अन्वयार्थ-(कुन्दावदातचलचामर चारूशोभम्) कुन्द के फूल के समान स्वच्छ, चलायमान चंवरों के द्वारा सुन्दर है शोभा जिसकी ऐसा (तव) आपका (कलधौतकान्तम्) स्वर्ण के समान सुन्दर (वपुः) शरीर (उद्यच्छशांकशुचिनिर्झरवारिधारम्) जिस पर चन्द्रमा के समान सुन्दर झरने के जल की धारा बह रही है ऐसे (सुरगिरेः) मेरू पर्वत (शतकौम्भम्) सोने के बने हुए (उच्चैस्तटम्) ऊंचे तट की तरह (विभ्राजते) शोभायमान होता है।
भावार्थ-हे प्रभो! जिस पर देवों के द्वारा सफेद चंवर ढोले जा रहे हैं ऐसा आपका सुवर्णमय शरीर उतना सुहावना मालूम होता है जितना कि झरने के सफेद जल से शोभित मेरू पर्वत का सोने का शिखर। यह चंवर प्रतिहार्य है।
प्रश्न - 1भगवान् के सिर पर तीन ही छत्र क्यों लगाये जाते हैं तथा वे क्या सूचना देते हैं?
उत्तर- भगवान् के सिर पर तीन छत्र भगवान् के तीन लोक के स्वामीपने को सूचित कर रहे हैं।
प्रश्न - 2भगवान् के सिर पर छत्रत्रय क्या शिक्षा देते हैं?
उत्तर- तीन छत्र मानव को शिक्षा देते हैं कि हमेशा बड़ों की छाया में रहो। ये गिनती में तीन हैं कारण तीन की छाया ही संसार के संताप को रोक सकती हैं-
1 - देव की छत्रछाया।
2 - शस्त्र की छत्रछाया।
3 - गुरू की छत्रछाया।
1 - घर में माता-पिता की छत्रछाया में रहो याने उनकी आज्ञा में चलो।
2 - स्त्री को ससुराल में सास-ससुर की छत्र-छाया में रहना चाहिए।
3 - विद्यार्थी को शिक्षकों की छत्र-छाया में रहना चाहिए।
जिस प्रकार तीन छत्रों की छाया में विराजमान भगवान् को सूर्य की किरणें संताप नहीं दे सकतीं उसी प्रकार देव-शास्त्र-गुरू की छत्र-छाया में रहने वाला जीव कभी भी दुःखी नहीं हो सकता है। स्वच्छन्दता जीवन का नाश कर देती है।
प्रश्न - 3 तीन छत्र कैसे लगाना चाहिए?
उत्तर- तीन छत्र तीन लोक के स्वामीपने के प्रतीक हैं अतः सबसे बड़ा पहले फिर उससे छोटा, पश्चात् सबसे छोटा क्योंकि अधोलोक बड़ा है, मध्य लोक मध्यम है और सिद्धलोक सबसे छोटा है।