।। राहुग्रहारिष्ट निवारक ।।

jain temple354

पूजा करो, अर्चा करो,
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकी संसार असार है।।नेमीनाथ. ।।8।।
ऊँ ह्मीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्रय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

जल चन्दन अक्षत अरू पुष्प मंगाय के,
चरू दीपक धूपम् फल आदि मिलाय के।
अघ्र्य थाल ‘‘चन्दना’’ चढ़ाऊं आज मैं,
पद अनघ्र्य पा बैठूं प्रभु के पास में।।

पूजा करो, अर्चा करो,
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकी संसार असार है।।नेमीनाथ.।।9।।
ऊँ ह्मीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्रय अनघ्र्यपदप्राप्तये अघ्र्यंम् निर्वपामीति स्वाहा।

अष्टद्रव्य को चढ़ा शांतिधारा करूं,
शांति बढ़े धरती पर यह आशा करूं।
हो सुभिक्षता क्षेम प्रेम मैत्री बढ़े,
पृथिवी से दुर्भिक्ष अनिष्ट सभी हटे।।

पूजा करो, अर्चा करो,
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकी संसार असार है।।नेमिनाथ.।।10।।
शांतये शांतिधारा

बेला चंप चमेली की कलियां जहां,
खिल जातीं तो वातावरण महक रहा।
उन पुष्पों की अंजलि भर पूजा करूं,
पर्यावरण प्रदूषण दूर किया करूं।।

पूजा करो, अर्चा करो,
प्रभु पूजा ही बस सार है, बाकि संसार असार है।।नेमीनाथ.।।10।।
दिव्य पुष्पांजलिः।

(अब मण्डल पर राहुग्रह के स्थान पर श्रीफल सहित अघ्र्य चढ़ावें)

हे नेमिनाथ भगवान मेरे, तन में बढ़ गई असाता है।
होती है अरूचि धर्म में भी, शूगर का रोग सताता है।।
तुम भक्ती में कुछ रूची बनी, इसलिए विनय यह है मेरी।
राहू ग्रह की बाधा हरकर, ‘‘चन्दना’’ व्याधि हर लो मेरी।।1।।
ऊँ ह्मीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्रय पूर्णाध्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।

शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।

जाप्यमंत्र - ऊँ ह्मीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्रय नमः।

जयमाला

तर्ज-लेके पहला-पहला.....

जय जय नेमिनाथ भगवान, हम करते तेरा गुणगान,
तेरी पूजन से मिटता है तिमिर अज्ञान।।
करते प्रभू जगत कल्याण, तुमने पाया पद निर्वाण,
तेरी पूजन से मिटता है तिमिर अज्ञान।।टेक.।।
राजुल को त्यागा प्रभु जी, ब्याह न रचाया।
गिरनार गिरि पर जाकर, योग लगाया।
प्राप्त हुआ फिर केवलज्ञान, दूर हुआ सारा अज्ञान,
तेरी पूजन से मिटता है तिमिर अज्ञान।।1।।

शिवादेवी माता तुमसे, धन्य हुई थीं।
शौरीपुरी की जनता, पुलकित हुई थी।।
समुद्रविजय की कीर्ति महान, गाईं सुरइन्द्रों ने आन,
तेरी पूजन से मिटता है तिमिर अज्ञान।।2।।

राहुग्रह की शांति हेतु, पूजा रचाऊं।
तेरे गुण गाके प्रभुजी, निजगुण को पाऊं।।
करे ‘‘चन्दना’’ तव गुणगान, होवे मेरा भी कल्याण,
तेरी पूजन से मिटता है तिमिर अज्ञान।।3।।
ऊँ ह्मीं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्रीनेमिनाथजिनेन्द्रय जयमाला पूर्णाध्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।

शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।

दोहा-
नेमिनाथ भगवान् की, पूजन है सुखकार।
दर्शन-वन्दन सब करो, शौरीपुर-गिरना।।
इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिः।

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