।। सच्चे बुद्ध शंकर, ब्रह्मा कौन हैं? ।।
आचार्य मानतुंग कृत भक्तामर स्तोत्र
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बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित-बुद्धि-बोधात्,
त्वं शंकरोऽसि भुवन-त्रय-शंकरत्वात्।
धाताऽसि धीर! श्वि-मार्ग-विधेर्विधानात्,
व्यक्तं त्वमेव भगवान् पुरूषोत्तमोऽसि।।25।।
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अन्वयार्थ-(विबुधार्चित बुद्धि बोधात्) देव अथवा विद्वानों के द्वारा पूजित बुद्धि वाले होने से (त्वम्) आप (एव) ही (बुद्धः) बुद्ध हैं। (भुवनत्रय-शंकरत्वात्) तीनों लोकों में शांति करने के कारण (त्वम् एव) आप ही (शंकर असि) शंकर हैं (धीर) हे धीर! (शिवमार्ग विधेः) मोक्षामार्ग की विधि के (विधानात्) विधान करने से (त्वम्) आप (एव) ही (धाता) ब्रह्मा (असि) हैं (भगवन्) हे स्वामिन् (त्वम् एव) आप ही (व्यक्तम) स्पष्ट रूप से (पुरूषोत्तोमऽसि) उत्कृष्ट पुरूष या पुरूषों में उत्तम हैं?

भावार्थ-भगवान् आदिनाथ स्वयं ही बुद्ध, शंकर, ब्रह्मा, एवं लोक में उत्तम पुरूष, पुरूषोत्तम नारायण हैं। संसार में बुद्ध, शंकर, ब्रह्मा, आदि नाम के प्रसिद्ध देव हैं पर आदिनाथ ही वास्तविक बुद्ध, शिव, ब्रह्मा हैं।

प्रश्न - 1सच्चे बुद्ध किसे कहते हैं?

उत्तर- जो पूर्ण ज्ञान केवलज्ञान से युक्त हैं वे आदिनाथ ही बुद्ध हैं। जो सर्वथा क्षणिकवादी हैं, केवलज्ञान से रहित हैं वे बुद्ध कभी बुद्ध नहीं कहे जा सकते हैं।

प्रश्न - 2 सच्चे शंकर कौन हैं?

उत्तर- जो तीनों लोकों में सुख-शान्ति करते हैं वे ही सच्चे शंकर हैं। जो संसार का संहार करने वाले हैं, काम से पीडि़त होकर पार्वती को अपने साथ रखते हों वे शंकर कभी भी सच्चे शंकर नहीं हो सकते हैं।

प्रश्न - 3 सच्चे ब्रह्मा कौन हैं?

उत्तर- भगवान् आदिनाथ जी ने रत्नत्रय रूप धर्म का उपदेश देकर मोक्षमार्ग की सृष्टि की है इसलिए वे आदिनाथ भगवान् ही सच्चे ब्रह्या हैं। जो हिंसक वेदों का उपदेश देता था और तिलोत्तमा के मोह तप से भ्रष्ट हुआ था वह ब्रह्या कभी भी सच्चा ब्रह्या नहीं हो सकता है।

प्रश्न - 4 लोक में उत्तम पुरूष कौन है?

उत्तर- लोक के सब पुरूषों में श्रेष्ठ होने से आदिनाथ भगवान् ही पुरूषोत्तम है।

तुभ्यं नमस्त्रि-भुवनार्तिहराय नाथ!
तुभ्यं नमः क्षिति-तलामल-भूषणाय।
तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय,
तुभ्यं नमो जिनभवोदधि-शोषणाय।।26।।

अन्वयार्थ-(नाथ) हे स्वामिन्! (त्रिभुवनार्तिहराय) तीनों लोकों के दुःखों के हरने वाले (तुभ्यं) आपके लिये (नमः ‘अस्तु’) नमस्कर हो, (क्षितितलामलभूषणाय) पृथ्वीतल के निर्मल आभूषण स्वरूप (त्रिजगतः) तीनों जगत् के (परमेश्वराय) परमेश्वर स्वरूप (तुभ्यम्) आपके लिये (नमः अस्तु) नमस्कार हो और हे जिनेन्द्र देव! (भवोदधिशोषणाय) संसार समुद्र के सुखाने वाले (तुभ्यं) आपके लिये (नमः ‘अस्तु’) नमस्कार हो।

भावार्थ-हे भगवान्! आप तीनों लोकों की विपत्ति हरने वाले हैं। महीतल के निर्मल आभूषण हो, तीन भुवन के स्वामी हो और संसार समुद्र के शोषक हो, इसलिये आपको नमस्कार हो।