।। छत्र-त्रय प्रातिहार्य ।।
आचार्य मानतुंग कृत भक्तामर स्तोत्र
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छत्रत्रयं तव विभाति शशडक्कांत-
मुच्चैः स्थितं स्थगित-भानु-कर-प्रतापम्।
मुक्ता-फल-प्रकर-जाल विवृद्ध-शोभं,
प्रख्यापयत्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ।।३१।।
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अन्वयार्थ-(शशांड़क्कांतम्) चन्द्रमा के समान सुंदर (स्थगितभानुकरप्रतापम्) सूर्य की किरणों के प्रताप को रोकने वाले तथा (मुक्ताफलप्रकरजालविवृद्धशोभम्) मोतियों के समूह से बढती हुई शोभा को धारण करने वाला (तव उच्चैः स्थितम्) आपके ऊपर स्थित (छत्रत्रयम्) तीन छत्र (त्रिजगतः) तीन जगत् के (परमेश्वरत्वम्) स्वामित्व को (प्रख्यापयत् ‘इव‘) प्रकट करते हुए की तरह (विभाति) शोभायामान होते है।

भावार्थ-भगवान् ! आपके सिर पर जो तीन छत्र फिर रहे हैं वे मानों यह प्रकट कर रहे हैं कि आप तीन लोक के स्वामी हैं। यह छत्रत्रय प्रातिहार्य का वर्णन है।

प्रश्न - 1भगवान् के सिर पर तीन ही छत्र क्यों लगाए जाते हंै तथा वे क्या सूचना देते हैं ?

उत्तर- भगवान् के सिर पर तीन छत्र भगवान् के तीन लोक के स्वामीपने को सूचित कर रहें है।

प्रश्न - 2- भगवान् के सिर पर छत्रत्रय क्या शिक्षा देते हैं ?

उत्तर- तीन छत्र मानव को शिक्षा देते हैं कि हमेशा बडों की छाया में रहो।

ये गिनती में तीन है कारण तीन की छाया ही संसार के संताप को रोक सकती है - (१) देव की छत्रछाया।
(२) शास्त्र की छत्रछाया।
(३) गुरु की छत्रछाया।
(१) घर में माता-पिता की छत्रछाया में रहो याने उनकी आज्ञा में चलो।
(२) स्त्री को ससुराल में सास-ससुर की छत्र-छाया में रहना चाहिए।
(३) विद्यार्थी को शिक्षकों की छत्र-छाया में रहना चाहिए।

जिस प्रकार तीन छत्रों की छाया में विराजमान भगवान् को सूर्य की किरणें संताप नहीं दे सकती उसी प्रकार देव-शास्त्र गुरु की छत्र-छाया में रहने वाले जीव कभी दुःखी नहीं हो सकता है। स्वच्छंदता जीवन का नाश कर देती है।

प्रश्न - 3 तीन छत्र कैसे लगाना चाहिए ?

उत्तर- तीन छत्र तीन लोक के स्वामीपने के प्रतीक है अतः सबसे बडा पहले फिर उससे छोटा, पश्चात् सबसे छोटा क्योंकि अधोलोक बड़ा है, मध्य लोक मध्यम हैं और सिद्धलोक सबसे छोटा है।