिद्धि के साथ-साथ, परमार्थसिद्धि भर वरना है।।6।।
ऊँ ह्मीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्री नवतीर्थंकरेभ्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
चन्दन अगरू की धूप में मलयागिरि का अनुभव करना है।
प्रभु सम्मुख अग्नी में खेकर, अब नष्ट कर्म सब करना है।।
नवतीर्थंकर की पूजन कर, नवग्रह का निग्रह करना है।
व्यवहारसिद्धि के साथ-साथ, परमार्थसिद्धि भी वरना है।।7।।
ऊँ ह्मीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्री नवतीर्थंकरेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
अंगूर सेव बादाम आदि फल से प्रभु अर्चन करना है।
इनमें ही कल्पतरू के सच्चे, फल का अनुभव करना है।।
नवतीर्थंकर की पूजन कर, नवग्रह का निग्रह करना है।
व्यवहारिसिद्धि के साथ-साथ, परमार्थसिद्धि भी वरना है।।8।।
ऊँ ह्मीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्री नवतीर्थंकरेभ्यो फलं निर्वपामीति स्वाहा।
ले अष्ट द्रव्य का थाल प्रभू को, अघ्र्य समर्पित करना है।
‘‘चन्दनामती’’ नवग्रह शांति के, लिए अर्चना करना है।
नवतीर्थंकर की पूजन कर, नवग्रह का निग्रह करना है।
व्यवहारिसिद्धि के साथ-साथ, परमार्थसिद्धि भी वरना है।।9।।
ऊँ ह्मीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्री नवतीर्थंकरेभ्यो अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।

-दोहा-

नवग्रहों की तपन से, है संतप्त शरीर।
शांतीधारा करन से, बनूं शीघ्र अशरीर।।

शांतये शांतिधारा।

आत्मसुरभि के हेतु ले, पुष्पांजलि का थाल।
पुष्प बिखेरूं प्रभु निकट, ग्रह हों मेरे शांत।।
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