।। णमोकार मंत्र का व्रत और जाप्य ।।

गृहे जपफलं प्रोक्त बने शतगुणं भवेत्।
पुण्यारामे तथारण्ये सहस्त्रगुणितं मतम्।ं
पर्वते दशसहस्त्रं च नद्यां लक्षमुदाहृतम्।
कोटि देवालये प्राहुरनन्तं जिनसन्निधौ।।

अर्थात् घर में जो जाप का फल होता है, उससे सौगुना फल बन में जाप करने से होता है। पुण्यक्षेत्र तथा जंग में जाप करने से हजार गुना फल होता है। पर्वत पर जाप करने से दस हजार गुना, नदी के किनारे जाप करने से एक लाख गुना, देवालय (मन्दिर) में जाप करने से करोडत्र गुना और भगवान के समीप करने से अनन्त गुना फल मिलता है।

अंगुली-विधान

अंगुष्ठजापो मोक्षाय, उपचारे तु तर्जनी,
मध्यमा धन-सौख्याय, शान्त्यर्थं तु अनामिका।
कनिष्ठ सर्वसिद्धिदा,
तर्जनी शत्रुनाशाय इत्यपि पाठान्तरोऽस्ति हि।।

मोक्ष के लिए अंगूठे से जाप करें, उपचार (व्यवहार) के लिए तर्जनी से, धन और सुख के लिए मध्यमा अंगुली से, शांति के लिए अनामिका से और सब कार्यों की सिद्धि के लिए कनिष्ठा से जाप करे। कहीं-कहीं यह भी पाठानतर है कि शत्रु-नाश के लिए तर्जन अंगुली से जाप करे।

माला-विधान

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दुष्ट या व्यन्तर देवों के उपद्रव दूर करने, स्तम्भन विधि के लिए, रोग-शांति या पुत्र-प्राप्ति के लिए मोती की माला या कमल बीज माला से जाप देनी चाहिए। शत्रु-उच्चाटन के लिए रूदाक्ष की माला, सर्व कार्य-सिद्धि के लिए पंचवर्ण के पुष्पों पर जाप देनी चाहिए। हाथ की अंगुलियों पर जाप करने से दस गुना फल मिलता है। आंवले की माला पर जप करने से सहस्त्र गुना फल मिलता हे।

लोंग की माला पर पांच हजार गुना, स्फटिक की माला पर इस हजार गुना, मोतियों की माला पर लाख गुना, कमल बीज पर दस लाख गुना, कमल बीज पर दस लाख गुना, सोने की माला पर जाप करने से करोड़ गुना फल मिलता है। माला के साथ भावों की शुद्धता चाहिए।

यन्त्र-मन्त्र-भाग

ऊँ ह्मीं अ-सि-आ-उ-सा नमः।
पंचपरमेष्ठिनां कतिपयसम्प्रदायास्तत्र संवेदनाच्चाम्नाया लिख्यन्ते-
पंचानामादिपदानां पंचपरमेष्ठिसमुद्भूतानां जाप्ये कृते समस्तक्षुद्रोप-
द्रव्नाश‘ कर्मक्षयश्च। तत्र कर्णिकायामाद्यपदं शेषणि चत्वारि शुक्त्या शंखावर्तविधिना संकलस्य अष्टोत्तरशतस्मरणो शाकिन्यादयो न प्रभवन्ति।

नवकारे कर्चन चन्त्र-इस पद की जाप की विधि।

पंखडि़यों पर चित्त राखे डिगे नहीं। इसके समान और जप नहीं है। एकाग्रचित्त से करे। सर्वकल्याण का कर्ता है, स्वर्ग मुक्ति प्राप्त करावे। वांछित फल देने वाला यह मन्त्र है। त्रिकाल जाप-सन्ध्या प्रातः मध्यान्ह में अष्टोत्तरशत करना। सुख सौभाग्य प्राप्त करे। सन्तान करे, चित्त को डिगावे नहीं। मन वचन तन की निश्चल रक्खे, पवित्र हो कर। त्रिलोक में यह श्रेष्ठ है। सर्वकार्यसिद्धिर्भवेत्।

अथ नवकारमन्त्र जाप-- कमल की पंखडि़यों पर चित्त रखिए। सर्व कार्य सिद्ध हो, अनुक्रम से स्वर्ग मुक्ति का दाता है। एकाग्र चित्त करना प्रभात, मध्यान्ह सन्ध्या समय।

अथ दूसरी विधि जाप्य की-- कमल में चित्त रखिए। ऊँ ह्मीं श्रीं अ-सि-आ-उ’सा साधुभ्यो नमः। यह मन्त्र सर्वकार्य मनवांिछित-कारक सौख्यदाता है। प्रातः मध्यान्ह सन्ध्या करे। एकाग्र चित्त से जपना मन वचन काय से। सर्व कार्य पुत्र-पौत्रादि स्वर्ग मुक्ति प्राप्त करे।

अष्टपत्र के कमल के मध्य की कर्णिका में हकार अक्षर को ध्याना। फिर केवल हकार हीन ध्याना। उसको श्रद्र्धा रेफ बिन्दु युक्त ध्याना। उसका उद्धार ऐसा है, हें इसे ध्याना। वहुरि ताके वलय देयकरि ताकी रेखा विषै पंचणामोकार जो णमो अरहंताणं आदि स्थापना अष्टपत्र विषै क्रम सूं अष्टवर्ग करि मण्डित चिन्तवन करना। यहां त्रिकोण शब्द को वलयार्थ लेना।

चार पांखड़ी के कमल के मध्य कर्णिका विषै तो अकार। बहुरिता के बाह्य पूर्वपत्र विषै सिकार। बहुरि दक्षिण पत्र विषै आकार। बहुरि पश्चिम की पांखड़ी में उकार। उत्तर की पांखड़ी में साकार क्रम से स्थापित करे, फिर उसका ध्यान करे। फिर उन पूर्वोक्त परमेष्ठियों के अक्षरों को अष्टदल के कमल में कर्णिका सहित पंच पत्र में स्थापित करे।

पूर्वोंक्त पंच अक्षर सहित रत्नत्रयादिक के चार प्रथम अक्षरों को अष्टदल-कमल के मध्य स्थापित कर ध्यान करना, उसका उदाहरण यन्त्र द्वारा लिखा जाता है। ऐसे अष्टदल के कमल को ध्याना। मो, सिर, मुख, कण्ठ, हृदय, नाभि के प्रदेश में पंचकमल स्थापित कर ध्याना। अथावा प्रथम कमल अपने भाल प्रदेश में स्थापित कर और बाकी के चार कमलों को दक्षिण में निर्मल प्रदेश में स्थापित कर ध्याना।

प्रथम रक्षामन्त्र

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ऊँ णमो अरहंताणं शिखयाम्।
यह पढ़कर सारी चोटी के ऊपर दाहना हाथ फेरे-
ऊँ णमो सिद्धाणां--मुखवरणे।
यह पढ़कर सारे मुख पर हाथ फेरे।
ऊँ णमो आयरियाणं--अंगरक्षा।
यह पढ़कर सारे अंग पर हाथ फेरे।
ऊँ णमो उवज्झायाणं--आयुधं।
यह पढ़कर सामने हाथ से कोई किसी को तलवार दिखावे ऐसे दिखावे।
ऊँ णमो लोए सव्वसाहूणां--मौर्वी।
यह पढ़कर जैसे कोई किसी को धनुष साधकर यानी तीरकमान तानकर दिखावे ऐसे दोनों हाथों से दिखावे।
ऐसा पंच णमोयारो--पदतले वज्रशिला।
यह पढ़कर अपने नीचे जमीन पर हाथ लगाकर और जरा हिल कर जो आसन बिछा हुआ है, उसके इधर-उधर यह खयाल करे कि मैं ब्रजशिला पर बैठा हूं, नीचे से बाधा नहीं हो सकती । सव्वपावप्पणासणो - बज्रमयाप्राकाराशचतुर्दिश।
यह पढ़कर अपने चारों तरफ अंगुली से कुण्डल-सा खींचे यह खयाल करके कि यह मेरे चारों तरफ बज्रमय कोट है।
मंगलाणं च सव्वेसिं--शिखादि सर्वत्र‘ प्रखातिका।
यह पढ़कर यह खयाल करे कि कोट के परे खाई है।
पढ़मं हवइ ‘मंगल’-- प्राकारोपरि बज्रमयटंकणिकम्।
इति महारक्षा-सर्वोपद्रवविद्राविरणी।

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