।। अशोक प्रातिहार्य ।।
आचार्य मानतुंग कृत भक्तामर स्तोत्र
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उच्चैरशोक-तरू-संश्रितमुन्मयूख-
माभाति रूपममलं भवतो नितान्तम्।
स्पष्टोल्लसत्किरणमस्त-तमो-वितानं,
बिम्बं रवेरिव पयोधर-पाश्र्ववर्ति।।28।।
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अन्वयार्थ-(उच्चैरशोकतरूसंश्रितम्) ऊंचे अशोक वृक्ष के नीचे स्थित तथा (उन्मयूखं) जिकी किरणें ऊपर को फैल रही है ऐसा (भवतः) आपका (अमलम्) उज्ज्वल (रूपम्) रूप (स्पष्टोल्लसत्किरणम्) स्पष्ट रूप से शोभायमान है किरणें जिसकी और (अस्ततमोवितानम्) नष्ट कर दिया है अन्धकार का समूह जिसने (पयोधर पाश्र्ववर्ति) मेघ के पास में वर्तमान (रवेः बिम्बम् इव) सूर्य के बिम्ब की तरह (नितान्तम्) अत्यंत (आभाति) शोभित होता है।

भावार्थ-हे प्रभो! ऊंचे और हरे-भरे अशोक वृक्ष के नीचे आपका सुवर्ण-सा उज्ज्वल रूप उस भांति मालूम होता है जिस प्रकार के काले-काले मेघ के नीचे सूर्य का मण्डल। यह अशोक प्रातिहार्य का वर्णन है।

प्रश्न - 1प्रातिहार्य किसे कहते हैं?

उत्तर- जो भव्य जीवों के मन को हरण करें वे प्रातिहार्य कहलाते हैं।

प्रश्न - 2प्रातिहार्य कितने होते हैं?

उत्तर- प्रातिहार्य 8 होते हैं।

1 - अशोक वृक्ष

2 - सिंहासन

3 - तीन छत्र

4 - भामण्डल

5 - दिव्यध्वनि

6 - पुष्पवृष्टि

7 - चैंसठ चंवर

8 - दुन्दुभि दान।

प्रश्न - 3 अशोक वृक्ष प्रातिहार्य की विशेषता बताइये?

उत्तर- जिस वृक्ष के नीचे भगवान् को केवलज्ञान होता है उस वृक्ष को अशोक वृक्ष कहते हैं।

आदिनाथ भगवान् का आश्रय पाकर एकेन्द्रिय वृक्ष भी शोक रहित, अशोक हो गया। तो जो भव्यात्मा संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव निरन्तर भगवान् के गुणों का आश्रय लेंगे वे तो कभी भी दुखी हो ही नहीं सकते।

अर्थात भगवान् का आश्रय लेने वाला शोक रहित हो जाता है।